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प्रणब मुखर्जी : पांच दशक तक सत्ता के गलियारों में बादशाहत

प्रणब मुखर्जी पांच दशकों तक दिल्ली में सरकारों के बनने-गिरने के गवाह और भागीदार रहे. वह पहली बार जुलाई 1969 में राज्यसभा पहुंचे. इसके बाद उन्हें दिल्ली के सत्ता के गलियारे इस कदर रास आये कि वह वहीं के होकर रह गये. 1973 में प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने उन्हें बतौर उपमंत्री मौका दिया, जिसके बाद वह पायदान-दर-पायदान चढ़ते हुए सत्ता के शिखर तक पहुंचे. प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह 10 साल तक एक गठबंधन सरकार सफलतापूर्वक चला सके, तो इसमें प्रणब दा की बड़ी भूमिका रही.

प्रणब मुखर्जी ने देश की राजधानी के सत्ता के गलियारे में पांच दशकों तक अपना लोहा मनवाया. देश के पूर्व रक्षा मंत्री वीके कृष्ण मेनन कांग्रेस छोड़ने के बाद 1969 में पश्चिम बंगाल की मेदिनीपुर लोकसभा सीट से उप-चुनाव में बतौर निर्दलीय खड़े थे. मेनन को जीत दिलाने में प्रणब मुखर्जी के प्रचार अभियान की बड़ी भूमिका रही. यहीं से इंदिरा गांधी ने उनकी प्रतिभा को पहचाना और उन्हें कांग्रेस में शामिल किया. साथ ही साथ, वह बंगाल की राजनीति से निकल कर दिल्ली आये और दिल्ली के ही होकर रह गये. उनका संसदीय जीवन 50 साल पहले शुरू हुआ. वह पहली बार जुलाई 1969 में राज्यसभा में चुन कर आये. उसके बाद वे 1975, 1981, 1993 और 1999 में भी राज्यसभा के लिए चुने गये. वह 1980 से 1985 तक राज्यसभा में सदन के नेता भी रहे.

प्रणब मुखर्जी ने मई 2004 में लोकसभा का चुनाव जीता और उस सदन के नेता रहे. फरवरी 1973 में पहली बार केंद्रीय मंत्री बनने के बाद मुखर्जी ने करीब 40 वर्षों में कांग्रेस की या उसके नेतृत्व वाली सभी सरकारों में मंत्री पद संभाला. 2004 और 2009 की यूपीए सरकारों में प्रणब मुखर्जी, सरकार और कांग्रेस पार्टी के संकटमोचक के तौर पर काम करते रहे. उन्होंने 26 जून 2012 को वित्त मंत्री के पद से इस्तीफा दिया और इसी के साथ सक्रिय राजनीति से विदाई ली. लेकिन एक नयी भूमिका उनका इंतजार कर रही थी. एक महीने बाद उन्होंने राष्ट्रपति पद की शपथ ली.

40 साल केंद्रीय मंत्रिमंडल में रहे

  • फरवरी 1973 से अक्तूबर 1974 तक उप मंत्री

  • अक्तूबर 1974 से दिसंबर 1975 तक वित्त राज्य मंत्री

  • दिसंबर 1975 से मार्च 1977 राजस्व और बैंकिंग मंत्री (स्वतंत्र प्रभार)

  • जनवरी 1980 से जनवरी 1982 तक वाणिज्य मंत्री

  • जनवरी 1982 से दिसबंर 1984 तक वित्त मंत्री

  • जनवरी 1993 से फरवरी 1995 तक वाणिज्य मंत्री

  • फरवरी 1995 से मई 1996 तक विदेश मंत्री

  • मई 2004 से अक्तूबर 2006 तक रक्षा मंत्री

  • अक्तूबर 2006 से मई 2009 तक विदेश मंत्री

  • जनवरी 2009 से जून 2012 तक वित्त मंत्री

कुछ वक्त कांग्रेस से अलग भी रहे : 1984 में इंदिरा गांधी की हत्या के बाद, उनके पुत्र राजीव गांधी की सरकार में प्रणब मुखर्जी को मंत्रिमंडल में जगह नहीं मिली. इसके बाद उन्होंने कांग्रेस छोड़ कर राष्ट्रीय समाजवादी कांग्रेस नाम से अपनी खुद की पार्टी का गठन किया. लेकिन पीवी नरसिम्हा राव जब प्रधानमंत्री बने, तो उन्होंने प्रणब दा को योजना आयोग का उपाध्यक्ष बनाकर उनकी कांग्रेस की मुख्यधारा में वापसी करायी.

प्रणब मुखर्जी

जन्म : 11 दिसंबर 1935 को, पश्चिम बंगाल के बीरभूम जिले के मिरिती गांव में कामदा किंकर मुखर्जी और राजलक्ष्मी मुखर्जी के यहां हुआ.

