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हार्ट स्पेशलिस्ट हैं ये योगासन व प्राणायाम

कुमार राधारमण योग विशेषज्ञ (अधिकारी, नीति आयोग, भारत सरकार, नयी दिल्ली) आंकड़ों की मानें, तो प्रतिवर्ष लगभग 30 प्रतिशत यानी लगभग 2 करोड़ लोगों की मौत दिल की बीमारियों से हो जाती है. हृदय रोग स्त्रियों की तुलना में पुरुषों को अधिक हो रहा है. बढ़ते रक्तचाप, कोलेस्ट्रॉल, शुगर लेवल, बदलती जीवनशैली, धूम्रपान आदि के […]

कुमार राधारमण

योग विशेषज्ञ
(अधिकारी, नीति आयोग, भारत सरकार, नयी दिल्ली)
आंकड़ों की मानें, तो प्रतिवर्ष लगभग 30 प्रतिशत यानी लगभग 2 करोड़ लोगों की मौत दिल की बीमारियों से हो जाती है. हृदय रोग स्त्रियों की तुलना में पुरुषों को अधिक हो रहा है. बढ़ते रक्तचाप, कोलेस्ट्रॉल, शुगर लेवल, बदलती जीवनशैली, धूम्रपान आदि के कारण हृदय रोग के मामलों में लगातार इजाफा हो रहा है. इसके अलावा तनाव, चिंता, खराब खान-पान भी आपके हृदय से संबंधित समस्या का कारण बन सकता है.
इसे देखते हुए इस वर्ष विश्व योग दिवस का थीम ‘योगा फॉर हार्ट केयर’ रखा गया है. योग आपके शरीर में लचीलेपन को बढ़ाने, मांसपेशियों को मजबूत करने, तनाव से राहत देने और शरीर को फिर से जीवंत करने के सर्वोत्तम तरीकों में से एक है. एक अध्ययन के मुताबिक योग का समग्र हृदय पर सकारात्मक प्रभाव पड़ता है. आइए, कुछ प्रमुख योगासनों, प्राणायाम, मुद्रा के बारे में जानते हैं, जो हमारे दिल को मजबूत बनाने के साथ उसे रोग मुक्त रखने में बेहद मददगार हैं.
गोमुखासन
01.गोमुखासन
इस आसन में आकृति गाय के मुख के समान अर्थात एक तरफ पतली और दूसरी तरफ चौड़ी हो जाती है. पंजे भी गाय के कान की तरह बाहर की ओर निकले दिखते हैं. इस आसन से सीना खुल जाता है और कंधे भी मजबूत होते हैं, जिससे ऑक्सीजन की ग्रहणशीलता बढ़ती है और हृदय स्वस्थ रहता है. कब्ज, गठिया, मधुमेह और शीघ्रपतन में भी उपयोगी है.
विधिः : बैठ कर दाएं पैर के पंजे को बायीं जंघा के ऊपर से लाकर बाएं नितंब के पास रखें.
बाएं पैर के पंजे को नीचे से दाहिने नितंब के पास रखें.
दाएं हाथ को सिर के ऊपर से पीछे ले जाएं और दाएं हाथ को कमर से पीठ की तरफ ले जाएं.
दोनों हाथों के पंजों को इंटरलॉक कर लें. इस अवस्था में लगभग आधा मिनट तक सामान्य सांस चलने दें.
कुछ पल विश्राम के बाद यही प्रक्रिया बाएं पैर को दायीं जंघा पर रखकर करें.
02. कपोतासन
इस आसन में आकृति कबूतर के समान होती है और सीना कबूतर की ही तरह फूलता-पिचकता है. इसे सीना तो चौड़ा होता ही है, फेफड़ों को मजबूत करने में यह आसन खास तौर से उपयोगी है. हृदय के लिए यह अत्यंत उत्तम आसन है, क्योंकि इसे हर कोई आजमा सकता है. हाथ-पैरों को मजबूत करने और गले के रोगों में भी लाभकारी है.
