चाईबासा. चाईबासा स्थित पद्मावती जैन सरस्वती शिशु विद्या मंदिर में प्रांतीय शिशु वाटिका आचार्य प्रशिक्षण वर्ग सह कार्यशाला के तीसरे दिन मंगलवार का शुभारंभ अग्निहोत्र से हुआ. अभाशि वाटिका प्रमुख आशा, विभाग प्रमुख तुलसी प्रसाद ठाकुर, सह विभाग प्रमुख ब्रेन टुडू, प्रधानाचार्य रामाकांत राणा ने संयुक्त रूप से शुरू कराया. अखिल भारतीय शिशु वाटिका सह प्रमुख नम्रता ने परिवार शिक्षण विषय पर कक्षाएं लीं. उन्होंने कहा कि अभिभावक व आचार्य के पारस्परिक सहयोग से बालकों का समग्र विकास होता है.
माताओं से स्थान, भाषा, रहन-सहन खान-पान की जानकारी लें
दूसरे सत्र में आशा थानकी, अखिल भारतीय शिशु वाटिका प्रमुख ने प्रथम से तीन वर्ष के बच्चों की मातृ शिक्षा विषय पर जानकारी दी. शिशु वाटिका की दीदियों को बच्चों की माताओं से स्थान, भाषा, रहन-सहन, खान-पान आदि के विषय में जानकारी लेनी चाहिए. बच्चों के आंतरिक व बाह्य क्रिया-कलापों पर गंभीरता से अवलोकन करना व समस्याओं का शीघ्र समाधान का प्रयास होना चाहिए. तृतीय सत्र में हिना बेन ने बताया गया कि सुवर्ण प्राशन एक उपयोगी औषधि है. इसका उपयोग नियम के साथ बालकों को कराया जाता है.भारतीय शिक्षा परंपरा को पुन: स्थापित करेगी नयी शिक्षा नीति
चतुर्थ सत्र में क्षेत्रीय संगठन मंत्री ख्याली राम ने राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020 की जानकारी दी. उन्होंने कहा कि बीच के काल खंडों में भारतीय शिक्षा परंपरा का ह्रास हुआ है. उसी को पुनः स्थापित करने का काम नयी शिक्षा नीति-2020 कर रही है. उन्होंने संभावना जतायी कि एनइपी को पूर्ण रूप से लागू करने में वर्ष 2047 तक का समय लगेगा. कार्यशाला में 35 प्रशिक्षु प्रशिक्षण ले रहे हैं.डिस्क्लेमर: यह प्रभात खबर समाचार पत्र की ऑटोमेटेड न्यूज फीड है. इसे प्रभात खबर डॉट कॉम की टीम ने संपादित नहीं किया है

