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आज है देव दीवाली कार्तिक पूर्णिमा, दीपक जलाने से सालों भर बनी रहेगी समृद्धि, जानें कैसे

डॉ. श्रीपति त्रिपाठी पटना : इस वर्ष कार्तिक माह की पूर्णिमा यानी की देव दीवाली 4 नवंबर शनिवार को है. इस दिन लाखों दीपों से गंगा के घाटों को सजाया जाता है. पूर्णिमा की तिथि का आरंभ 3 नवंबर की दिन 12 बजकर 58 मिनट से शुरू होकर 4 नवंबर के 11 बजकर 25 मिनट […]

डॉ. श्रीपति त्रिपाठी

पटना : इस वर्ष कार्तिक माह की पूर्णिमा यानी की देव दीवाली 4 नवंबर शनिवार को है. इस दिन लाखों दीपों से गंगा के घाटों को सजाया जाता है. पूर्णिमा की तिथि का आरंभ 3 नवंबर की दिन 12 बजकर 58 मिनट से शुरू होकर 4 नवंबर के 11 बजकर 25 मिनट तक रहेगा. इस दिन अपने घरों में तुलसी के आगे और घर के दरवाजों पर घी के दीपक जलाना शुभ माना जाता है,जिससे पूरे वर्ष सकारात्मक कार्य करने का संकल्प मिलता है. कार्तिक पूर्णिमा को गंगा स्नान के नाम से भी जाना जाता है. इस पूर्णिमा को त्रिपुरी पूर्णिमा की संज्ञा इसलिए दी गयी है क्योंकि आज के दिन ही भगवान भोलेनाथ ने त्रिपुरासुर नामक महाभयानक असुर का अंत किया था और वे त्रिपुरारी के रूप में पूजित हुए थे.

इसकेबारे में विस्तार से बताते हुएडॉ.श्रीपति त्रिपाठी ने बताया कि ऐसी मान्यता है कि इस दिन कृतिका में शिव शंकर के दर्शन करने से सात जन्म तक व्यक्ति ज्ञानी और धनवान होता है. इस दिन चन्द्र जब आकाश में उदित हो रहा हो उस समय शिवा, संभूति, संतति, प्रीति, अनुसूया और क्षमा इन छ: कृतिकाओं का पूजन करने से शिव जी की प्रसन्नता प्राप्त होती है. इस दिन गंगा नदी में स्नान करने से भी पूरे वर्ष स्नान करने का फल मिलता है. महाभारत काल में हुए १८ दिनों के विनाशकारी युद्ध में योद्धाओं और सगे संबंधियों को देखकर जब युधिष्ठिर कुछ विचलित हुए तो भगवान श्री कृष्ण पांडवों के साथ गढ़ खादर के विशाल रेतीले मैदान पर आये. कार्तिक शुक्ल अष्टमी को पांडवों ने स्नान किया और कार्तिक शुक्ल चतुर्दशी तक गंगा किनारे यज्ञ किया। इसके बाद रात में दिवंगत आत्माओं की शांति के लिए दीपदान करते हुए श्रद्धांजलि अर्पित की। इसलिए इस दिन गंगा स्नान का और विशेष रूप से गढ़मुक्तेश्वर तीर्थ नगरी में आकर स्नान करने का विशेष महत्व है।

मान्यता यह भी है कि इस दिन पूरे दिन व्रत रखकर रात्रि में वृषदान यानी बछड़ा दान करने से शिवपद की प्राप्ति होती है. जो व्यक्ति इस दिन उपवास करके भगवान भोलेनाथ का भजन और गुणगान करता है उसे अग्निष्टोम नामक यज्ञ का फल प्राप्त होता है. इस पूर्णिमा को शैव मत में जितनी मान्यता मिली है उतनी ही वैष्णव मत में भी. कार्तिक पूर्णिमा के दिन गंगा स्नान, दीप दान, हवन, यज्ञ आदि करने से सांसारिक पाप और ताप का शमन होता है। इस दिन किये जाने वाले अन्न, धन एव वस्त्र दान का भी बहुत महत्व बताया गया है. इस दिन जो भी दान किया जाता हैं उसका कई गुणा लाभ मिलता है. मान्यता यह भी है कि इस दिन व्यक्ति जो कुछ दान करता है वह उसके लिए स्वर्ग में संरक्षित रहता है जो मृत्यु लोक त्यागने के बाद स्वर्ग में उसे पुनःप्राप्त होता है.

शास्त्रों में वर्णित है कि कार्तिक पूर्णिमा के दिन पवित्र नदी व सरोवर एवं धर्म स्थान में जैसे, गंगा, यमुना, गोदावरी, नर्मदा, गंडक, कुरूक्षेत्र, अयोध्या, काशी में स्नान करने से विशेष पुण्य की प्राप्ति होती है। कार्तिक माह की पूर्णिमा तिथि पर व्यक्ति को बिना स्नान किये नहीं रहना चाहिए. महर्षि अंगिरा ने स्नान के प्रसंग में लिखा है कि यदि स्नान में कुशा और दान करते समय हाथ में जल व जप करते समय संख्या का संकल्प नहीं किया जाये तो कर्म फल की प्राप्ति नहीं होती है. शास्त्र के नियमों का पालन करते हुए इस दिन स्नान करते समय पहले हाथ पैर धो लें फिर आचमन करके हाथ में कुशा लेकर स्नान करें, इसी प्रकार दान देते समय में हाथ में जल लेकर दान करें. आप यज्ञ और जप कर रहे हैं तो पहले संख्या का संकल्प कर लें फिर जप और यज्ञादि कर्म करें.

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