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पुष्पा कुमारी – प्रेरक स्टोरी

पुष्पा कुमारी – प्रेरक स्टोरी नोट: यह स्टोरी संपादक जी को उपलब्ध करवा देंफोटो- महिलाओं के साथ एक कार्यक्रम में पुष्पा कुमारी व अन्य – मुख्यमंत्री से पुरस्कार लेती पुष्पा कुमारी – पुष्पा कुमारी का पर्सनाल्टी फोटोनवादानारी सतात्मक समाज की सोच हमें विकास की मूलधारा में नहीं आने देगा. हम समता मूलक समाज की अवधारणा […]

पुष्पा कुमारी – प्रेरक स्टोरी नोट: यह स्टोरी संपादक जी को उपलब्ध करवा देंफोटो- महिलाओं के साथ एक कार्यक्रम में पुष्पा कुमारी व अन्य – मुख्यमंत्री से पुरस्कार लेती पुष्पा कुमारी – पुष्पा कुमारी का पर्सनाल्टी फोटोनवादानारी सतात्मक समाज की सोच हमें विकास की मूलधारा में नहीं आने देगा. हम समता मूलक समाज की अवधारणा को मानते हैं. जहां बालिकाओं को लङकों जैसा लाङ-प्यार, शिक्षा, सुविधाएं और सामाजिक आजादी मुहैया हो. यह मानना है अबुल कलाम शिक्षा पुरस्कार-2011 से सम्मानित शिक्षिका व समाज सेविका पुष्पा कुमारी का है. पुष्पा मानती है जिस पिता अर्जुन सिंह और माता बसंती देवी ने तमाम झंझावतों को झेल कर हमें इस काबिल बनाया आखिर वह समाज हमारा विरोधी कैसे हो सकता है. महिलाएं पिछङी है पर इसके विकास के तमाम प्रयासों में हम पुरूषों को पीछे करने की वकालत नहीं करते हैं. 12 जुलाई 1969 को कौआकोल के धनावां गांव में पुष्पा कुमारी का जन्म हुआ. वर्ष 1982 जब इनकी आयु मात्र 13 साल की रही होगी, यह ब्याह दी गई. शादी की स्मृतियां तक शेष नहीं बची है. बाल विवाह का यह दंश जेहन में उतर हीं रहा था कि 6 वर्ष बाद विधवा हो गई. बाल विधवा. समाज इसे तिरस्कृत नजरों से देखता है. पर होनी को यही मंजूर था. न इसे पुष्पा जान रही थी और ना हीं इनके परिजन. 1988 में 19 वर्ष की आयु में स्थानीय रिवाज के मुताबिक यह अपना ससुराल गया के धनगांवा गई. एक माह बाद लौटी तो अब तक की आयु विधवापन में मायके में हीं गुजारी. पति को कैंसर हो चुका था. इलाज के दौरान हीं इनकी मौत हो चुकी थी. इधर,पुष्पा अपने माता-पिता के साथ शिक्षा पाने की जद्दोजहद में जुटी थी. बताती हैं 5 वीं तक की पढाई गांव की स्कूल में हुई. आठवीं तक रूपौ के मीडिल स्कूल में पढी. फिर बाबू जी ने कहा-हाई स्कूल दूर है. वहां लङकियां जाती नहीं. तुम्हें जाना है तो दोनों बहन साथ जाओ. पिता ने एक छाता दिया, कहा- यह तुम दोनों को धूप और बरसात से तो बचायेगा हीं साथ हीं इसका इस्तेमाल अपनी सुरक्षा के लिए भी कर सकती हो. फिर क्या था पुष्पा को पंख लग गये. अपनी छोटी बहन के साथ समीप के पांडेय गंगोट गांव स्थित हाई स्कूल आना-जाना शुरू कर दिया. पर मुफलिसी और तंगी इनके साथ आ जा रहा था. इसी बीच स्कूल में चप्पल चोरी हो गई. बाबू जी खरीद नहीं पाये. काफी दिनों तक नंगे पांव खेतों की आरियों से होकर स्कूल जाना पङा. याद है जब बाबू जी ने मैट्रिक की परीक्षा दिलाने के लिए भैंस बेच दी. जो रुपये आये उससे आगे की पढाई भी जारी रखी. इन्हीं दिनों पुष्पा में लीडरशिप पनपने लगा था. पिता कम्युनिष्ठ विचार धारा के थे. लिहाजा पार्टी की गतिविधियां से जोङा रखते थे. कम्युनिष्ठ नीतियों सिद्धांतों की अक्सर चर्चा करते थे. गांवों में जागरूकता जैसे कार्यक्रमों