विप्लव सिंह, जैनामोड़, 22 सितंबर से शुरू होने वाले शारदीय नवरात्र की तैयारियां जिले में शुरू हो गयी है. कई मूर्तिकार मां की मूर्तियों को तैयार करने में जुटे हुए हैं. हालांकि बारिश को लेकर वह चिंतित हैं. बारिश के कारण मूर्तियों को धूप नहीं मिल पाती, जिससे मिट्टी के सूखने में दिक्कत आती है. लेकिन बारिश की परवाह किये बिना भी मूर्तियों को आकर्षक रूप दिया जा रहा है. कलाकार अपनी मेहनत व कला के प्रति समर्पण से इन मूर्तियों को जीवंत रूप देने में लगे हैं. जहां जरीडीह प्रखंड में कई कलाकार बंगाल से आते हैं और वे वर्षों से यह काम कर रहे हैं, अपनी कला को अगली पीढ़ी तक पहुंचा रहे हैं.
दुर्गाेत्सव को लेकर बंगाल के सिधी के कर्मकार परिवार दुर्गा प्रतिमा के निर्माण कार्य में जुट गये हैं. यह काम कर्मकार परिवारों का पुश्तैनी से है. महंगाई का असर भी इस परिवार के लोगों झेलनी पड़ती है, फिर भी अपनी पुश्तैनी कलाकारी को जीवित रखना चाहते हैं.परिवार के सभी सदस्य करते हैं सहयोग
मूर्तिकार गणेश कर्मकार बताते हैं कि वे 50 साल से मूर्तियां बना रहे हैं. इस काम को वह अकेले नहीं करते बल्कि पूरा परिवार इस काम में सहयोग करता है. दिन-रात मेहनत करके इन प्रतिमाओं को मूर्त और अंतिम रूप देते हैं. मूर्तियां बनाते समय वे हर विवरण पर बारीकी से काम करते हैं, जिससे वे और भी आकर्षक दिखे. उन्होंने बताया कि कलाकारी पूरी निष्ठा और समर्पण के साथ अपनी मूर्तियों को अंतिम रूप देते हैं. मां दुर्गा की प्रतिमा ना केवल धार्मिक आस्था का प्रतीक है, बल्कि यह भारत की समृद्ध कला और संस्कृति का एक महत्वपूर्ण हिस्सा भी हैं. यह संस्कृति पीढ़ी दर पीढ़ी चली आ रही है और वे इसे आगे बढ़ाने के लिए उत्सुक हैं.पुश्तैनी काम को बचाने की इच्छा
गणेश कर्मकार बताते हैं कि बचपन से ही मां दुर्गा प्रतिमा के साथ ही अन्य दूसरी प्रतिमाओं का निर्माण वे करते हैं. अपने बाबा व पिता के साथ इस कार्य को करने में मजा आने लगा. इसके बाद जैसे-जैसे मेरे हाथों में मूर्ति का आकार बनता गया वैसे वैसे मुझे इस कार्य में एक अलग से इच्छा शक्ति मेरे मन में बसती चली गयी. उन्होंने कहा कि पुश्तैनी धंधा होने के कारण यह कला विलुप्त ना हो जाये, इस वजह से मूर्तियों को मूर्त और अंतिम रूप देने में लगे हुए हैं.डिस्क्लेमर: यह प्रभात खबर समाचार पत्र की ऑटोमेटेड न्यूज फीड है. इसे प्रभात खबर डॉट कॉम की टीम ने संपादित नहीं किया है

