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जयंती विशेष: कोयलांचल की धरती पर आये थे राजेंद्र बाबू, कांग्रेस की मजदूर इकाई बनाने का जिम्मा दिया था सिंह को

देश के प्रथम राष्ट्रपति डॉ राजेंद्र प्रसाद ने झरिया का दौरा तीन बार किया था. पहली बार रामजस अग्रवाल, दूसरी बार नेता जी सुभाष चंद्र बोस तथा तीसरी बार मजदूर आंदोलन को लेकर उनका दौरा हुआ था.

देश के प्रथम राष्ट्रपति डॉ राजेंद्र प्रसाद ने झरिया का दौरा तीन बार किया था. पहली बार रामजस अग्रवाल, दूसरी बार नेता जी सुभाष चंद्र बोस तथा तीसरी बार मजदूर आंदोलन को लेकर उनका दौरा हुआ था. 1894 में कोयला उत्पादन की शुरुआत के बाद 1926 तक झरिया कोयला के राष्ट्रीय मानचित्र पर एक प्रमुख केंद्र बन चुका था. इसलिए आजादी से पहले श्रमिक राजनीति को लेकर यहां सुभाष चंद्र बोस, पं नेहरू के चरण यहां पड़ चुके थे. राजेंद्र बाबू झरिया आगमन का एक कारण यह भी था.

रामजस अग्रवाल का परिचय झरिया आगमन का सूत्र बना 

सन 1906 में डॉ राजेंद्र प्रसाद ने कोलकाता विश्वविद्यालय से इंटर करने पर परिवार के वरिष्ठ सदस्यों समेत शुभचिंतकों की सामूहिक राय हुई कि अगली पढ़ाई वे कोलकाता में ही जारी रखें. यहां उनका कोई निजी आवास नहीं था. राजेंद्र बाबू के अग्रज एक हॉस्टल में रहते थे. कॉलेज में नामांकन के बाद रहने की समस्या आई तो तय हुआ कि वह अपने अग्रज के छात्रावास में रहने की कोशिश करेंगे. राजेंद्र बाबू को कोलकाता के मारवाड़ी समाज के व बिहार के निवासी देवी प्रसाद खेतान ने राजेंद्र बाबू का परिचय कलकत्ते के मारवाड़ी समाज से कराया. इसी क्रम में बड़ा बाजार में रहनेवाले कोयला व्यवसायी व झरिया निवासी रामजस अग्रवाल से इनका परिचय हुआ. रामजस अग्रवाल की सादगी व गंभीरता से काफी प्रभावित हुए. पढ़ाई पूरी करने के बाद कोलकाता में ही रहकर वकालत करने का फैसला किया. अपनी मंशा रामजस जी को बताया तो उन्होंने भी भरपूर मदद का भरोसा दिया. इसी दौरान उनका यहां आना हुआ था.

दूसरी बार 1936 में आये थे झरिया

1936 के आसपास राजेंद्र बाबू का दूसरी बार झरिया आगमन हुआ था. उन दिनों वह काफी बीमार चल रहे थे और पटना के सदाकत आश्रम में ही उनके आवास था. उन्हें सीढ़ी पर चढ़ने में काफी दिक्कत होती थी. इसलिए उनके लिए झरिया में कोई मंच नहीं बनाया गया था. दो-तीन स्थानों पर उन्होंने खड़े-खड़े भाषण दिया था.

तीसरी बार 1939 में आये थे झरिया 

उनका झरिया का तीसरा दौरा 1939 में हुआ था. उस वर्ष कांग्रेस के राष्ट्रीय अधिवेशन आठ से 12 मार्च तक त्रिपुरी में हुआ था. सुभाष चंद्र बोस लगातार दूसरी बार पार्टी के अध्यक्ष बने थे. उन दिनों वे काफी बीमार थे और झरिया के निकट जामाडोबा में स्वास्थ्य लाभ कर रहे थे. वहां नेता जी की देखरेख उनके भाई कर रहे थे. संगठन के विस्तार एवं भावी कार्यक्रमों पर बात करने के लिए देशरत्न राजेंद्र प्रसाद नेताजी से मिलने जामाडोबा भी गये थे. उन दिनों राजेंद्र बाबू झरिया के मजदूरों की समस्याओं से काफी व्यथित हुए थे और मन ही मन यहां के मजदूरों को संगठित एवं सशक्त बनाने का विचार किया था. चूंकि वह राष्ट्रीय राजनीति में व्यस्त थे, इसलिए उन्होंने अपने शिष्य वर्धा में प्रशिक्षण ले रहे मुकुट धारी सिंह को कांग्रेस की मजदूर इकाई बनाने का जिम्मा दिया था. बाद में उन्होंने यहां से ‘युगांतर’ नामक साप्ताहिक पत्र का सफल संपादन किया था. वैसे बताया जाता है कि 1953 में तत्कालीन आइएसएम भी एक कार्यक्रम के सिलसिले में राजेंद्र बाबू का धनबाद आना हुआ था.

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