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Jamshedpur News : सारंडा के अभ्यारण्य क्षेत्र का फिर से क्षेत्रफल घटायेगी सरकार

देश के सबसे बड़े साल वन सारंडा को अभ्यारण्य घोषित करने की प्रक्रिया एक बार फिर फंस गयी है.

सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में दी नयी दलील, नक्सल हिंसक आंदोलन के खतरे का दिया हवाला, बंद लिफाफा में सौंपी पुलिस की रिपोर्ट

Jamshedpur News :

देश के सबसे बड़े सालवन और एशिया के “ऑक्सीज़न रिजर्व ” कहे जाने वाले सारंडा को अभ्यारण्य घोषित करने की प्रक्रिया एक बार फिर फंस गयी है. झारखंड सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में कहा है कि वह पहले से तय 314 वर्ग किलोमीटर नहीं, बल्कि इससे भी कम- करीब 250 वर्ग किलोमीटर क्षेत्र को ही अभ्यारण्य घोषित करना चाहती है. 17 अक्तूबर को हुई आंशिक सुनवाई के दौरान सरकार ने बंद लिफाफे में पुलिस विभाग की रिपोर्ट भी न्यायालय को सौंपी, जिसमें नक्सली गतिविधियों और हिंसक आंदोलन की आशंका का हवाला दिया गया है. अब इस मामले की अगली सुनवाई 27 अक्तूबर को होगी.

पुलिस रिपोर्ट में कहा गया है कि स्थानीय जनता में अभ्यारण्य घोषित होने को लेकर असंतोष बढ़ रहा है. नक्सली संगठन इसी नाराजगी को भड़का रहे हैं और ‘जनविरोध’ को बड़े पैमाने पर हिंसक आंदोलन में बदलने का प्रयास कर रहे हैं. इसी खतरे का हवाला देते हुए सरकार क्षेत्रफल घटाने की मांग दोहरा रही है.

पहले 575 और फिर 314 और फिर अब 250 वर्ग किलोमीटर घोषित करने की तैयारी

सारंडा को लेकर काफी लंबी लड़ाई चल रही है. सारंडा वन क्षेत्र को अभ्यारण्य घोषित करने को लेकर एक याचिका सुप्रीम कोर्ट में दायर की गयी है. इस याचिका पर सुनवाई हुई थी. काफी जद्दोजहद के बाद झारखंड सरकार के वन विभाग ने 575 वर्ग किलोमीटर को वाइल्ड लाइफ सेंचुरी और 13.06 किलोमीटर को ससांगदाबुरु कंजर्वेशन क्षेत्र घोषित करने की घोषणा की थी. सरकार की ओर से एक हलफनामा भी दायर किया गया था. वाइल्ड लाइफ इंस्टीच्यूट का हवाला देते हुए तत्कालीन पीसीसीएफ वाइल्ड लाइफ सत्यजीत सिंह की रजामंदी के बाद हलफनामा दायर किया गया था. बाद में सरकार ने फिर से इस पर पुर्नविचार किया और लौह अयस्क और कारोबार को देखते हुए सारंडा के 314 वर्ग किलोमीटर एरिया को ही अभ्यारण्य घोषित करने की बात कही. इसको लेकर हलफनामा भी दायर की. इसके पहले यह फैसला कैबिनेट में लिया गया. पांच मंत्रियों के समूह ने क्षेत्र का दौरा करने के बाद कैबिनेट में रिपोर्ट पेश की थी, जिसके बाद तय हुआ था कि 314 वर्ग किलोमीटर को ही अभ्यारण्य घोषित किया जायेगा, जिसके आधार पर हलफनामा सुप्रीम कोर्ट में दायर किया गया. बाद में फिर से अब सरकार करीब 250 वर्ग किलोमीटर एरिया को ही अभ्यारण्य घोषित करने की तैयारी में है. इससे 820 वर्ग किलोमीटर में फैले इस जंगल को बचाने के लिए चल रही मुहिम को एक बड़ा झटका लगा है.

कई गांवों के लोग कर रहे हैं विरोध

सारंडा के एरिया को अभ्यारण्य घोषित करने का विरोध भी हो रहा है. करीब 40 गांव सारंडा के भीतर हैं. उन गांवों के लोग कई बार आंदोलन कर चुके हैं और कह रह हैं कि अभ्यारण्य घोषित होने से उनको उजाड़ा जायेगा और फिर कारोबार भी चौपट हो जायेगा.

लौह अयस्क खदान पर भी असर पड़ने का खतरा

सारंडा क्षेत्र में काफी लौह अयस्क खदान है. इस पर भी प्रतिकूल असर पड़ने की बात कही जा रही है. इंडियन मिनरल ईयर बुक-2013 (भाग-1) के तहत पश्चिम सिंहभूम जिला में हेमेटाइट लौह अयस्क का भंडार 104 मिलियन टन है, जिसमें से 464 मिलियन टन का आंकड़ा संभावित है. जबकि, 104 मिलियन टन सप्रमाण है.

खान विभाग ने कहा है कि सारंडा वन क्षेत्र के करीब 26 फीसदी हिस्से में लौह अयस्क का भंडार है. यहां करीब 4700 मिलियन टन लौह अयस्क है, जिसकी कीमत 25 से 30 लाख करोड़ रुपये आंकी गयी है. इससे राज्य सरकार को करीब 14 लाख करोड़ रुपये की रॉयल्टी मिल सकती है. यदि इस क्षेत्र को अभ्यारण्य घोषित किया जाता है, तो खनन कार्य रुक जायेंगे. इससे खनिज की उपलब्धता पर असर पड़ेगा. राज्य में सालाना करीब 20 मिलियन टन लौह अयस्क का उत्पादन होता है.

अगर सरकार ऐसा करेगी, तो फिर हम लड़ाई लड़ना नहीं चाहेंगे : पर्यावरणविद

सुप्रीम कोर्ट में याचिकाकर्ता और पर्यावरणविद आरके सिंह ने कहा कि सारंडा को बचाने के लिए हमलोगों ने लड़ाई लड़ी है. लेकिन सरकार इसको लेकर हमेशा पीछे हट रही है. जंगल को बचाना ही नहीं चाहती है. देश के संविधान में हमारे जैसे नागरिकों को अधिकार 51 ए का जी सेक्शन में दिया गया है कि जंगल को बचाने के लिए लड़ाई लड़ सकते हैं. वहीं, सरकार को 48ए के तहत वन संरक्षण करना है. लेकिन सरकार अपना काम नहीं कर रही है. हमारी लड़ाई निजी नहीं है, बल्कि जंगल को बचाने की है. सरकार सारंडा को बचाना ही नहीं चाहती है, तो हमलोग क्या कर सकते हैं. लड़ाई ही बंद करनी होगी. यह अफसोसजनक स्थिति है.

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