विधिः बैठकर दोनों घुटनों को पीछे की ओर इस प्रकार मोड़ें कि घुटनों के बीच एक फीट से थोड़ा अधिक अंतर रहे. दोनों पैरों के पंजे सटे हुए हों.
अब दोनों हाथों को घुटनों के बीच से पीछे ले जाएं. हाथों के पंजों को पैरों के पंजों पर रख दें.
अंतर्कुंभक लगाएं अर्थात् सांस भरकर भीतर रोकें और गर्दन को थोड़ा ऊपर उठने दें. कुछ पल बाद सांस छोड़ते हुए गर्दन को सामान्य अवस्था में ले आएं.
पूरी प्रक्रिया के दौरान ध्यान हृदय पर रहे.
इस प्रक्रिया को करीब 8 बार करें.
03. नटराजासन
भगवान शिव की आदि प्रतिमा नटराज यानी नर्तक के रूप में ही है. इस आसन की अंतिम मुद्रा ठीक वैसी ही है. इससे छाती मजबूत होती है, संपूर्ण स्नायुतंत्र को राहत मिलती है और शरीर संतुलित रहता है. रीढ़ और पेट के विकार दूर होते हैं. आत्मविश्वास पैदा होता है तथा मन और शरीर को शांति का अनुभव होता है.
विधिः
सीधे खड़े होकर कुछ पल सहज श्वास चलने दें. फिर, दाएं घुटने को हल्का झुकाते हुए, बाएं पैर को थोड़ा ऊपर उठाएं.
संतुलन बनाए रखते हुए बाएं हाथ को बाएं पैर के ऊपर कुछ दूरी पर रखें.
दाएं हाथ के अंगूठे और तर्जनी के शीर्ष को मिला लें और बाईं कोहनी के ऊपर आशीर्वाद की मुद्रा में रखें.
नजर सामने की ओर हो. इस अवस्था में यथाशक्ति रुकें, फिर सामान्य अवस्था में आकर कुछ पल बाद इसे दूसरे पैर से भी करें. कुल 5 से 7 बार इसे करें.
04. जंगासन
भुजंग यानी सर्प. इस आसन में शरीर की आकृति फन उठाये सर्प जैसी हो जाती है. यह आसन फेफड़े को स्वस्थ रखता है. दमा और ब्रोंकाइटिस में भी लाभकारी है. इससे पाचन बेहतर होता है और कब्ज से निजात मिलती है. थकान, स्लिप डिस्क, कंधे और गर्दन के तनाव की समस्या भी दूर होती है.
विधिः
पेट के बल लेटें और हाथों को सामने की ओर फैला कर रखते हुए कुछ पल सहज श्वास लें.
फिर, हथेलियों को ज़मीन पर रखकर सांस भरते हुए कमर से लेकर गर्दन तक के हिस्से को पीछे ले जाएं. यथासंभव गर्दन को पीछे की ओर इतना झुकाएं कि कमर से गर्दन तक की स्थिति धनुषाकार हो जाये.
दोनों हाथों पर एक समान भार रखें और पैर भी पीछे बिल्कुल सीधे रहें. कंधों को ढीला रखें.
चेहरे पर मुस्कान के साथ इस अवस्था में यथाशक्ति रुकें. फिर सांस छोड़ते हुए क्रमशः पेट, सीने और सिर को वापस पूर्वावस्था में ले आएं.
वज्रासन
वज्रासन से शरीर बुढ़ापे में भी वज्र की तरह सशक्त रहता है. हृदय स्वस्थ रहता है. इससे अशुद्ध रक्त ऊपर की ओर जाना शुरू हो जाता है, जिससे हृदय की पंपिंग प्रणाली को बहुत आराम मिलता है. यह हमारे स्नायुतंत्र को सुचारु रखता है, क्योंकि इससे सूर्य नाड़ी और चंद्र नाड़ी दोनों के बीच संतुलन स्थापित होता है. चाहे जैसी भी थकान हो, वज्रासन से दूर हो जाती है.
