Cyber Crimes: डिजिटल युग में जैसे-जैसे ऑनलाइन लेन-देन और इंटरनेट का इस्तेमाल बढ़ा है, वैसे-वैसे साइबर अपराध भी तेज़ी से फैल रहा है. पटना साइबर थाना इसका सबसे बड़ा उदाहरण बन गया है. यहां प्रतिदिन सैकड़ों केस दर्ज हो रहे हैं, मगर जांच करने वाले अफसरों की संख्या और संसाधन उस अनुपात में नहीं बढ़े हैं.
नतीजा यह है कि केसों का बोझ इतना बढ़ चुका है कि एक-एक इंस्पेक्टर 300-400 मामलों की छानबीन में उलझा हुआ है.
हर दिन तीन सौ से ज्यादा मामले दर्ज
पटना साइबर थाना में प्रतिदिन 300 से अधिक साइबर क्राइम केस दर्ज हो रहे हैं. इनमें ऑनलाइन फ्रॉड, डिजिटल अरेस्ट, बैंक धोखाधड़ी, फेक कॉल, और सोशल मीडिया अपराध जैसे मामले शामिल हैं. नए कानून के तहत इन मामलों की जांच इंस्पेक्टर रैंक के अफसरों को करनी होती है. पहले यहां 9 इंस्पेक्टर तैनात थे, हाल में 6 और मिले, जिससे संख्या बढ़कर 15 हो गई. लेकिन केसों की बाढ़ इतनी है कि बढ़ी हुई संख्या भी नाकाफी साबित हो रही है.
थाने में तैनात पुलिस अधिकारियों के मुताबिक, फिलहाल एक-एक इंस्पेक्टर के पास 300 से 400 केस जांच के लिए पड़े हैं. किसी भी केस को सुलझाने में तकनीकी जांच, बैंकिंग रिकॉर्ड, डिजिटल फुटप्रिंट और मोबाइल डेटा खंगालने जैसी लंबी प्रक्रिया करनी होती है. जब तक कोई इंस्पेक्टर किसी एक केस में आगे बढ़ता है, तब तक उसे नए दर्जनों मामले और मिल जाते हैं.
दूसरे जिलों से भी दर्ज हो रहे केस
मामलों की संख्या बढ़ने की एक बड़ी वजह यह भी है कि बिहार के दूसरे जिलों के लोग भी पटना साइबर थाना में केस दर्ज करा रहे हैं. औसतन हर दिन आने वाले 300 मामलों में से 200 दूसरे जिलों के होते हैं. जांच में पता चला है कि कई लोग किरायेदार या परिचित के पते का इस्तेमाल कर पटना थाना में रिपोर्ट दर्ज करा रहे हैं. वहीं कई थाने सीधे केस को साइबर थाना फॉरवर्ड कर देते हैं. इससे पटना साइबर थाना का बोझ दोगुना हो गया है.
पटना साइबर थाना के पास फिलहाल डिजिटल अरेस्ट के 45 से अधिक मामले दर्ज हैं. इनमें एक भी केस का खुलासा अब तक नहीं हो पाया है. साइबर थाना प्रभारी डीएसपी नितीश चंद्र धारिया के मुताबिक, आरोपी वीपीएन सर्वर का इस्तेमाल करते हैं. जब पुलिस अकाउंट और ट्रांजेक्शन के सहारे उनके ठिकाने तक पहुंचती है, तो अक्सर सामने आता है कि जिन खातों में पैसा गया, उनके असली मालिकों को इसकी जानकारी तक नहीं होती. पैसे की निकासी ज्यादातर उत्तराखंड, हरियाणा, यूपी, दिल्ली, गुजरात समेत दूसरे राज्यों से हो रही है.
तकनीक और संसाधनों की कमी
साइबर अपराध की जांच महज इंस्पेक्टरों की संख्या से हल नहीं हो सकती. इसके लिए तकनीकी विशेषज्ञता, आधुनिक सॉफ्टवेयर और डेटा ट्रैकिंग की क्षमता की जरूरत होती है. फिलहाल थाना इन संसाधनों से वंचित है. यही वजह है कि अपराधियों के नए-नए तरीके पुलिस को पीछे छोड़ देते हैं.
पटना साइबर थाना की रिपोर्ट यह भी बताती है कि साइबर अपराधियों का नेटवर्क राज्य की सीमाओं से बाहर फैला हुआ है. ज्यादातर कॉल और ट्रांजेक्शन दूसरे राज्यों से जुड़े होते हैं. ऐसे में बिहार पुलिस को स्थानीय स्तर पर कार्रवाई करने के बजाय इंटर-स्टेट समन्वय की जरूरत है.
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