दुखद. आपराधिक गतिविधियों में तेजी से बढ़ रही किशोरों की संख्या
Advertisement
कलम की जगह पकड़ रहे हथियार
दुखद. आपराधिक गतिविधियों में तेजी से बढ़ रही किशोरों की संख्या छिनतई के साथ गंभीर अपराधों में भी किशोर हो रहे शामिल बिहारशरीफ : आये दिन अापराधिक मामलों में पकड़े जाने वाले नाबालिगों की संख्या में इजाफा हो रहा है. ऐसा कोई जुर्म नहीं है, जिसमें नाबालिग शामिल न हों. मोबाइल चोरी व छिनतई से […]
छिनतई के साथ गंभीर अपराधों में भी किशोर हो रहे शामिल
बिहारशरीफ : आये दिन अापराधिक मामलों में पकड़े जाने वाले नाबालिगों की संख्या में इजाफा हो रहा है. ऐसा कोई जुर्म नहीं है, जिसमें नाबालिग शामिल न हों. मोबाइल चोरी व छिनतई से लेकर बलात्कार और हत्या जैसे संगीन मामलों में भी नाबालिगों की बढ़ती तादाद सिर्फ कानूनी एजेंसियों के लिए नहीं, बल्कि हम सभी के लिए चिंताजनक है. पिछले पांच वर्षों के आंकड़े लोगों के लिए सिरदर्द बनते जा रहे हैं. अक्सर ऐसी सूचना मिलती रहती है कि अमूक बच्चे या किशोर ने किसी की हत्या कर दी अथवा किसी अपराध की घटना को अंजाम देते हुए पकड़ा गया. नाबालिगों का आपराधिक घटनाओं में संलिप्त होना बेहद गंभीर मसला है.
पारिवारिक व सामाजिक बदलाव का असर बच्चे के नाजुक दिलों-दिमाग पर भी हो रहा है. परिवार में उचित देखभाल की कमी एवं नैतिक शिक्षा नहीं मिलने से बच्चे अपराध की ओर कदम बढ़ा रहे हैं. नाबालिगों में आक्रामकता की प्रवृत्ति तेजी से बढ़ती जा रही है. यही कारण है कि अभिभावकों, मनोवैज्ञानिकों व समाजशास्त्रियों के लिए यह मुद्दा चिंता का विषय बन गया है. बाल अपराधियों की संख्या में जबर्दस्त वृद्धि के आंकड़े किसी भी सभ्य समाज के लिए शुभ संकेत नहीं हैं. जिनके कंधों पर देश की बागडोर टिकी है, उनका अापराधिक वारदात में संलिप्त होना एक गंभीर मामला है. ऐसे में अभिभावकों व परिजनों की जिम्मेवारी बढ़ जाती है. बच्चों के रहन-सहन एवं उनके मित्रों के संबंध में जरूरी जानकारी रखना जरूरी है.
किशोरों के भटकने के हैं कई कारण : किशोरों के अापराधिक कांडों में शामिल होने के कई कारण हैं. इसमें फिल्में व टेलीविजन की भूमिका की अनदेखी नहीं की जा सकती है. कई प्रकार के कार्यक्रमों में जिस तरह से अपराध और हिंसा करने वालों को नायक के रूप में दिखाया जाता है, उसका बच्चों व किशोरों के दिमाग पर बुरा असर होता है. अपरिपक्व बुद्धि के चलते बच्चे फिल्मों के हीरो या विलेन को अपना रोल मॉडल बना लेते हैं, उपभोक्तावादी संस्कृति भी इसका एक पहलू है. शार्टकट में पैसा कमाने की लालसा इस समस्या का प्रमुख कारण है. आज चमक-दमक सभी नैतिक मूल्यों पर हावी हो रहा है. इसके कारण बच्चों में हर वस्तु को पाने की लालसा बढ़ गयी है.
