सासाराम ऑफिस. स्वच्छता केवल अभियान नहीं, संस्कृति होनी चाहिए. प्रधानमंत्री के इस आह्वान को साकार करने के लिए केंद्र सरकार हर साल देशभर के शहरी क्षेत्रों में स्वच्छ सर्वेक्षण आयोजित करती है. इसके अंतर्गत 2025 की रिपोर्ट अब सामने है और सासाराम शहर के लिए यह रिपोर्ट एक गंभीर चेतावनी से कम नहीं है. यहां की स्थिति काफी गंभीर है. राष्ट्रीय स्तर पर सासाराम को 824 शहरों में 624 वां स्थान मिला है, जबकि बिहार राज्य के भीतर 60 में से 39 वां स्थान मिला है. सासाराम की तस्वीर को बिगाड़ने में कचरा संग्रहण (डोर टू डोर कलेक्शन) का 68% होने के साथ-साथ स्रोत पर कचरा पृथक्करण सोर्स सेग्रेशन में 11 कचरा उत्पत्ति बनाम प्रसंस्करण प्रोसेसिंग में 0 डंप साइट समाधान रेमेडिएशन में 0 स्वच्छता रेटिंग जीएफसी स्टार में कोई स्टार नहीं मिलना फाइनल स्कोर 12500 में में 5451 अंक प्राप्त होना तथा ओडीएफ प्रमाणन में केवल खुले में शौच मुक्त के लिए ही प्रमाण मिलना है. इतना ही नहीं, गार्बेज फ्री सिटी (जीएफसी) के लिए निर्धारित 2500 अंकों में से सासाराम को मात्र 116.46 अंक मिले हैं. इसका अर्थ साफ है कि शहर में कचरा निस्तारण, पुनः उपयोग, रीसाइक्लिंग जैसी बुनियादी व्यवस्थाएं जमीनी स्तर पर न के बराबर हैं. यह आंकड़ा केवल एक रैंकिंग नहीं, बल्कि शहर के नगरीय प्रशासन की कार्यप्रणाली, संसाधनों के प्रबंधन, व राजनीतिक इच्छाशक्ति की पोल खोलता है. हालांकि, आवासीय क्षेत्रों की स्वच्छता में 88% व बाजार क्षेत्रों में 94% की स्थिति दर्ज की गयी है, जो सराहनीय है. सार्वजनिक शौचालयों (80%) और जल निकायों (83%) की सफाई भी औसत से बेहतर है. लेकिन यह सभी सुधार सिर्फ सतह पर हैं. बैकएंड मैकेनिज्म यानी कचरे का संग्रह, पृथक्करण, प्रोसेसिंग और डंपिंग का स्थायी समाधान पूरी तरह फेल हो गया है. ऐसे में सासाराम को अपनी ऐतिहासिक, शैक्षणिक व राजनीतिक प्रतिष्ठा के अनुरूप यदि स्वच्छ शहरों की सूची में शामिल होना है, तो सिर्फ अभियान, विज्ञापन व रैंकिंग के भरोसे नहीं चला जा सकता. जरूरत है गंभीर राजनीतिक इच्छाशक्ति, प्रशासनिक सक्रियता और जन सहयोग की. स्वच्छता केवल पुरस्कार की दौड़ नहीं, यह स्वस्थ समाज और सतत विकास की नींव है. इस नींव को मजबूत करना अब टाला नहीं जा सकता. समाधान की दिशा में उठाने चाहिए ठोस कदम लोगों ने रिपोर्ट कार्ड पर कहा कि समाधान की दिशा में कुछ ठोस कदम उठाने चाहिए, जिसमें कचरा पृथक्करण अनिवार्य हो यानी सूखा, गीला और जैव चिकित्सा कचरा अलग-अलग किया जाये. डंप साइट के लिए वैज्ञानिक समाधान व अपशिष्ट प्रसंस्करण संयंत्र की स्थापना की जाये. सामुदायिक भागीदारी के तौर पर वार्ड स्तर पर नागरिक निगरानी समितियों का गठन किया जाए. प्रत्येक वार्ड में मासिक स्वच्छता रिपोर्ट कार्ड जारी हो. रिड्यूस, रीयूज, रीसाइकिल के मूल मंत्र को जन जागरण के जरिए जमीन पर उतारने की जरूरत है.
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