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मुठभेड़ के ढाई साल बाद तीन की पहचान पहला 12, दूसरा 16 व तीसरा 17 साल का

बकोरिया कांड. घटना के 30 माह बाद जांच करने गांव पहुंची थी टीम प्रभात खबर की टीम बकोरिया कांड को लेकर इन दिनों विधानसभा में विपक्ष जोरदार हंगामा कर रहा है. विपक्ष का आरोप है कि पुलिस ने बकोरिया में फर्जी मुठभेड़ कर 12 लोगों की जान ले ली. घटना आठ जून 2015 की है. […]

बकोरिया कांड. घटना के 30 माह बाद जांच करने गांव पहुंची थी टीम

प्रभात खबर की टीम
बकोरिया कांड को लेकर इन दिनों विधानसभा में विपक्ष जोरदार हंगामा कर रहा है. विपक्ष का आरोप है कि पुलिस ने बकोरिया में फर्जी मुठभेड़ कर 12 लोगों की जान ले ली. घटना आठ जून 2015 की है. पलामू के बकोरिया में आधी रात को कथित मुठभेड़ में पुलिस ने 12 लोगों को मार गिराया था. एक नाबालिग सहित आठ की पहचान हो गयी थी. घटना में पांच नाबालिग मारे गये थे. इनमें एक की पहचान कुछ दिन बाद कर ली गयी थी. अब तीन अन्य नाबालिग की भी पहचान हो गयी है. ढाई साल बाद जांच टीम गांव पहुंची और इन तीनों की पहचान की.
गारू (लातेहार) : बकोरिया में आठ जून 2015 को पुलिस ने नक्सली बता जिन 12 लोगों को मारा था, उनमें तीन की पहचान ढाई साल बाद हो पायी है. ये तीनों भी नाबालिग थे. घटना के बाद नौ लोगों की ही पहचान हो पायी थी.
इनमें नाबालिग के रूप में हरातू गांव निवासी महेंद्र सिंह खरवार (उम्र 12, पिता : कामेश्वर सिंह) व लादी गांव के उमेश सिंह (उम्र 10, पिता : पचाठी सिंह) की पहचान हुई थी. अब अंबाटीकर गांव के चरकू तिर्की (उम्र 12, भाई : विजय तिर्की), करूमखेता गांव के बुधराम उरांव (उम्र 17,भाई : महिपाल उरांव) व लादी गांव के सत्येंद्र पहरहिया (उम्र 16 पिता : रामदास पहरहिया) की भी पहचान हो गयी है. इन नाबालिगों के शवों का क्या हुआ आज भी गांववाले और उनके परिजनों को जानकारी नहीं है.
पहचान नहीं होने के कारण पुलिस की गोली से मारे गये इन बच्चों के शवों का अंतिम संस्कार भी उनके परिजन नहीं कर पाये. घटना के अगले दिन अखबारों में खबर छपने के बाद परिजन व गांव के लोगों को इसकी जानकारी मिली थी. पर वे नक्सलियों और पुलिस के डर से कुछ बोल नहीं पाये. ग्रामीणों का कहना है कि इलाके में डर का माहौल बन गया था. भय के कारण गांव का कोई भी व्यक्ति बाहर निकलने की हिम्मत नहीं जुटा पाया. घटना के करीब 30 माह बाद जांच टीम गांव पहुंची. गांव के लोगों और परिजनों को मारे गये नाबालिगों की तस्वीर दिखलायी. इसके बाद परिजन व ग्रामीण सामने आये और इनकी पहचान की.
मारे गये बच्चों की तस्वीर देख भावुक हुए परिजन
परिजनों ने की पहचान, कहा : घटना के बाद बच्चों की पहचान करने की हिम्मत नहीं जुटा पाये थे
शवों का अंतिम संस्कार नहीं कर पाने का मलाल
पुलिस ने माओवादी बता कर मार दिया था
इन नाबालिग की
हुई पहचान
चरकू तिर्की
(उम्र 12, भाई : विजय तिर्की), अंबाटीकर गांव निवासी
सत्येंद्र पहरहिया
(उम्र 16, पिता : रामदास पहरहिया) लादी गांव
बुधराम उरांव
(उम्र 17,भाई : महिपाल उरांव) करूमखेता गांव
इनकी पहले हो चुकी थी पहचान
उमेश सिंह
(उम्र 10, पिता : पचाठी सिंह) लादी गांव
महेंद्र सिंह खरवार
(उम्र 12, पिता : कामेश्वर सिंह) हरातू
10 साल के उमेश की मां बोली
गाय चराने गया था बेटा