के लिए जाना शुरू कर दिया था. यह सब देखकर पिता को मेरी क्षमता पर भरोसा हो गया. और 1992 में मैं भारत ज्ञान विज्ञान समिति से जुङ गई. इसके लिए प्रशिक्षण लिया. फिर क्या था, मैं आगे बढती चली गई. इन्होंने बताया कि इस दौरान देश के लगभग 23-24 राज्यों का दौरा किया. इसी क्रम में 1998 में विश्व स्वास्थ्य कार्यक्रम के तहत ढाका जाने का भी अवसर मिला. इसके पहले 1994 में नवादा में लङकियों के लिए साइकिल चलाने के प्रशिक्षण की शुरूआत की. सामाजिक सरोकार के मुद्दों को मुखर हो कर उठाने लगी. इनमें महिलाओं को आत्म निर्भर बनाने, शिक्षित करने, इनके स्वास्थ्य, स्वाबलंबन और सामाजिक रूढियों से इन्हें बाहर निकालना का प्रयत्न शुरू कर चुकी थी. रजौली के पहाङी पर बसे कई गांव याद हैं. जो पूरी तरह नक्सलवाद की चपेट में था. वहां महिलाओं की बीच उनके लिये जागरूकता कार्यक्रम चलाया. यह चुनौती भरा प्रयास था. हमने ईमानदारी से निभाने का जतन किया. नवादा शहर में कई सामाजिक कार्यों में हिस्सा बंटा रही थी. तब तक पुष्पा जनवादी महिला संगठन का हिस्सा बन चुकी थी. प्रदेश स्तर की जिम्मेवारी संभाल रही थी. पर आर्थिक फटेहाली कभी साथ नहीं छोङा. इसी दौरान वर्ष 2006 में बाबू जी ने बगैर मेरी जानकारी के हिसुआ के भदसेनी पंचायत में शिक्षक के लिए अप्लाई कर दिया. एक दिन मैं हिसुआ के चौक पर जनवादी महिला संगठन का कार्यक्रम कर रही थी. तभी वहां के मुखिया अभय जी का फोन आया. आज काउंसेलिंग है, आप करवा लें. फिर मेरा चयन शिक्षक पद के लिए हो गया. इसके बाद भी वर्ष 2009 में मुख्यमंत्री अक्षर आंचल योजना से जुङी. मुझे स्टेट रिर्सोस परशन बनाया गया. नवादा और शेखपुरा मेरा कार्य क्षेत्र रहा. मेरी बङी भागेदारी मुझे 2011 में अबुल कलाम आजाद शिक्षा पुरस्कार के करीब ले आया. मुख्यमंत्री नीतीश कुमार जी के हाथों सम्मानित हुई. पुष्पा ने बताया कि शिक्षक बनने के बाद मेरी नियुक्ति भदसेनी पंचायत के दौलतपुर गांव में हुई. यह पूरी तरह दलितों, महादलितों व पिछङों की बस्ती है. स्कूल आने पर गांव की महिलाओं से बातचीत हुई. पता चला यह महिलाएं समीप के दबंगों और महाजनों के चंगुल में पूरी तरह फंसी है. शारीरिक और आर्थिक शोषण हो रहा है. भदसेनी गांव में पार्ड नाम की एक संस्था चल रही थी. मैं इससे जुङ गई. स्वयं सहायता समूहों का गठन करवाया. महिलाओं को आत्म निर्भर बनने के लिए प्रेरित किया. यह सोच साकार हो गया. आज यहां की महिलाओं के खाते में लगभग 25 लाख से ज्यादा की जमा पूंजी है. यह इनकी अपनी कमाई हुई है. यह राशि महिलाएं एक दूसरे के लिए सहयोग करती है. जरूरत पङने पर बैंक भी अपना सहयोग देता है. दौलतपुर गांव विश्व स्तरीय फुटबॉलर मेवालाल जी की जन्म भूमि है. अब इनके नाम पर अपने प्राइमरी स्कूल को बालिका उच्च विद्यालय में उत्क्रमित कराना और दौलतपुर के बच्चों और यहां की महिलाओं के लिए ठोस व कारगर प्रयास करने का इरादा है.पुष्पा कुमारी आज महिलाओं के लिए प्रेरणा का पर्याय बन चुकी है. यह किसी परिचय का मोहताज नही है. पर महिलाओं व बालिकाओं के विकास को लेकर इनके अंदर की आग बुझी नहीं है. इनका मानना है महिलाओं को अभी समानता की लङाई और भी लंबी लङनी होगी.

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