Bihar School: सीवान जिले के गोरेयाकोठी में स्थित कर्मयोगी नारायण हाईस्कूल सिर्फ एक शैक्षणिक संस्थान नहीं, बल्कि भारत के स्वतंत्रता संग्राम का मौन साक्षी है. इस विद्यालय की स्थापना वर्ष 1916 में स्वतंत्रता सेनानी नारायण प्रसाद सिंह उर्फ नारायण बाबू ने बसंत पंचमी के दिन की थी. ठीक उसी दिन जब वाराणसी में पंडित मदन मोहन मालवीय काशी हिन्दू विश्वविद्यालय की नींव रख रहे थे. दोनों संस्थान शिक्षा और राष्ट्र निर्माण के प्रतीक बने.
शुरुआत में जब विद्यालय की मान्यता के लिए अंग्रेजी शासन के पास आवेदन भेजा गया, तब कलकत्ता स्थित बोर्ड ने इसे “इंग्लिश हाई स्कूल गोरेयाकोठी” के नाम से रजिस्टर किया. हालांकि अंग्रेजों ने इसका नाम भले ही अंग्रेजी प्रभाव से बदला, लेकिन विद्यालय की आत्मा में राष्ट्रभक्ति और स्वाधीनता का संकल्प रचा-बसा रहा.
डॉ. राजेंद्र प्रसाद, जवाहरलाल नेहरू भी कर चुके हैं इस विद्यालय का दौरा
नारायण बाबू और तत्कालीन प्रिंसिपल चंद्रिका सिंह के नेतृत्व में यह स्कूल देशभक्ति का केंद्र बन गया. स्कूल के शिक्षक शांतिनाथ चट्टोपध्याय नेताजी सुभाषचंद्र बोस के करीबी थे और बंगाल के कई क्रांतिकारी यहां प्रवास करने लगे. इसका प्रभाव इतना बढ़ा कि देशरत्न डॉ. राजेंद्र प्रसाद, जवाहरलाल नेहरू, सरदार पटेल, मोरारजी देसाई और विनोबा भावे जैसे दिग्गज नेताओं ने इस विद्यालय का दौरा किया.
1931 की दांडी यात्रा बनी टर्निंग पॉइंट
महात्मा गांधी के नमक सत्याग्रह से प्रेरित होकर 1931 में इस विद्यालय के छात्रों ने दांडी यात्रा निकाली. अंग्रेजों की दमनकारी नीति के खिलाफ छात्रों की यह यात्रा ऐतिहासिक साबित हुई. पुलिस के साथ झड़प में कई छात्र गिरफ्तार हुए, जिनमें कम्युनिस्ट नेता इंद्रदीप सिन्हा भी शामिल थे. इसके बाद नारायण बाबू और चंद्रिका सिंह को भी अंग्रेजों ने गिरफ्तार किया और स्कूल की मान्यता रद्द कर दी गई.
आजादी के बाद बदला स्कूल का नाम
लेकिन, स्वतंत्रता की लौ को कोई बुझा नहीं सका. आजादी के बाद स्कूल का नाम बदलकर “कर्मयोगी नारायण हाईस्कूल” रखा गया. आज भी यह स्कूल सीवान के शिक्षा और देशभक्ति के इतिहास में एक गौरवशाली प्रतीक है. स्वतंत्रता दिवस और गणतंत्र दिवस पर यहां आयोजित कार्यक्रम आजादी की उस भावना को जीवित रखते हैं, जिसके लिए हजारों युवाओं ने संघर्ष किया था.
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