परिवार

पिता कामदा किंकर मुखर्जी, एक स्वतंत्रता सेनानी और कांग्रेसी थे, जो ब्रिटिश सरकार के खिलाफ लड़ते हुए 10 वर्ष से भी अधिक जेल में रहे. वह पश्चिम बंगाल विधान परिषद (1952- 64) के सदस्य‍ तथा जिला कांग्रेस समिति, बीरभूम के अध्यक्ष रहे. प्रणब मुखर्जी का विवाह शुभ्रा मुखर्जी से हुआ, जो बांग्लादेश के जशोर में 17 सितंबर, 1940 को पैदा हुई थीं. उनके बेटे अभिजीत मुखर्जी और बेटी शर्मिष्ठा मुखर्जी, दोनों ही राजनीतिक रूप से सक्रिय हैं. अभिजीत पिता द्वारा खाली की गयी लोकसभा सीट जंगीपुर से 2012 में सांसद निर्वाचित हुए थे.

शिक्षा

प्रणब दा ने गांव में ही स्कूली पढ़ाई की. सात किलोमीटर चल कर, नदी पार करके वह स्कूल पहुंचते थे. कॉलेज के लिए वह सिउड़ी स्थित विद्यासागर कॉलेज गये. बाद में उन्होंने कोलकाता विश्वविद्यालय से इतिहास और राजनीति शास्त्र में पीजी डिग्री हासिल की है. कानून में भी डिग्री ली.

करियर

प्रणब मुखर्जी की पहली नौकरी अपर डिवीजन क्लर्क की थी. कोलकाता के उप-महा लेखाकार कार्यालय (डाक एवं तार) में. 1963 में उन्होंने कोलकाता के पास विद्यानगर कॉलेज में लेक्चरर का पदभार संभाला. इस दौरान भी उनकी राजनीतिक सक्रियता जारी रही. चंद वर्षों बाद ही वह पूरी तरह से राजनीति में ही रम गये.

दूसरी पारी रही और भी शानदार

सक्रिय राजनीति से विदा लेकर प्रणब मुखर्जी ने अपनी दूसरी पारी शुरू की. इस दौरान उन्होंने न केवल देश के सर्वोच्च पद को सुशोभित किया, बल्कि सबसे बड़े नागरिक सम्मान भारत रत्न से भी विभूषित किये गये.

जुलाई 2012 पीए संगमा को हरा कर बने राष्ट्रपति

यूपीए के उम्मीदवार के बतौर प्रणब मुखर्जी ने अपने निकटतम प्रतिद्वंद्वी पीए संगमा को हरा कर 22 जुलाई 2012 को राष्ट्रपति निर्वाचित हुए. देश के तेरहवें राष्ट्रपति के रूप में उन्होंने 25 जुलाई को शपथ ली. चूंकि पहले राष्ट्रपति डॉ राजेंद्र प्रसाद दो बार राष्ट्रपति रहे इसलिए वह इस पद पर आसीन होनेवाले 12वें व्यक्ति बने. उन्होंने प्रतिभा पाटिल की जगह ली. वह 69.3 प्रतिशत मत पाकर निर्वाचित हुए थे. उन्हें यूपीए के अलावा सपा, बसपा का समर्थन मिला. वाम मोर्चा के दो घटक दलों सीपीएम और फॉरवर्ड ब्लॉक ने भी प्रणब मुखर्जी को वोट दिया.

जून 2018 राजनीतिक छुआछूत को किया खारिज

राजनीति में आजीवन भाजपा विरोधी रहे प्रणब मुखर्जी ने सात जून 2018 को नागपुर स्थित आरएसएस मुख्यालय पहुंच कर सभी को चौंका दिया था. हालांकि, स्वयंसेवकों को अपने संबोधन में उन्होंने वही बात कही जो हमेशा से उनकी लाइन रही. इस मौके पर उन्होंने खास तौर पर नेहरू के उस कथन का जिक्र किया कि भारतीय राष्ट्रवाद में हर तरह की विविधता के लिए जगह है. प्रणब मुखर्जी के आरएसएस मुख्यालय जाने पर कई कांग्रेस नेताओं ने नाराजगी जाहिर की थी. यहां तक कि उनकी बेटी शर्मिष्ठा मुखर्जी ने भी आपत्ति जतायी थी.

जनवरी 2019 भारत रत्न देने की हुई घोषणा

2019 के गणतंत्र दिवस की पूर्व-संध्या पर 25 जनवरी को भारत सरकार ने प्रणब मुखर्जी, नानाजी देशमुख और भूपेन हजारिका को भारत रत्न देने का एलान किया था. इस मौके पर किये गये ट्वीट में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने प्रणब दा को मौजूदा समय का बेहतरीन राजनेता बताया. प्रधानमंत्री ने देश की सेवा और विकास में उनके योगदान को सराहते हुए उनके बुद्धि और ज्ञान को बेजोड़ करार दिया था. उसी साल आठ अगस्त को राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद ने उन्हें भारत के सर्वोच्च नागरिक सम्मान से सम्मानित किया.