विधिः
घुटनों को मोड़ कर उस पर इस प्रकार बैठें कि दोनों एड़ियों पर नितंबों का भार एक समान हो.
एड़ियां दाएं-बाएं रहें, मगर पैरों के अंगूठे मिले हुए हों. घुटने मिला कर रखें. हाथों को ज्ञानमुद्रा (तर्जनी और अंगूठों के शीर्ष मिले हुए, शेष उंगलियां सीधी) में घुटनों पर रख लें.
पीठ-गर्दन सीधी हो. शरीर को पूरी तरह ढीला छोड़ दें. यदि बैठने में परेशानी हो रही हो तो पैरों के नीचे तकिया रख लें.
भोजन के करीब आधे घंटे बाद पांच से 25 मिनट तक इसे करना पर्याप्त है.
ताड़ासन
इस आसन में शरीर ताड़वृक्ष की तरह लंबवत् हो जाता है. इससे हृदय की धमनियों में ऑक्सीजन का प्रवाह बढ़ता है और सुस्ती विदा हो जाती है. सायटिका, कंधे और कोहनियों की तकलीफ, हाथों के कंपन, जोड़ों और मांसपेशियों की कमजोरी में भी लाभकारी है. विद्यार्थियों के लिए विशेष उपयोगी है. जोड़ों और मांसपेशियों को ताकत मिलती है.
विधिः
दोनों पैरों को मिला कर हाथों को इंटरलॉक करें. भुजाएं सीधी रखें.
सांस भरते हुए हाथों को पूरी शक्ति से ऊपर की ओर तानें और एड़ियां ऊपर उठा लें.
आंखें खोलकर सामने की ओर देखें और इस स्थिति में यथाशक्ति रुकें.
सांस छोड़ते हुए हाथों को सामने की ओर से अथवा दाएं-बाएं से नीचे ले जाएं.
लेटकर करने के लिए एड़ी-पंजे मिला कर नाभि से नीचे वाला हिस्सा नीचे की ओर तथा नाभि से ऊपर वाला भाग ऊपर की ओर तानें ताकि शरीर की सभी मांसपेशियां खिंच जाएं.
इस स्थिति में यथाशक्ति रुकें और पुनः तानें. चार बार करें.
उज्जायी प्राणायाम
अपानवायु मुद्रा
हार्ट अटैक में हृदय को नुकसान से बचाने के लिए डाॅक्टर सोरबिटेट की गोली देते हैं. यदि आपको अचानक सीने में दर्द महसूस हो और दिल का दौरा पड़ने की आशंका हो तो जो लाभ सोरबिटेट की गोली से होता है, वही लाभ आपको अपान-वायु मुद्रा से होगा. अगर दौरा पड़ चुका हो, तो भी उससे शीघ्रता से उबरने में यह मुद्रा बहुत उपयोगी है. यह मुद्रा लगाने के दो-तीन सेकेंड के भीतर ही हृदय में ऑक्सीजन की मात्रा सामान्य हो जाती है. इ
सलिए, कई बार हृदयाघात की स्थिति में रोगी को अस्पताल ले जाने में लगे समय के दौरान जो नुकसान होता है. यह मुद्रा उससे भी बचाती है. जीवन-रक्षक होने के कारण इसे मृतसंजीवनी या हृदय-मुद्रा भी कहते हैं. इस मुद्रा का नियमित अभ्यास दिल के दौरे की संभावना को नगण्य कर देता है.
विधिः
तर्जनी को अंगूठे की जड़ में लगाएं और अंगूठे, मध्यमा तथा अनामिका के शीर्ष को मिलाएं. कनिष्ठा बिल्कुल सीधी रहे. 15-15 मिनट तीन बार करें.

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