अनुराग शरण, सासाराम कार्यालय
करीब 50 वर्ष तक सासाराम विधानसभा क्षेत्र की राजनीति तिलौथू स्टेट (राजा की उपाधि वाले) के इर्द गिर्द घूमती रही थी. पहला चुनाव 1952 से 1990 तक तिलौथू स्टेट का राज परिवार राजनीति में सक्रिय रहा था. इस दौरान तिलौथू स्टेट के वारिश कभी बिनोद बिहारी सिन्हा, तो कभी बिपिन बिहारी सिन्हा जीतते-हारते रहे. एक समय 1967 और 1969 का चुनाव ऐसा था कि प्रजा सोशलिस्ट पार्टी से बिपिन बिहारी सिन्हा और कांग्रेस से उनके ही भाई बिनोद बिहारी सिन्हा आमने-सामने रहे थे. 1967 में बिनोद बिहारी सिन्हा जीते थे, तो 1969 में बिपिन बिहारी सिन्हा. यह सब देख कर क्षेत्र के शोषितों में उबाल आ रहा था. जगरोपन सिंह बताते हैं कि 1969 का चुनाव समाप्त होते ही शोषित समाज के दस युवाओं की टोली बनी. टोली में स्व मोहन महतो (जो बाद में नगरपालिका के उप चेयरमैन बने थे), जगदीश सिंह तर्कशील, राधेश्याम सिंह, सत्य नारायण स्वामी, मुखिया रामचंद्र सिंह, वंशरोपन सिंह आदि शामिल थे. चुकि तिलौथू, रोहतास और नौहट्टा क्षेत्र में राजपरिवार का दबदबा था. इसलिए इन्ही प्रखंडों के गांवों को टारगेट किया गया. हम अपने साथ सिर्फ सत्तू रखते थे. जिस गांव में गए, वहीं के लोगों से गोइठा (गोबर का उपला), आटा, प्याज आदि मांगते. लिट्टी-चोखा बनाते और राजनीति की बातें होती. यह सिलसिला हर वर्ष खेती के बाद खाली हो कर हम चलाते रहें. परिणाम सुखद निकला. 1972 में हिंदुस्तान शोषित दल के रामसेवक सिंह को जीत मिली. राज परिवार पहली बार अपने ही कर्मचारी से हार गया था. स्वाभाविक था, तिलमिलाहट थी. सो, इमरजेंसी की समाप्ति के बाद 1977 में जनता पार्टी की आंधी में एक बार फिर राज परिवार के बिपिन बिहारी सिन्हा जीत गये. पर, तीन वर्ष बाद 1980 के चुनाव में पुन: जनता पार्टी (सेकुलर) चौधरी चरण सिंह दल से राम सेवक सिंह को टिकट मिला और जीत हुई. यह जीत सासाराम विधानसभा क्षेत्र में पिछड़ों के लिए टर्निंग प्वाइंट बना. इसके बाद से अब तक कभी कोई सवर्ण यहां से विधायक नहीं बन सका.
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