गोड्डा जिले में बीते 10 दिनों से लगातार जारी ठंड, कनकनी और घने कोहरे ने किसानों की मुश्किलें बढ़ा दी हैं. बदलते मौसम का सीधा असर आलू की फसलों पर पड़ रहा है. खासकर आलू की फसल में पाला (झुलसा) रोग लगने की आशंका से किसान चिंतित नजर आ रहे हैं. किसान खेतों में पटवन, दवा का छिड़काव और अन्य उपाय कर फसल को बचाने की कोशिश कर रहे हैं. जिले के सदर, महागामा, बसंतराय, पोडैयाहाट, मेहरमा और टाकुरगंगटी प्रखंडों के सैकड़ों गांवों में बड़े पैमाने पर आलू की खेती की जाती है. किसानों का कहना है कि आलू की लहलहाती फसल पर पाले का असर होने से फसल सूखने लगी है. किसान फसल को बचाने के लिए सिंचाई और दवा का छिड़काव कर रहे हैं, लेकिन पाले के बढ़ते प्रकोप से फसल बर्बादी की कगार पर दिख रही है. किसानों के अनुमान के मुताबिक, फिलहाल पाले के प्रभाव से आलू की लगभग 35 प्रतिशत पैदावार घट सकती है. किसान रामस्वरूप दास, प्रमोद कापरी, नरेश महतो, बास्की हेम्ब्रम, निरंजन साह ने बताया कि फसल पहले अच्छी खड़ी थी, लेकिन घने कोहरे और शीतलहरी के कारण अब झुलसने लगी है. इससे आलू का वजन भी आधा रह जाएगा. कृषि विशेषज्ञों ने बताया कि झुलसा रोग में पत्तियों पर भूरे-काल रंग के धब्बे बनते हैं और पत्तियों की निचली सतह पर रुई जैसे फफूंद दिखाई देते हैं. यह रोग 80 प्रतिशत आर्द्रता और 10 से 20 डिग्री तापमान में तेजी से फैलता है. रोग प्रकोप होने पर दो से चार दिन में फसल बर्बाद हो सकती है. विशेषज्ञों ने फसल को झुलसा रोग से बचाने के लिए सुझाव दिया है कि जिंक मैगनीज कार्बोनेट या मैंकोजेब 2.0-2.5 किग्रा को 800-100 लीटर पानी में मिलाकर प्रति हेक्टेयर छिड़काव किया जाये. आवश्यकतानुसार 10-15 दिन के अंतराल पर दूसरा छिड़काव कॉपर ऑक्सीक्लोराइड 2.5-3.0 किग्रा या जिंक मैगनीज कार्बोनेट 2.0-2.5 किग्रा का किया जाना चाहिए. इस दिशा में यदि किसान समय रहते छिड़काव और सिंचाई करें तो फसल को झुलसा रोग से बचाया जा सकता है और पैदावार को सुरक्षित रखा जा सकता है.
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