चास, सिखों के नौवें गुरु श्री गुरु तेग बहादुर की शहीदी के 350 वर्ष पूरे होने के उपलक्ष्य पर असम से शुरू हुई शहीदी यात्रा मंगलवार को बंगाल-बिहार होते हुए बोकारो स्थित चास गुरुद्वारा पहुंची. सिख समाज के लोगों ने दामोदर नदी पुपुनकी टोल प्लाजा के पास भव्य रूप से स्वागत किया. चास जोधाडीह मोड़ से फूलों की वर्षा और नगर कीर्तन के साथ शहीदी यात्रा को चास गुरुद्वारा में प्रवेश कराया. नगर कीर्तन में सिख समाज के साथ-साथ अन्य धर्मों के श्रद्धालु भी शामिल हुए और ‘धरम हेतु साका जिनि कीआ, सीस दीआ पर सिरड ना दीआ’ का उद्घोष करते हुए गुरु तेग बहादुर जी के बलिदान को नमन किया.
गुरु तेग बहादुर जी का बलिदान धार्मिक स्वतंत्रता, समानता व मानवीय मूल्यों की रक्षा का प्रतीक
नगर कीर्तन के दौरान वक्ताओं ने कहा कि गुरु तेग बहादुर जी का बलिदान धार्मिक स्वतंत्रता, समानता और मानवीय मूल्यों की रक्षा का प्रतीक है. उनका संदेश आज भी उतना ही प्रासंगिक है जितना 350 वर्ष पूर्व था. कहा कि गुरु तेग बहादुर जी महाराज (1621-1675) को ‘हिंद दी चादर’ कहा जाता है. उन्होंने कश्मीरी पंडितों और हिंदुओं पर हो रहे अत्याचार व जबरन धर्मांतरण के खिलाफ आवाज बुलंद की थी. धार्मिक स्वतंत्रता और मानवीय अधिकारों की रक्षा के लिए उन्होंने अपने प्राणों का बलिदान दे दिया. मुगल बादशाह औरंगजेब के आदेश पर दिल्ली में उनका शीश कलम कर दिया गया. गुरु जी के साथ भाई सती दास, भाई मति दास और भाई दयाला ने भी शहादत दी थी. उनकी यह अमर गाथा ना सिर्फ सिख समाज बल्कि संपूर्ण मानवता के लिए प्रेरणा का स्रोत है. मौके पर हजारों श्रद्धालुओं ने माथा टेका. इसके बाद गुरुद्वारा परिसर में लंगर भी चखा. चास के बाद शहीदी यात्रा जमशेदपुर के लिए रवाना हो गयी. मौके पर प्रधान जसमीत सिंह, सचिव सतनाम सिंह, तरसेम सिंह, हरपाल सिंह, मनदीप सिंह, रवींद्र सिंह, इंद्रजीत सिंह, साहेब सिंह, हरबंस सिंह, अमरजीत सिंह, राजवंत कौर, जसबीर कौर, उमेश सिंह, बिक्रम सिंह दोसांझ सहित अन्य उपस्थित थे.
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