- गैस के संपर्क में आने पर होनेवाली समस्याएं : सिरदर्द,
- सांस लेने में दिक्कत, घबराहट, मितली आना, सोचने की
- क्षमता पर असर, हाथों और आंखों का समन्वय भी गड़बड़ हो जाता है, पेट की तकलीफें बढ़ जाती हैं.
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पटना : शहर की हवा में बढ़ी कार्बन मोनाे ऑक्साइड
पटना : शहर की आबोहवा के लिए घातक पीएम 2.5 के बाद अब हवा से भी हल्की गैस कार्बन मोनो ऑक्साइड नयी दुश्मन बन गयी है. शहर में इस गैस की औसत मौजूदगी 2.5 मिली ग्राम/ घन मीटर है, जबकि इसका मानक प्रति आठ घंटे में 2 मिलीग्राम/ घन मीटर है. यानी शहर की हवा […]
पटना : शहर की आबोहवा के लिए घातक पीएम 2.5 के बाद अब हवा से भी हल्की गैस कार्बन मोनो ऑक्साइड नयी दुश्मन बन गयी है. शहर में इस गैस की औसत मौजूदगी 2.5 मिली ग्राम/ घन मीटर है, जबकि इसका मानक प्रति आठ घंटे में 2 मिलीग्राम/ घन मीटर है. यानी शहर की हवा में इसकी मौजूदगी मानक से अधिक है.
यह ट्रेंड दिसंबर 2018 में देखा गया था. बिहार पॉल्यूशन कंट्रोल बोर्ड की दिसंबर माह की एक रिपोर्ट के मुताबिक कार्बन मोनोऑक्साइड की अधिकतम रिपोर्ट लिमिट से दो गुना अधिक 5.31 मिग्रा/घन मीटर तक दर्ज की गयी है.
कार्बन मोनो ऑक्साइड गैस के स्रोत
स्टोव, घरों में लगे हीटिंग सिस्टम, सिगरेट, जलती हुई सिगड़ी, चिमनियां, वाटर हीटर, केरोसिन हीटर और वाहनों के हेवी इंंजन के गर्म होने से यह गैस उत्पन्न होती है. यह एक रंगहीन व गंधहीन गैस है.
इसे सामान्य रूप से महसूस नहीं किया जा सकता है. जानकारी हो कि शहर में दूसरी गैसें अभी असामान्य नहीं हैं.
इस तरह हो जाती है घातक
कार्बन मोनो ऑक्साइड शरीर को ऑक्सीजन की आपूर्ति करने वाली लाल रक्त कणिकाओं पर असर डालती है. दरअसल जब भी कोई व्यक्ति सांस लेता है तो हवा में मौजूद ऑक्सीजन हीमोग्लोबिन में मिल जाती है.
कार्बन मोनो ऑक्साइड सूंघने से हीमोग्लोबिन ब्लॉक हो जाते हैं, इससे शरीर में ऑक्सीजन का प्रवाह तंत्र प्रभावित हो जाता है. ऑक्सीजन पर्याप्त न मिलने के कारण शरीर के सेल्स मरने लगते हैं.
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