28.7 C
Ranchi

BREAKING NEWS

Trending Tags:

Advertisement

शिबू सोरेन और बिनोद बिहारी के नेतृत्व में ऐसे हुआ झामुमो का उदय, झारखंड आंदोलन में थी बड़ी भूमिका

झामुमो का गठन 4 फरवरी 1973 को धनबाद के गोल्फ ग्राउंड में शिवाजी समाज के संस्थापक बिनोद बिहारी महतो, सोनोत संताल समाज के नेता शिबू सोरेन व प्रखर मार्क्सवादी चिंतक एके राय की अगुवाई में हुआ.

बेरमो, राकेश वर्मा: छोटानागपुर व संताल परगना सहित मध्य प्रदेश, ओडिशा, छत्तीसगढ़ व बंगाल के आदिवासी बहुल जिलों को मिला कर अलग झारखड राज्य की मांग भले ही आजादी से पहले की हो, लेकिन इसे धार देने और अंजाम तक पहुंचाने का काम झारखंड मुक्त मोर्चा ने ही किया. जिसके फलस्वरूप 15 नवंबर 2000 को देश के 29वें राज्य के रुप में झारखंड का उदय हुआ.

झामुमो का गठन 4 फरवरी 1973 को धनबाद के गोल्फ ग्राउंड में शिवाजी समाज के संस्थापक बिनोद बिहारी महतो, सोनोत संताल समाज के नेता शिबू सोरेन व प्रखर मार्क्सवादी चिंतक एके राय की अगुवाई में हुई. झामुमो के पहले अध्यक्ष बिनोद बिहारी महतो और महासचिव शिबू सोरेन चुने गये थे.

शिथिल पड़ी आंदोलन को दी धार

झामुमो के गठन का प्रमुख उद्देश्य अलग झारखंड राज्य का निर्माण करना ही था. इसके लिए आंदोलन में सभी वर्ग के लोगों को जोड़ा गया, इससे संगठन में नई जान आ गयी. हालांकि, दिशोम गुरू शिबू सोरेन को पहचान महाजनी प्रथा के खिलाफ बिगुल फूंकने के दौरान ही मिल गयी थी. यही वजह है कि जब संगठन का निर्माण हो रहा था तब कई लोग उनसे प्रभावित होकर जुड़ते चले गये.

इससे पहले झारखंड राज्य आंदोलन को व्यापक रुप देने और पहचान दिलाने वाले जयपाल सिंह मुंडा और एनई होरो के नेतृत्व वाली झारखंड पार्टी और हुल झारखंड पार्टी का कांग्रेस में विलय हो गया था. इसके बाद आंदोलन लगभग ठप सा हो गया, लेकिन झामुमो ने उसे नई धार दी.

कई दफा झामुमो टूटा

1975 में आपातकाल के दौरान बिनोद बाबू को मीसा के तहत गिरफ्तार कर भागलपुर जेल भेज दिया गया था, उसी दौरान एके राय व शिबू सोरेन को भी गिरफ्तार कर जेल भेज दिया गया. बिनोद बिहारी महतो 19 माह तक भागलपुर जेल में रहें. ऐसा माना जाता है कि 80 के दशक में जब झारखंड आंदोलन जब अपने चरन पर था, उस वक्त धनबाद के उपायुक्त केबी सक्सेना ने झामुमो के उस वक्त के एक कद्दावर नेता को एकीकृत बिहार के मुख्यमंत्री डॉ जगरन्नाथ मिश्रा से मिलवाया था.

डॉ जगरन्नाथ मिश्रा ने उस नेता को देश की तत्कालीन प्रधानमंत्री स्व इंदिरा गांधी से मिलवाया. उसके बाद झामुमो ने साल 1980 में बिहार विधानसभा का चुनाव लड़ा और 11 सीटें जीत ली, जबकि लोकसभा चुनाव में भी 2 सीट अपने नाम किया. लेकिन इसके बाद 1983-84 में झामुमो में मतभेद हुआ और बिनोद बाबू महतो व सोरेन अलग अलग हो गये.

इसके बाद झामुमो के एक गुट के अध्यक्ष बिनोद बिहारी महतो, महासचिव टेकलाल महतो को बनाया गया तो दूसरे गुट के अध्यक्ष निर्मल महतो, महासचिव शिबू सोरेन, उपाध्यक्ष सूरज मंडल को बनाया गया. लेकिन 1987 में निर्मल महतो की हत्या के बाद दोनों गुट फिर से एक हो गये. 1989 के लोकसभा चुनाव में झामुमो के कुल तीन सांसद थे, जबकि 19 विधायक हुआ करते थे.

