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शराबबंदी के बाद बढ़ गयी कोरेक्स के शौकीनों की तादाद

राज्य में पूर्ण शराबबंदी के बाद बढ़ने लगी कॉरेक्स के शौकीनों की तादाद दवा नहीं, नशा का जरिया बन गया कॉरेक्स सहरसा : कॉरेक्स का नाम सुनते ही खांसी की दवा की याद आती है. लेकिन आज इस जीवन दायिनी दवा को जानलेवा दारू के रूप में इस्तेमाल किया जा रहा है. स्थिति यह है […]

राज्य में पूर्ण शराबबंदी के बाद बढ़ने लगी कॉरेक्स के शौकीनों की तादाद
दवा नहीं, नशा का जरिया बन गया कॉरेक्स
सहरसा : कॉरेक्स का नाम सुनते ही खांसी की दवा की याद आती है. लेकिन आज इस जीवन दायिनी दवा को जानलेवा दारू के रूप में इस्तेमाल किया जा रहा है. स्थिति यह है कि शराबबंदी के बाद स्थानीय स्तर पर नशे के आदि अधिकतर युवा इसकी चपेट में आ गये हैं. युवाओं में इसका स्वाद चखने की प्रवृत्ति बन गयी है. यह बात शुक्रवार को शहर के बंगाली बाजार स्थित भारत मेडिकल एजेंसी व वार्ड नंबर 22 स्थित सिद्धि फार्मा में हुई छापेमारी के बाद लोगों के जेहन में है.
चिकित्सक बताते हैं कि कॉरेक्स के अधिक सेवन से लीवर में खराबी आ जाती है. इससे मानव शरीर में प्रतिरोधक क्षमता कम हो जाती है. यह नेपाल व पटना से दवाइयों के साथ सहरसा पहुंचता है. शराबबंदी का असर सुरा प्रेमियों पर ज्यादा पड़ने लगा है. शराब पीने वाले तरह-तरह के नशे के तरकीब ढूंढ़ रहे हैं. शराबबंदी के बाद कई चौंकाने वाली बातें सामने आयी हैं.
दवा दुकानों पर अचानक कफ सिरप की डिमांड बढ़ गयी है. कफ सिरप को नशे के लिए खरीदा जा रहा है. कॉरेक्स, कॉस्कोपिन, बेनाड्रिल जैसे कफ सिरप का उपयोग नशे में किया जा रहा है. नशेड़ियों का मानना है कि एक बोतल कफ सिरप से एक बोतल शराब जैसा नशा हो रहा है. कफ सिरप में नशे की टेबलेट भी मिलायी जा रही है. कफ सिरफ एक बार पीने से कितनी क्षति होती है. इस संदर्भ में डॉक्टर विनय कुमार सिंह ने बताया कि इसका सबसे अधिक प्रभाव हृदय पर होता है. शराब से भी अधिक खतरनाक कफ सिरप है. दवा दुकानदार कमाई के लोभ में बिना डॉक्टर की परची के कफ सिरप बेच रहे हैं.
दो सौ रुपये तक बिकती है बड़ी फाइल: कॉरेक्स खांसी की दवा है. इसमें अल्कोहल की मात्रा 27 फीसदी होती है. इसके कारण अधिक सेवन से व्यक्ति को नींद आ जाती है. युवा इसका सेवन नशा के रूप में कर रहे हैं, जो गलत है. स्थानीय बाजार में कॉरेक्स का सेवन कर रहे कुछ लोगों ने नाम नही छापने के शर्त पर बताया कि छोटी फाइल सौ रुपये, बड़ी फाइल दो सौ रुपये में मिलती है. कभी-कभी यह 200 रुपये के पार भी पहुंच जाता है. चिकित्सक कहते है कि कॉरेक्स में इंसिड्रील नामक तत्व पाया जाता है, जो नशीला होता है. यदि लोग यदि इसका इस्तेमाल नशे के रूप में कर रहे हैं तो वह इसके जिम्मेदार स्वयं ही हैं.
दवाई विक्रेताओं को चाहिए कि वे बिना प्रिस्क्रिप्शन की दवा न दें. यदि वे ऐसा करते हैं तो गलत है. बड़े शहरों में दवा बिना प्रिस्क्रिप्शन के नहीं दी जा रही है. सहरसा में भी इस फार्मूले को अपनाया जाना चाहिए. ताकि इस तरह की दवाईयों की बिक्री पर प्रतिबंध लग सके. रिटेलर भी बिना प्रिस्क्रिप्शन के दवा न बेचें. जेल में बंद कैदी जो इसके आदी हैं उनका कॉरेक्स मंगाने का साधन निराला है. मिली जानकारी के अनुसार पेशी के लिए कोर्ट आने पर बंदियों को परिसर में कॉरेक्स विभिन्न स्त्रोतों से उपलब्ध हो जाता है.
स्वास्थ्य के लिए है हानिकारक : बाजार में खुलेआम बिक रहे बेनाड्रिल में डाईफिनेगाई, ड्रामाइन, हाइड्रोक्लोराईड, अमोनियम क्लोराइड, सोडियम नाइट्रेट है. भारत सरकार के स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रालय के 10 मार्च के गजट के पेज नंबर 139 पर लिखा है कि डायफेनहाइडामाईन, टेरपाइन, अमोनियम क्लोराइड, सोडियम क्लोराइड, मैथोल की नियम खुराक संयोजन औषधि के प्रयोग से मानव जीवन को खतरा होने की आशंका है. जबकि लोग जानकारी के अभाव में सर्दी, खांसी के बाद मेडिकल स्टोर से खरीद कर खुलेआम प्रयोग कर रहे हैं.

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