सासाराम ग्रामीण. मार्च महीने की शुरुआत में ही जिले में तापमान 32 डिग्री सेल्सियस पहुंच गया है. मौसम में अचानक हुआ यह बदलाव गेहूं की फसल को नुकसान पहुंचा सकता है. विशेषज्ञों के अनुसार, तापमान अधिक होने से गेहूं का दाना पूर्णरूप से विकसित होने से पहले ही पक जायेगा. इससे गेहूं की उपज प्रभावित होगी. इस वर्ष जिले में लगभग 1.60 लाख हेक्टेयर में गेहूं की बुआई हुई है. अब तक मौसम ने साथ दिया, तो गेहूं की फसल का विकास ठीक हुआ. वर्तमान में गेहूं की बाली निकल चुकी है, इसके बाद दाने का विकास हो रहा है. इसी बीच बदले हुए मौसम ने गेहूं की फसल पर संकट खड़ा कर दिया है. विशेषज्ञों के मुताबिक, गेहूं की फसल पकने के लिए 25-28 डिग्री सेल्सियस तापमान उपयुक्त माना जाता है, लेकिन वर्तमान में यह तापमान 32 डिग्री सेल्सियस तक पहुंच गया है. अधिक तापमान के चलते गेहूं का दाना बिना पूर्णरूप से विकसित हुए ही पक जायेगा. इससे उपज प्रभावित होगी. कृषि वैज्ञानिकों के अनुसार, तापमान पर नियंत्रण नहीं किया जा सकता है. बचाव के लिए किसान गेहूं की फसल की सिंचाई करते रहें. खेत में नमी बनी रहने पर फसल पर गर्मी का असर कम होगा.
नहीं हो पाता है दानों का पूरा विकास
कृषि विज्ञान केंद्र, बिक्रमगंज के कृषि वैज्ञानिक डॉ रामाकांत सिंह ने कहा कि बढ़ते तापमान से गेहूं की बढ़वार रुक जाती है. फसल की लंबाई कम होती है और यह जल्दी पक जाती है. गेहूं में बालियां लगने के बाद दाना भरने के लिए कुछ समय चाहिए होता है. मौसम परिवर्तन के कारण तेज हवा चलती है और तापमान बढ़ जाता है, तो पुष्पन क्रिया शीघ्र हो जाती है. गेहूं की बालियों में दाने नहीं भर पाते हैं. दानों को मजबूती नहीं मिल पाती है, क्योंकि तापमान में तेजी से वृद्धि के कारण दानों का पूरा विकास नहीं हो पाता है और समय से पहले ही दाने परिपक्व हो जाते हैं. दाना कमजोर पड़ जाता है. इससे गेहूं की गुणवत्ता और उपज दोनों पर असर पड़ता है.
गेहूं की फसल में ये काम करें
गेहूं और जौ की फसलों को बढ़ते तापमान प्रभाव से बचाने के लिए दाना भराव और दाना निर्माण की अवस्था पर सीलिसिक अम्ल 15 ग्राम प्रति 100 लीटर का फॉलियर स्प्रे करना चाहिए. सीलिसिक अम्ल का पहला छिड़काव बलियां निकलते समय और दूसरा छिड़काव दूधिया अवस्था पर करने से काफी लाभ मिलेगा. सीलिसिक अम्ल गेहूं को प्रतिकूल परिस्थितियों में लड़ने की शक्ति प्रदान करता है और निर्धारित समय पूर्व पकने में मदद करता है. इससे उपज में गिरावट नहीं होती है. गेहूं और जौ की फसल में जरूरत के अनुसार, बार-बार हल्की सिंचाई करनी चाहिए. इसके अलावा, 0.2 प्रतिशत म्यूरेट ऑफ पोटाश या 0.2 प्रतिशत पोटेशियम नाइट्रेट का 15 दिनों के अंतराल पर दो बार छिड़काव किया जा सकता है.तापमान से नुकसान से बचने के उपाय
गेहूं और जौ की फसलों में बाली आने पर एस्कॉर्बिक अम्ल के 10 ग्राम प्रति 100 लीटर पानी का घोल छिड़काव करने से अधिक तापमान होने पर भी नुकसान नहीं होगा. गेहूं की पछेती बोई फसल में पोटेशियम नाइट्रेट 13:0:45, चिलेटेड जिंक, चिलेटेड मैंगनीज का छिड़काव भी फायदेमंद होता है. वातावरण में बदलाव के कारण गेहूं की फसल में झुलसा रोग का प्रकोप दिखाई दे रहा है तो इसके नियंत्रण के लिए किसानों को प्रोपिकोनाजोल की एक मिलीलीटर मात्रा प्रति लीटर पानी के घोल को दो बार 10 से 12 दिनों के अंतराल पर छिड़काव करना चाहिए.डिस्क्लेमर: यह प्रभात खबर समाचार पत्र की ऑटोमेटेड न्यूज फीड है. इसे प्रभात खबर डॉट कॉम की टीम ने संपादित नहीं किया है