इसके बाद झामुमो का वर्चस्व तेजी से बढ़ता गया और 1991 के लोकसभा चुनाव में झामुमो ने 6 सीट जीत ली. 1992 में एक बार फिर से झामुमो में बिखराव हुआ. उसके बाद शिबू सोरेन 10 विधायक व 4 सांसद के साथ अलग हो गये. वहीं दूसरे गुट के नेता कृष्णा मार्डी दो सांसद व नौ विधायक के साथ अलग हो गये. लेकिन वर्ष 1999 में झामुमो के कुछ पुराने नेताओं की पहल से झामुमो का एक बार फिर से एकीकरण हुआ.

2018 में बना झारखंड मुक्ति मोर्चा उलगुलान

साल 2018 में झामुमो मार्डी गुट का नया नामकरण झामुमो उलगुलान किया गया. वर्तमान में इसके अध्यक्ष पूर्व सांसद कृष्णा मार्डी तथा महासचिव बेरमो निवासी बेनीलाल महतो है. गत 27 जनवरी 2020 को पूर्व सांसद शैलेंद्र महतो भी झामुमो उलगुलान में शामिल हुए. इसके अलावा इस पार्टी में उपाध्यक्ष पूर्व विधायक अर्जुन राम, गणपत महतो, खेदन महतो, सी कुजूर हैं.

बाद में इस गुट के साथ सचिव नागेंद्र सिंह, भोला प्रसाद, वाशी खान, कृष्ण मुरारी सिंह, कृष्णा थापा, दिगंबर महतो, भीम नाथ मांझी, कमलेश महतो सहित कई लोग जुड़ गयें. 4 फरवरी झामुमो उलगुलान अपना स्थापना दिवस धनबाद के सरायढेला में मनाएगा. इसमें मुख्य रूप से पूर्व सांसद कृष्णा मार्डी, शैलेंद्र महतो, बेनीलाल महतो, पूर्व विधायक सूरज सिंह बेसरा, अर्जुन राम के अलावा कई नेता शिरकत करेंगे.

केंद्र से लेकर राज्य में ऊंचे राजनीतिक ओहदे पर गये झामुमो के कई नेता

झामुमो के संस्थापक शिबू सोरेन केंद्र में दो बार कोयला मंत्री तो झारखंड में तीन बार मुख्यमंत्री बने. शिबू सोरेन के बेटे हेमंत सोरेन झारखंड में भाजपा की अर्जुन मुंडा सरकार में डिप्टी सीएम के अलावा दो बार मुख्यमंत्री बने. वहीं एकीकृत बिहार में एक बार कुछ दिनों के लिए स्टीफन मरांडी डिप्टी स्पीकर तो 1980 में छत्रपति शाही मुंडा एमएलसी बने.

इसके अलावा झामुमो नेता शिबू सोरेन, बिनोद बिहारी महतो, एके राय के अलावा साइमन मरांडी, कृष्णा मार्डी, सुनील महतो, सुमन महतो (स्व सुनिल महतो की पत्नी), राजकिशोर महतो के अलावा ओडिशा के मयूरभंज से सुदामा मरांडी ने भी सांसद तक का सफर तय किया.

बेरमो के इन नेताओ ने दी थी बेरमो में झामुमो को एक नई पहचान

बेरमो में वर्ष 1965 के आसपास से ही झारखंड आंदोलन की सुगबुहाट शुरु हो गई थी. बेरमो के पुराने झामुमो नेताओं में जरीडीह बस्ती के स्व काली ठाकुर, छठु महतो, चार नंबर के स्व मोहर महतो थे, जबकि जरीडीह बाजार के धनेश्वर महतो ने आज भी झामुमो की कमान संभाल रखी है.

1965 से झारखंड आंदोलन से जुड़े स्व काली ठाकुर बेरमो से पार्टी के पहले प्रखंड अध्यक्ष थे. वे लंबे समय तक झामुमो के सचिव रहे. 70 के दशक में मोहर महतो व जरीडीह बाजार के धनेश्वर महतो भी झारखंड आंदोलन से लेकर झामुमो में काफी सक्रिय रहे. धनेश्वर महतो के दिल में तो आज भी झारखंड केशरी बिनोद बाबू बसते हैं. बेरमो निवासी व झामुमो उलगुलान के महसाचिव बेनीलाल महतो लगातार 24 वर्षों तक झामुमो के बोकारो जिला सचिव के पद पर रहे.

बेरमो निवासी स्व युगल किशोर महतो 1967 में अखिल भारतीय झारखंड पार्टी में शामिल हुए. वे बेरमो के समाजवादी नेता मिथिलेश सिन्हा के साथ भी रहे. सन् 1972 में वे झारखंड पार्टी के प्रत्याशी के रुप में चुनाव लड़े लेकिन हार गये. 11 जनवरी 1989 को इनका निधन हो गया.

Prabhat Khabar App :

देश, एजुकेशन, मनोरंजन, बिजनेस अपडेट, धर्म, क्रिकेट, राशिफल की ताजा खबरें पढ़ें यहां. रोजाना की ब्रेकिंग न्यूज और लाइव न्यूज कवरेज के लिए डाउनलोड करिए

Advertisement

अन्य खबरें