डेहरी़ सावन की पहली सोमवारी को लेकर जिले के विभिन्न शिव मंदिरों को विशेष रूप से सजाया गया है. यहां मंदिरों के रंग रोगन के साथ रंग-बिरंगे झालर बल्ब लगाकर उसे आकर्षक रूप दिया गया है. सोमवारी को मंदिरों में उमड़ने वाली भीड़ के मद्देनजर स्थानीय प्रशासन व मंदिर कमेटी के लोगों द्वारा सामंजस्य स्थापित कर सुरक्षा व्यवस्था को सुदृढ़ किया गया है. इस अवसर पर कई शिव मंदिरों के आसपास लगने वाले मेलों में आने वाले लोगों को कोई परेशानी ना हो, इसके लिए भी प्रशासनिक व्यवस्थाएं की गयी हैं. डेहरी शहर के एनीकट में सोन नदी के तट पर स्थित ऐतिहासिक झारखंडी मंदिर पूजा कमेटी के सदस्य वीरेंद्र प्रसाद सोनी ने बताया इस वर्ष भी यहां स्थानीय प्रशासन के पदाधिकारी व पुलिस के जवानों के साथ-साथ मंदिर कमेटी से जुड़े लोग श्रद्धालुओं को बिना किसी कठिनाई के झारखंडी महादेव पर जल चढ़ाने को लेकर तत्पर है. उन्होंने कहा कि इस बार सावन माह से पूर्व नगर पर्षद की मुख्य पार्षद शशि कुमारी व उनके प्रतिनिधि गुड्डू चंद्रवंशी की पहल पर मंदिर प्रांगण में यात्रियों को धूप और बारिश से बचने के लिए शेड लगाने का कार्य शुरू कराया गया है, जो बहुत जल्द पूरा हो जाने की उम्मीद है. शेड लग जाने के बाद श्रद्धालुओं को काफी राहत मिलेगी. उन्होंने मंदिर में पूजा करने आने वाली श्रद्धालु महिलाओं से विनम्र आग्रह किया कि वह सोने की कोई वैसी वस्तु पहनकर पूजा करने ना आएं, जो भीड़ में खोने लायक हो. झारखंडी मंदिर का इतिहास :– डेहरी के एनीकट में सोन नदी के तट पर स्थित झारखंडी मंदिर का इतिहास काफी पुराना है. उक्त प्रसिद्ध मंदिर पर अंकित शिलालेख के अनुसार मंदिर का निर्माण सन 1876 में किया गया है. मान्यता है कि यह शिवलिंग लगभग तीन हजार साल पुराना है. इसे आदिवासी सावक जातियों ने स्थापित किया था. मंदिर परिसर में कुआं, शिवलिंग, चतुर्मुख लघु स्तंभ तथा नौलखा मंदिर में स्थापित मां सरस्वती की प्रतिमा है. बलुआ पत्थर से बने शिवलिंग का ब्यास 22 सेंटीमीटर तथा ऊंचाई 20 सेंटीमीटर है. चतुर्मुख लघु स्तंभ की ऊंचाई 50 सेंटीमीटर व उसकी भुजाएं 21 सेंटीमीटर है. इस पर वाराह, दही मंथन, कंस द्वारा देवी को शिला पर पटकने, पूतना वध तथा शेषनाग का अंकन है. मान्यता के अनुसार झारखंडी महादेव मंदिर का महत्व प्राचीन समय से रहा है. यह क्षेत्र सिद्ध स्थल रहा है. सोन नदी के तट पर स्थित इस मंदिर में सच्चे मन से मांगी गयी सभी मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं. इतिहासकार डॉ श्याम सुंदर तिवारी के अनुसार शिलालेख भले ही नया है, किंतु इसमें अवस्थित प्रतिमाएं पुरातात्विक महत्व की पूर्व मध्यकालीन है. इस मंदिर को लेकर दूर-दूर तक फैली आस्था के कारण यहां सावन सोमवारी को 50 हजार से अधिक लोग जलाभिषेक करने आते हैं.
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