गड़बड़ी. 2003 में शुरू हुई मुकदमे की खोज, आज भी अधूरी
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14 वर्ष पूर्व लापता हुआ केस
गड़बड़ी. 2003 में शुरू हुई मुकदमे की खोज, आज भी अधूरी जिले के िकसनपुर थाना में दर्ज कांड संख्या 73/97, 2002 से गायब है. मामला शिक्षा विभाग के कर्मचारियों व पदाधिकारियों द्वारा दो फर्जी शिक्षक के वेतन के नाम पर कोषागार से सात लाख 11 हजार 712 रुपये की सरकारी राशि के गबन से जुड़ा […]
जिले के िकसनपुर थाना में दर्ज कांड संख्या 73/97, 2002 से गायब है. मामला शिक्षा विभाग के कर्मचारियों व पदाधिकारियों द्वारा दो फर्जी शिक्षक के वेतन के नाम पर कोषागार से सात लाख 11 हजार 712 रुपये की सरकारी राशि के गबन से जुड़ा है.
सुपौल : जिले के किसनपुर थाना में कांड संख्या 73/97, उम्र-19 वर्ष 02 माह 20 दिन, बीते 2002 से थाना से ही लापता है. मुकदमे की खोज आरटीआइ कार्यकर्ता अनिल कुमार सिंह द्वारा वर्ष 2003 में आरंभ हुई, जो आज भी अधूरी है. इस दौरान आरटीआइ कार्यकर्ता ने मुख्यमंत्री के जनता दरबार तक में मुकदमा ढूंढने की गुहार लगायी,
लेकिन नतीजा ढ़ाक के तीन पात रहा. एक बार फिर आरटीआइ कार्यकर्ता ने जब जिला लोक शिकायत निवारण कार्यालय में गुहार लगायी तो मुकदमा को खोजने में पुलिस जुट गयी है. लोक शिकायत निवारण के जुड़े जवाब में किसनपुर थानाध्यक्ष द्वारा अभी भी बताया जा रहा है कि कांड में हुई अग्रिम कार्रवाई ज्ञात करने में अभी और समय की आवश्यकता है.
क्या है कांड संख्या 73/97 : यह मामला शिक्षा विभाग के कर्मचारियों व पदाधिकारियों द्वारा दो फर्जी शिक्षक के वेतन के नाम पर धोखाधड़ी व जालसाजी के आधार पर स्थानीय कोषागार से सात लाख 11 हजार 712 रुपये की सरकारी राशि के गबन से जुड़ा हुआ है. तब उस मामले को 1997 में आरटीआइ कार्यकर्ता अनिल कुमार सिंह द्वारा उठाया गया था. जिसके बाद विभाग द्वारा किसनपुर थाना में कांड संख्या 73/97 दर्ज कराया गया.
14 अधिकारी व कर्मी पाये गये थे दोषी : तत्कालीन एसपी ने 20 नवंबर 2001 के अपने पर्यवेक्षण प्रतिवेदन में भ्रष्टाचार के इस मामले को सत्य करार दिया. जिसमें उन्होंने 14 अधिकारी व कर्मी को दोषी ठहराया. जिसमें बिहार शिक्षा सेवा के राजीव रंजन प्रसाद, सुरेश प्रसाद, विजय कुमार, तत्कालीन जिला शिक्षा अधीक्षक मो फैजुल इसलाम, तत्कालीन जिला शिक्षा उपाधीक्षक सहरसा हरिशचंद्र झा, तत्कालीन क्षेत्र शिक्षा पदाधिकारी पिपरा भागवत प्रसाद, प्रधान लिपिक फुलो राम, लिपिक मो अली, एचएम एसके यादव, सूबेलाल यादव, अब्दुल बारी, उपेंद्र प्रसाद यादव के अलावा फर्जी शिक्षक प्रमोद कुमार व बलदेव मंडल को दोषी माना गया था.
एक बार फिर मुकदमा ढूंढ़ने में जुटी पुलिस : आरटीआइ कार्यकर्ता ने एक बार फिर सात दिसंबर 2016 को मुकदमा ढूंढने की गुहार जिला लोक शिकायत कार्यालय में लगायी. इसके जवाब में किसनपुर थानाध्यक्ष द्वारा जिला लोक शिकायत निवारण पदाधिकारी को भेजे पत्र में थानाध्यक्ष ने कहा है कि फिर यह मामला डीपीसी एक्ट के तहत दर्ज हुआ था. भ्रष्टाचार निरोध अधिनियम में कांड सत्य पाये जाने के तहत इस कांड का अनुसंधान तत्कालीन एसडीपीओ द्वारा किया जा रहा था. यह कांड पुराना है, इसलिये कांड में हुई अग्रिम कार्रवाई ज्ञात करने के लिए और समय की आवश्यकता है. इसके लिये थानाध्यक्ष ने अगली तिथि निर्धारित करने की मांग की गयी. जिसके जवाब में प्राधिकार द्वारा 22 दिसंबर की तिथि मुकर्रर की गयी है.
सवालों के घेरे में पुलिस की कार्यशैली
बीते 19 वर्षों से किसनपुर थाना के लंबित मुकदमे की सूची में कांड संख्या 73/97 हमेशा पहले नंबर पर दर्ज रहा है, लेकिन वर्ष 2002 के बाद इस कांड के अनुसंधानकर्ता कोई नहीं है. इन बीच के वर्षों में कई आलाधिकारी जिले में पदस्थापित हुए व चले गये, लेकिन खोये हुए मुकदमा को वापस लेने की कोशिश नहीं की गयी. इस मुकदमे पर आलाधिकारी की अंतिम इनायत 30 अप्रैल 2003 को हुई जब छठा पर्यवेक्षण प्रतिवेदन निर्गत किया गया. अब 13 वर्ष के बाद भी सातवें प्रतिवेदन का इंतजार है. हैरानी तो इस बात की है कि पुलिस अधीक्षक द्वारा जो अब तक छह प्रतिवेदन निर्गत किये गये हैं, उस पर कोई कार्रवाई नहीं की गयी. इस मुकदमें की एक और बड़ी खासियत यह है कि गबनकर्ता ही मुकदमा का सूचक बन गया था, जो बाद में अभियुक्त साबित हुआ.
इस संदर्भ में 2003 में तत्कालीन थानाध्यक्ष सह अनुसंधानकर्ता के द्वारा डायरी लिखी गयी, लेकिन उसके बाद अब तक कोई अनुंसधानकर्ता के द्वारा डायरी नहीं लिखी गयी. मामला विजिलेंस कोर्ट में लंबित है. मुकदमा के संदर्भ में जानकारी इकट्ठा की जा रही है.
वीणा कुमारी, एसडीपीओ सदर, सुपौल
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