बच्चों की मांगें जब पूरी नहीं होती हैं, तो मासूम बच्चे गुमराह होकर अपराध की ओर अग्रसर हो जाते हैं. अाक्रामक प्रवृत्ति व अपराध के लिए कुछ हद तक हार्मोन भी उत्तरदायी है. बच्चों का शारीरिक विकास समय से पूर्व से हो रहा है. इस कारण बच्चों में हार्मोन की सक्रियता अतीत के मुकाबले कहीं ज्यादा बढ़ गयी है. नित अनुपात से हार्मोन के अधिक सक्रिय से आक्रामक प्रवृत्ति बच्चों में तेजी से बढ़ रही है.
कौन होते हैं बाल अपराधी
भारतीय कानून के अनुसार 16 वर्ष की आयु तक के बच्चे अगर ऐसा कोई कृत्य करें, जो समाज या कानून की नजर में अपराध हैं, तो ऐसे लोगों को बाल अपराधी की श्रेणी में रखा जाता है. हमारा कानून यह स्वीकार करता है कि किशोरों द्वारा किये गये अनुचित व्यवहार के लिए किशोर स्वयं नहीं, बल्कि परिस्थितियां उत्तरदायी होती हैं. इसी वजह से देश में किशोर अपराधों के लिए अलग कानून और न्यायालय है. बाल अपराधियों को दंड नहीं दिया जाता, बल्कि उनमें सुधार के लिए उन्हें बाल सुधार गृह में रखा जाता है और उन्हें सुधरने का मौका दिया जाता है.
बाल अपराध वाले कृत्य
माता-पिता की अनुमति के बिना घर से भाग जाना, स्कूल से भाग जाना.
अपने पारिवारिक सदस्यों के प्रति अभद्र भाषा का प्रयोग करना.
वैसी आदतें, जो न तो बच्चों के हित में है और न ही परिवार के.
बाल अपराधों की संख्या में तेजी से वृद्धि हो रही है. पहले मोबाइल चोरी समेत अन्य हलके-फुलके आपराधिक घटनाओं में किशोरों की संलिप्तता होती थी, मगर वर्तमान में गंभीर किस्म के अपराधों में भी किशोरों की संलिप्तता देखी जा रही है, जो चिंताजनक है. कंधे पर बस्ता व हाथों में कलम लेने की उम्र में किशोर गंभीर किस्म के अपराधों की ओर बढ़ रहे हैं, जो सभ्य समाज के लिए शुभ संकेत नहीं है. अभिभावकों को इस संबंध में विशेष ध्यान देने की जरूरत है. किशोरों के रहन-सहन व उनके मित्रों के संबंध में अभिभावकों को पूरी जानकारी रखना जरूरी है.
मानवेंद्र मिश्र, प्रधान सदस्य, किशोर न्याय परिषद, नालंदा
ये आते हैं बाल अपराध की श्रेणी में
चोरी करना, लड़ाई-झगड़ा करना, यौन अपराध करना, जुआ खेलना, शराब पीना, अपराधी गुट या समूह में शामिल होना, ऐसी जगहों पर जाना, जहां बच्चों का जाना पूर्णत: प्रतिबंधित है, दुकान से कोई सामान उठा लेना, किसी के प्रति अभद्र भाषा का प्रयोग करना.
आंकड़ों में बाल अपराध
वर्ष – घटनाएं
2010 – 89
2011 – 121
2012 – 114
2013 – 183
2014 – 265
2015 – 240
2016 – 413
2017 – 251
(25 जुलाई 2017 तक)
नौ से 15 तक क्रांति, बना वार रूम
Prabhat Khabar App :
देश, एजुकेशन, मनोरंजन, बिजनेस अपडेट, धर्म, क्रिकेट, राशिफल की ताजा खबरें पढ़ें यहां. रोजाना की ब्रेकिंग हिंदी न्यूज और लाइव न्यूज कवरेज के लिए डाउनलोड करिए
Advertisement