पर लौट कर नहीं आया घर
उमेश की मां पचिया देवी व बहन रजमतिया देवी उस घटना को याद कर दहल जाती हैं. बताती हैं : उमेश गारू के मध्य विद्यालय में पढ़ता था. गाय चराने जंगल गया था. इसके बाद लौट कर नहीं आया. दो साल पहले पता चला कि वह जंगल सरकार (नक्सली ) के साथ बकोरिया में पुलिस के हाथों मारा गया. घटना के एक माह बाद पुलिस ने छिपादोहर में बुला कर इसकी जानकारी दी थी. बेटे की मौत से उसके पिता को बड़ा सदमा लगा. छह माह बाद पिता पचाठी सिंह की भी बीमारी से मौत हो गयी. एक और बेटा बीमारी से जूझ रहा है. परिवार तबाह हो जाने के बाद पचिया देवी अब अपनी ब्याहता बेटी को साथ लेकर रहती है.
12 साल के महेंद्र के परिजन बोले
घर का सबसे छोटा बेटा था कमाने की बात कह िनकला था
हरातू गांव निवासी महेंद्र सिंह अपने घर का सबसे छोटा बेटा था. पिता कामेश्वर सिंह की अन्य संतानें पुत्र संदीप सिंह, सुरजदेव सिंह, हिरामण सिंह व प्रदीप सिंह हैं. महेंद्र हर रोज मवेशी चराने जाता था. पिता कामेश्वर सिंह मां फुलेसरी देवी ने बताया : महेंद्र हरातू मवि में चौथी कक्षा में पढ़ता था. स्कूल से लौट कर या छुट्टी के दिन मवेशी चराने जाता था. एक दिन घर से बाहर कमाने जाने की बात कह कर निकला था. चार महीने बाद घर आया, मगर कुछ नहीं बताया. घटना से चार दिन पहले वह फिर घर से निकल गया था. घटना के दो माह बाद छिपादोहर पुलिस उसकी तस्वीर लेकर पहचान कराने आयी थी.
घर का सबसे छोटा…
लेकिन घटना के दो दिन बाद अखबारों से बेटे के मरने की खबर मिल गयी थी. उन्होंने बताया : दो महीने पहले मनिका थाने में बुलाया गया था. एक साल पहले भी कुछ लोग घर आये थे, पूछताछ की. पुलिस थाने में बुलाती है, कहती है कि सरकार मदद करेगी, मगर अब तक कोई मदद नहीं दी गयी. आखिर मेरे बेटे ने क्या कसूर किया था, जो रात में घेर कर उसे मार दिया गया. अगर न्याय नहीं हुआ, तो ऊपरवाले निश्चित न्याय करेंगे.
14 साल का चश्मदीद बोला
बांह छुड़ा भागा था इसलिए बच गया
घटना के समय बरवाडीह के लादी गांव का 14 वर्षीय सीताराम सिंह ( पिता राजकुमार सिंह) भी वहां मौजूद था. फिलहाल वह सरकारी स्कूल में छठी कक्षा में अध्ययनरत है. उसने बताया : घटना के दिन कुमंडी की ओर से कुछ दूर पैदल चलने व औरंगा नदी पार करने के बाद बोलेरो से बकोरिया की ओर जा रहा था. बोलेरो में डॉक्टर उर्फ अनुराग भी मौजूद थे. रात करीब 11 बजे बकोरिया रोड में 50 से 60 पुलिसकर्मियों ने गाड़ी को घेर कर सभी को उतार लिया. उसे भी बांह पकड़ कर पुलिसकर्मी ले जाने लगे. पकड़ ढीली होने पर वह बांह छुड़ा कर झाड़ियों में भाग गया. कुछ दूर जाने के बाद आराम कर रहा था, तभी गोली की आवाज सुनायी दी. वह जंगल से भागते-भागते चेचेन्धा (मनिका) पहुंचा. वहां सुबह में कुछ लोगों ने चप्पल व खाना दिया. कूमंडीह ले जाकर ट्रेन मे बैठा दिया. इसके बाद छिपादोहर से पैदल चल कर लादी पहुंचा.
सत्येंद्र की मां बोली
नाना-नानी के घर रहता था
सत्येंद्र पहरहिया लादी गांव का रहनेवाला था. मगर वह अचार गांव में अपने नाना नानी ( नाना बालगोबिंद परहिया) के घर रहता था. सत्येंद्र के पिता रामदास एक मामले में जेल में है. उसकी मां फुलमणिया देवी टूटे-फूटे घर में रहकर किसी तरह जीविकोपार्जन कर रही है.

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