दुर्गा पूजा पर अमेरिकी रक्षा मंत्री को बात करने के लिए कराया इंतजार

कुछ भी हो जाए, दुर्गा पूजा में प्रणब दा अपने गांव जरूर पहुंचते थे और पूजा का दायित्व भी संभालते थे. मनमोहन सरकार के दौरान एक बार अमेरिकी रक्षा मंत्री डोनाल्ड रम्सफेल्ड उनसे बात करना चाहते थे. तब वे गांव में पूजा में व्यस्त थे. एक अधिकारी ने हिम्मत कर कागज पर लिख कर सूचना दी. प्रणब दा ने पेंसिल से लिखा कि इंतजार करने कहिए.

राष्ट्रपति बनने के बाद विजयादशमी से पहले ही उन्हें गांव से दिल्ली लौटना पड़ता था, क्योंकि राष्ट्रपति को दशहरा पर रावण वध में हिस्सा लेना होता है. देश के पहले राष्ट्रपति डॉ राजेंद्र प्रसाद ने इस परंपरा की शुरुआत की थी. राष्ट्रपति रहने के दौरान प्रणब दा नवमी के दिन दिल्ली पहुंच जाते थे और बाकी पूजा की जिम्मेदारी अपने बेटे को सौंप जाते थे.

क्या किताब की शक्ल में आयेगी उनकी गोपनीय लाल डायरी

प्रणब दा के करीबियों ने जिक्र किया है कि उनके पास एक लाल डायरी रहती थी. एकदम गोपनीय. सारा काम खत्म करने के बाद इस डायरी में वह जरूरी बातों को दर्ज करते थे. इस डायरी से समकालीन भारतीय राजनीति के कई वाकयात की हकीकत से पर्दा उठ सकता है. लेकिन इस बारे में प्रणब दा का कहना था कि उनकी यह डायरी उनके अंतिम संस्कार के साथ ही जायेगी. सरकार के काम में हों या राजनीतिक व्यस्तता रही हो, आधी रात के बाद वह डायरी लिखने जरूर बैठते थे.

‘महामहिम’ शब्द से था परहेज

अक्तूबर 2012 में बिहार सरकार ने प्रणब मुखर्जी को बतौर राष्ट्रपति एक सरकारी कार्यक्रम में आमंत्रित किया था. तभी पता चला कि प्रणब मुखर्जी को अपने पदनाम से पहले ‘महामहिम’ जोड़ा जाना पसंद नहीं है. इसलिए उनके कार्यक्रमों से संबंधित बैनर, पोस्टर या निमंत्रण पत्रों में ‘महामहिम’ नहीं लिखा गया.

लकी’ थी 13 की संख्या : 13 की संख्या को बहुत से लोग अशुभ मानते हैं. इस संख्या के पूर्व पीएम अटल बिहारी वाजपेयी से गहरा नाते से सभी परिचित हैं. लेकिन, प्रणब मुखर्जी के लिए भी यह नंबर ‘लकी’ रहा. उनकी शादी 13 जुलाई, 1957 को हुई थी. कैबिनेट में शामिल होने के बाद, जुलाई 1996 से वह तालकटोरा मार्ग स्थित 13 नंबर के बंगले में रहे.

वह संघ के मार्गदर्शक थे और संगठन के प्रति उनका स्नेह था. उनके निधन से आरएसएस की अपूर्णीय क्षति हुई है.

– मोहन भागवत, आरएसएस प्रमुख

प्रणब मुखर्जी जी के निधन पर गहरा दुख हुआ. वह एक बहुत ही अनुभवी नेता थे, जिन्होंने पूरी निष्ठा के साथ देश की सेवा की. प्रणब दा का प्रतिष्ठित करियर पूरे देश के लिए गर्व की बात है.

-अमित शाह, गृहमंत्री

देश ने एक महान नेता खो दिया है. हम दोनों ने भारत सरकार में बहुत नजदीक के साथ काम किया. मैं उनके विवेक, व्यापक ज्ञान और सार्वजनिक जीवन के उनके अनुभव पर निर्भर करता था.

मनमोहन सिंह, पूर्व प्रधानमंत्री

प्रणब मुखर्जी सच्चे अर्थों में बेस्ट पार्लियामेंट्रियन थे. भारतीय समाज, संस्कृति और राजनीति का उनका ज्ञान चमत्कृत करता था. उनसे जब भी निजी रूप से मिलना हुआ, वह देश से लेकर दुनिया स्तर की बात मौलिकता के साथ बताते.

– हरिवंश, पूर्व उपसभापति, राज्यसभा

बाबा आपके फेवरिट कवि की पंक्तियों के जरिये सबको आपका आखिरी गुड बाय कह रही हूं. आपने राष्ट्रसेवा में लोगों की सेवा में अपना जीवन बिताया. आपकी बेटी के तौर पर जन्म को मैं अपना सौभाग्य मानती हूं.

-शर्मिष्ठा मुखर्जी, बेटी

Post by : Prirtish Sahay

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