– शास्त्र के अनुसार बिल्व निमंत्रण शारदीय नवरात्रि की है महत्वपूर्ण परंपरा सुपौल. नवरात्रि के छठवें दिन रविवार को मां दुर्गा के कात्यायनी स्वरूप की पूजा अर्चना की गयी. विभिन्न पूजा पंडाल में श्रद्धालु सुबह से शाम तक माता की पूजा अर्चना में लीन दिखे. विधि विधान के अनुसार संध्या में माता के बेलन्योति का रस्म अदा किया गया. इस मौके पर विभिन्न पूजा समितियां गाजे-बाजे के साथ शोभा यात्रा निकाल कर बेल वृक्ष के पास पहुंची. यहां बेल के जोड़े को लाल कपड़े से बांधा मां दुर्गा के आने का आह्वान किया. तत्पश्चात सोमवार को सप्तमी के दिन बेल के जोड़े को मां के पास लाया जाएगा और फिर मां की पूजा की जाएगी. इसके बाद मां का पट खोला जाएगा. माता के कात्यायनी स्वरूप की पूजा करने से मिलता है मोक्ष शास्त्रों में देवी कात्यायनी के स्वरूप का वर्णन करते हुए लिखा गया है कि वे चार भुजाधारी हैं. पंडित आचार्य धर्मेंद्रनाथ मिश्र बताते हैं कि माता एक हाथ में तलवार, दूसरे में पुष्प, तीसरा हाथ अभय मुद्रा में है. चौथा वर मुद्रा में है. मान्यता है कि मां कात्यायनी की पूजा करने से अर्थ, धर्म, काम और मोक्ष चारों की प्राप्ति हो जाती है. इनके पूजन से शुक्र की स्थिति बेहतर होती है. वैवाहिक जीवन में आने वाली सभी समस्याएं दूर होती हैं. नवरात्रि की षष्ठी तिथि को मां दुर्गा के आह्वान के लिए बेल निमंत्रण पूजा की जाती है. नवरात्र के त्योहार की छटा चारों ओर बिखरी हुई है. भक्तजन माता की पूजा पूरे पर्व के दौरान पूरी आस्था और विश्वास के साथ करते हैं. दुर्गा पूजा को लेकर बाजार में भी रौनक बनी हुई है. जहां लोग जमकर फल-फुल व कपड़े की खरीददारी कर रहें हैं. वहीं शहर के प्रमुख दुर्गा मंदिर समेत ग्रामीण इलाकों में भी पूजा को लेकर सभी तैयारियां पूरी कर ली गई है. इस दौरान माता भगवती के मंदिरों को भव्य रूप से सजाया गया है. रंग-बिरंगे लाइट व लड़ियों के बीच मंदिर की रौनकता अपनी छटा बिखेर रही है. शहर के गांधी मैदान स्थित सार्वजनिक दुर्गा मंदिर, दक्षिणी हटखोला रोड स्थित मालगोदाम दुर्गा मंदिर, निराला नगर स्थित बड़ी दुर्गा मंदिर, ग्रामीण इलाकों में बरूआरी, बरैल, परसरमा, सुखपुर आदि जगहों पर माता भगवती की पूजा-अराधना की जा रही है. इस दौरान मंदिर में सुबह शाम आरती व कीर्तन भजन का आयोजन किया जा रहा है. वैदिक मंत्रोच्चार से भक्तिमय है माहौल वहीं वैदिक मंत्रोच्चार से वातावरण भक्तिमय माहौल में व्याप्त है. वहीं श्रद्धालुओं के बीच अलग ही उत्साह कायम है. लोग अपने घरों में कलश स्थापन कर भक्ति में लीन है. अधिकांश लोग 09 दिनों तक फलाहार व्रत कर भगवती की पूजा-अराधना कर रहें हैं. संध्या के समय में सभी मंदिरों से वैदिक मंत्रोच्चार के साथ माता के लिए बिल्व निमंत्रण का पत्र निकाला गया. भगवती को भूलोक पर आने का दिया गया न्योता : आचार्य आचार्य धर्मेंद्र नाथ मिश्र ने बताया कि बिल्व निमंत्रण शारदीय नवरात्रि की बहुत ही महत्वपूर्ण परंपरा है. दुर्गा पूजा उत्सव में कलश स्थापना पश्चात षष्ठी, महासप्तमी, महाअष्टमी, महानवमी और विजयादशमी का विशेष महत्व होता है. कहा कि सर्वप्रथम बिल्ववृक्ष की विधिवत पूजा करके, बिल्व निमंत्रण पूजन में आद्यशक्ति माता दुर्गा को बिल्ववृक्ष के युग्म फलों पर भूलोक आने का न्योता दिया जाता है. फिर महासप्तमी के दिन पुनः प्रातः काल विधिवत बिल्ववृक्ष की पूजा करके निमंत्रण दिया हुआ बिल्व के साथ माता का आगमन होता है. उन्होंने बताया कि युग्म फलों पर आदिशक्ति मां दुर्गा आवाहित होती है. तत्पश्चात उनका प्रतिमा में प्राण प्रतिष्ठा की जाती है. प्रतिमा प्राण प्रतिष्ठा के बाद मां दुर्गा की नेत्रदान के साथ सांगोपांग उपासना की जाती है एवं महासप्तमी के दिन से ही मंदिर का पट खोला जाता है और प्रतिमा का दर्शन किया जाता है. शारदीय नवरात्र में कन्या पूजन का है विशेष महत्व : आचार्य धर्मेंद्रनाथ मिश्र शारदीय नवरात्रि के अवसर पर अष्टमी और नवमी तिथि पर घरों एवं मंदिरों में कुमारी कन्या पूजन और प्रसाद ग्रहण की परंपरा निभाई जाती है. इस परंपरा के पीछे गहरा आध्यात्मिक रहस्य छिपा हुआ है. पंडित आचार्य धर्मेंद्रनाथ मिश्र ने बताया कि शास्त्रों में अलग-अलग आयु वर्ग की कन्याओं को विशिष्ट नामों और फलों से जोड़ा गया है. कहा कि कन्या पूजन की 02 वर्ष की कन्या कुमारी, 03 वर्ष की कन्या त्रिमूर्ति, 04 वर्ष की कन्या कल्याणी, 05 वर्ष की कन्या रोहिणी, 06 वर्ष की कन्या कालिका, 07 वर्ष की कन्या चंडिका, 08 वर्ष की कन्या शांभवी, 09 वर्ष की कन्या दुर्गा एवं 10 वर्ष की कन्या सुभद्रा होती है. आचार्य मिश्र के अनुसार एक वर्ष की कन्या का पूजन नहीं करना चाहिए, क्योंकि वह गंध और स्वाद से अनभिज्ञ रहती है. वहीं, 10 वर्ष से अधिक आयु की कन्याओं का पूजन शास्त्रों में निषिद्ध बताया गया है. कहा कि कन्या पूजन से विशेष फल की प्राप्ति होती है. कुमारी की पूजा से दुख-दरिद्रता का नाश होता है. त्रिमूर्ति पूजन से धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष की प्राप्ति होती है. कल्याणी पूजन से ऐश्वर्य और यश की प्राप्ति होती है. कालिका पूजन से शत्रु शांत होते हैं. चंडिका पूजन से समस्त सिद्धियां मिलती हैं. शांभवी पूजन से संग्राम में विजय प्राप्त होती है.
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