18-34 आयु वर्ग (Age Group) के लगभग 30% भारतीय युवा रोजाना अकेलापन महसूस करते हैं और 41% तक सामाजिक अलगाव का अनुभव करते हैं. यह समस्या ना सिर्फ बेरोजगार युवाओं की है बल्कि अच्छी नौकरीकरने वाले युवाओं की अहम समस्या बनकर उभरा है. ये बातें क्लिनिकल साइकोलॉजिस्ट ईशा सिंह ने कहीं. उन्होंने बताया कि अकेलापन आजकल युवाओं को अवसाद, चिंता और सुसाइड की ओर ले जा रहा है इसलिए इस विषय पर खुलकर बात करने की जरूरत है. उन्होंने बताया कि इस तरह की समस्या लेकर युवा क्लिनिक पहुंच रहे हैं.
सोशल साइट की चमक-धमक जीवन में ला रहा एकाकीपन
अलग-अलग सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म पर हजारों दोस्त और संपर्क होने के बावजूद युवओं को अकेलापन सता रहा है. तमाम डिजिटल माध्यमों पर एक्टिव रहने के बावजूद वह लोगों से सार्थक जुड़ाव से वंचित रह जाते हैं. सोशल साइट उनकी जिंदगी में एकाकीपन ला रहा है. फेक स्टेटस के चक्कर में वह मानसिक अवसाद की ओर जा रहे.
डॉ. ईशा ने क्या कहा ?

डॉ. ईशा सिंह ने बताया कि शोर-शराबे, भागदौड़ और सतही सफलता के पीछे, ज्यादातर लोगों में असंतोष की एक गहरी भावना होती है और स्वीकार किए जाने और समझे जाने की चाहत होती है. उन्होंने बताया कि युवाओं में अकेलेपन को दूर करने की तत्काल आवश्यकता है. समझ और स्वीकृति के लिए जगह बनाकर उसे बढ़ावा देकर,हमें युवाओं को अकेलेपन से निकालने की जरूरत है.
स्टेटस मेंटेन करने के चक्कर में दिखावा कर रहे युवा
आजकल लोग भौतिकवादी दुनिया में स्टेटस मेंटेन करने के लिए सोशल मीडिया पर सबकुछ अच्छा- अच्छा दिखाते हैं लेकिन सच्चाई इसके उलट होती है. हैप्पी मोंमेट्स के फोटो अपलोड करने के बाद भी वह निंतात अकेला महसूस करते फिर उन्हें यह चिंता सताने लगती कि आज कोई भी उनके लिए वास्तव में खुश नहीं है, उन्हें सलाह नहीं दे रहा है, उनकी मदद नहीं कर रहा है या बिना किसी निर्णय के उनकी बात नहीं सुन रहा है.
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अवसाद से आत्महत्या तक का सफर
अवसाद और चिंता अपने चरम पर हैं और लगभग 20-25% भारतीय युवा इससे प्रभावित हैं. फलस्वरूप युवाओं में मादक द्रव्यों का सेवन, सड़क पर गुस्सा, रिश्तों का टूटना, आत्मसम्मान की कमी और आत्महत्या के विचार भी बढ़ जाते हैं, जो उन्हें अलग-थलग कर देते हैं.

