18.4 C
Ranchi

BREAKING NEWS

Advertisement

ठंड में बरकरार है ठिठुरन, मगर गायब हो गये सामूहिक अलाव

ठंड में बरकरार है ठिठुरन, मगर गायब हो गये सामूहिक अलाव संवाददाता, दिघवारा. ठंड हर किसी को मुश्किल में डालता है एवं जाड़े के इस मौसम में हर इनसान ठंड के बचाव का प्रयास अपने पास मौजूद साधनों के आधार पर करता है. आधुनिकता के साथ ठंड से बचने के उपायों में भी तेजी से […]

ठंड में बरकरार है ठिठुरन, मगर गायब हो गये सामूहिक अलाव संवाददाता, दिघवारा. ठंड हर किसी को मुश्किल में डालता है एवं जाड़े के इस मौसम में हर इनसान ठंड के बचाव का प्रयास अपने पास मौजूद साधनों के आधार पर करता है. आधुनिकता के साथ ठंड से बचने के उपायों में भी तेजी से परिवर्तन आया है और ठंड में दिखनेवाली कुछ बातें तो ग्रामीण व शहरी इलाकों से लुप्त प्राय होने लगी हैं. ऐसा लगता है कि मानव ठंड के कुछ क्रियाकलाप जो कुछ वर्षों पूर्व तक देखे जाते थे. अब अतीत की बातें बन कर रह गयी हैं. भागदौड़ की जिंदगी के बीच हर कोई फटाफट तरीकों का इस्तेमाल कर ठंड से बचने की कोशिश करता है. आधुनिक युग के रूम हीटर, वाटर हीटर, गीजर, सामान्य हीटर व अन्य साधनों ने ठंड से बचने के पारंपरिक साधनों को समाप्ति की ओर धकेल दिया है. सामूहिक अलाव के दौरान होती थी ग्रामीण समस्याओं पर चर्चाकुछ दशक पूर्व गांवों में ठंड के मौसम में सुबह व शाम में निर्धारित जगहों पर, निर्धारित समय पर सामूहिक अलाव जला करता था. उस आग की चारों ओर घंटों बैठ कर दर्जनों ग्रामीण ठंड से बचाव करते थे. साथ ही सामाजिक व राजनीतिक विषयों पर चर्चा होती थी. गांव के लोगों की तकलीफों के अलावे उपलब्धियों समेत ग्रामीण समस्याओं पर चर्चा होने के साथ कई विषयों पर सामूहिक निर्णय लिये जाते थे. अब गांव तो है मगर इन गांवों से सामूहिक अलाव गायब है. पैसा कमाने की चाह के बीच न तो किसी को अलाव जलाने की फुरसत है और न ही अलाव के पास बैठने का समय. आधुनिक सामान दे रहे हैं पारंपरिक साधनों को टक्करग्रामीण व शहरी इलाकों में कुछ दशक पूर्व तक लोग ठंड के दिनों में लकड़ी व कोयले के चूल्हों का इस्तेमाल करते थे एवं खाना बनाने के बाद इन्हीं चूल्हों के पास बैठ कर भोजन करने के अलावे आग तापते हुए पारिवारिक विषयों पर चर्चा होती थी. ठंड से पूर्व मिट्टी की बोरसी तैयार कर ठंड के समय हर घरों में उसका इस्तेमाल होता था. मगर अब शहरों की कौन कहें गांवों में भी रूम हीटर का बहुतायात प्रयोग होने लगा है. वाटर हिटर व गीजर ने ठंड के अनुभव को ही समाप्त कर दिया. खूब होता था पुआल का उपयोगठंड में जिन घरों में वैवाहिक आयोजन के अलावे अन्य कार्यक्रम होते थे. वहां जमीन पर पुआल के साथ बिछावन लगाया जाता था. ठंड पर पुआल पर सोने का आनंद व ठंड से बचने का तरीका अनोखा मगर अब तो वैवाहिक आयोजनों में ग्रामीण इलाकों में बरातियों को ठहरने के लिए ऐसा इंतजाम नहीं होता है. क्योंकि बरातियों की रात में ही प्रस्थान करने का ट्रेंड विकसित हो गया है. पहनावे में भी आया है तेजी से बदलावपहले ठंड में लोग शरीर पर खूब ऊनी कपड़े पहनते थे. हाथ से बने उनी कपड़ों का ज्यादा प्रयोग होता था. हर कोई चादर व कंबल से लिपट कर एक जगह से दूसरी जगह जाते थे. मगर आधुनिक युग में कोर्ट, जैकेट, बंडी व टोपी ठंड के मुख्य परिधान बन गये हैं. हाथों से बने स्वेटर चंद शरीरों पर ही नजर आते हैं. सिनेमा से भी ठंड का दर्द दूर होने लगा है. वरना एक समय था जब लोग ‘सरकाय दियो खटिया जारा लगे, जारे में बलमा प्यारा लगे’ जैसे गीत खूब गुनगुनाते नजर आते थे.

Prabhat Khabar App :

देश, एजुकेशन, मनोरंजन, बिजनेस अपडेट, धर्म, क्रिकेट, राशिफल की ताजा खबरें पढ़ें यहां. रोजाना की ब्रेकिंग हिंदी न्यूज और लाइव न्यूज कवरेज के लिए डाउनलोड करिए

Advertisement

अन्य खबरें

ऐप पर पढें