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200 साल पुराना है गुमला के हापामुनी में लगने वाला मंडा मेला, भगवान भोलेनाथ के लिए करते हैं कड़ी तपस्या

पांच दिन तक लगनेवाले मंडा मेला की तैयारी पूरी होने के साथ ही शुक्रवार को भोक्ताओं के प्रवेश के साथ ही मेला शुरू हो गया है. मेला के सफल संचालन के लिए पांच दिवसीय कमेटी का गठन किया गया है.

घाघरा प्रखंड के हापामुनी गांव में लगनेवाला मंडा मेला का इतिहास 200 वर्ष पुराना है. 200 वर्ष पूर्व सरना सनातन धर्म के लोगों ने मिलकर हापामुनी गांव में मंडा मेला का शुरुआत की थी, जो अब पूरे राज्य में प्रचलित है. मंडा मेला में दूर-दूर से लोग अपनी मनोकामना पूर्ति के लिए पूजा-अर्चना करने के लिए आते है. इस मंडा मेला से लाखों लोगों का आस्था जुड़ा है. पर्व में शामिल होनेवाले सभी धर्म प्रेमी और भोक्ताओं में उल्लास व उत्साह रहता है.

पांच दिन तक लगनेवाले मंडा मेला की तैयारी पूरी होने के साथ ही शुक्रवार को भोक्ताओं के प्रवेश के साथ ही मेला शुरू हो गया है. मेला के सफल संचालन के लिए पांच दिवसीय कमेटी का गठन किया गया है. मां महामाया मंदिर से लगभग 200 मीटर की दूरी पर चबूतरा व मंडप का निर्माण किया गया है. जहां भगवान भोलेनाथ को प्रसन्न करने के लिए पाठ भोक्ता महादेव उरांव के नेतृत्व में सैकड़ों भोक्ता लगातार पांच दिनों तक कड़ी भक्ति करते हैं.

इस दौरान भोक्ता सिर्फ शाम में नियमानुसार सात्विक भोजन करते हैं और पांचों दिन भक्ति में लीन रहते है. भोक्ता धोती पहनकर और धोती को ओढ़कर मेला स्थल पर ही रहते है. इस दौरान सभी भोक्ता सिर्फ आपस में ही बात करते है. वे अपने घर के परिजन और बाहरी लोगों से बात नहीं करते है. कार्यक्रम के चौथे दिन भोक्ता स्नान के बाद महामाया मंदिर का परिक्रमा कर मेला स्थल पहुंचते है.

जहां भगवान शिव का आशीर्वाद फूल माला गिरने के बाद उसी फूल को जलते लकड़ी के पवित्र कोयले में छींटा जाता है. जिसके बाद ही भोक्ता धधकते आग को फूल मान कर उसमें चलते है. जिसे फुलखुंदी कहा जाता है. पांचों दिन भोक्ताओं के द्वारा लोटन सेवा किया जाता है. जिसमें चबूतरे का परिक्रमा लेटते हुए की जाती है. मंडा मेला के आजीवन संरक्षक प्रोफेसर अवधमनी पाठक कहते हैं कि जब तक जीवन रहेगा तब तक मंडा मेला का नेतृत्व करेंगे.

इधर, मंडा मेला में हर साल 250 से 300 भोक्ता और लगभग 10 हजार श्रद्धालुओं की भीड़ उमड़ती है. इसके साथ ही मेला में पूजा-अर्चना, सांस्कृतिक होता है. जिसमें खोड़हा दल भी अपनी सहभागिता निभाते हैं. पूर्व मुखिया आदित्य भगत ने कहा कि जिस भाइचारगी के साथ 200 वर्ष पूर्व इस मंडा मेला की शुरुआत हुई थी. मेला भाइचारगी का प्रतीक है. युवा पीढ़ी भी इन सभी परंपरा को देखें और जन्मों जन्मांतर से चले आ रहे मंडा मेला को और भव्य बनाने की दिशा में सकारात्मक सोच के साथ आगे बढ़े. यह मंडा मेला क्षेत्र के लोगों के लिए आस्था का केंद्र है.

Prabhat Khabar News Desk
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