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लगातार बढ़ रहे जन्मजात बीमारियों से पीड़ित बच्चों की संख्या, इलाज की सुविधा नदारद

अतिरिक्त जिले में जन्मजात कान की बीमारी अर्थात श्रवण हानि के कुल 12 बच्चों की पहचान साल 2024 में की गयी है.

– डीईआईसी सेंटर आरंभ होने के बाद भी उपकरण के अभाव में नहीं मिल रहा बच्चों को लाभ

मुंगेर

जिले में जन्मजात बीमारियों से पीड़ित बच्चों की संख्या लगातार बढ़ती जा रही है. हलांकि डिस्ट्रिक अर्ली इंटरवेंशन सेंटर और राष्ट्रीय बाल सुरक्षा कार्यक्रम के तहत ऐसे बच्चों को चिन्हित कर उन्हें इलाज के लिये पटना या गुजरात भेजा जा रहा है, लेकिन जिले में 90 लाख की लागत से जन्मजात बीमारियों से पीड़ित बच्च्चों के लिये बना डिस्ट्रिक अर्ली इंटरवेंशन सेंटर आरंभ होने के बाद भी उपकरण के अभाव में उपयोगी नहीं बन पा रहा है.

जिले में लगातार बढ़ रहे हैं जन्मजात बीमारियों से पीड़ित बच्चों की संख्या

जिले में जन्मजात बीमारियों से पीड़ित बच्चों की संख्या लगातार बढ़ती जा रही है. इसका अंदाजा केवल इसी से लगाया जा सकता है कि साल 2025 के अबतक आरबीएसके द्वारा जन्मजात हृदय रोग से पीड़ित कुल 7 बच्चों की पहचान की गयी है. जबकि तालू कटे अर्थात ओरल क्लेफ्ट के 5 तथा क्लब फूट अर्थात जन्मजात पैर मुड़े 2 बच्चों की पहचान की गयी है. इसके अतिरिक्त जिले में जन्मजात कान की बीमारी अर्थात श्रवण हानि के कुल 12 बच्चों की पहचान साल 2024 में की गयी है. जबकि 2024 में जिले में हृदय रोग से पीड़ित 11, तालू कटे 12 तथा पैर मुड़े कुल 7 बच्चों की पहचान की गयी थी.

90 लाख की लागत से बना डीईआईसी सेंटर अबतक अनुपयोगी

बता दें कि साल 2017 में सरकार द्वारा मुंगेर जिले में आरबीएसके के तहत जन्मजात बीमारियों से पीड़ित बच्चों के लिये डीईआईसी सेंटर बनाने की स्वीकृति दी गयी. जिसके बाद साल 2018 में बीएमआईसीएल द्वारा जिला स्वास्थ्य समिति कार्यालय के समीप 90 लाख की लागत से डीईआईसी सेंटर का निर्माण आरंभ किया गया. वहीं इसका निर्माण कार्य पूरा होने में 7 साल लग गया. बीएमआईसीएल ने 2024 में इसे स्वास्थ्य विभाग को हैंडओवर कर दिया. वहीं इसे स्वास्थ्य विभाग ने आरंभ भी कर दिया है, लेकिन अबतक यहां जन्मजात बीमारियों से पीड़ित बच्चों को भर्ती करने अथवा उनके काउंसलिंग के लिये बेड या अन्य उपकरण नहीं होने के कारण यह केवल डीईआईसी कार्यालय ही बन कर रह गया है.

आयुष चिकित्सकों के भरोसे जिले में आरबीएसके कार्यक्रम

बता दें कि जिले में जिला मुख्यालय सहित सभी 9 प्रखंडों में आरबीएसके की एक-एक टीम कार्यरत है. जिसमें नियमानुसार तो एक चिकित्सक, एक फर्मासिस्ट और एक एएनएम को होना है. लेकिन जिले में आरबीएस के टीम में आयुष चिकित्सकों के भरोसे चल रही है. हद तो यह है कि जिला मुख्यालय में आरबीएसके टीम सहित कार्यक्रम के मॉनिटरिंग को लेकर जिला कॉडिनेटर तक का पद तक प्रभार में चल रहा है. अब ऐसे में हृदय रोग जैसे गंभीर बीमारियों वाले बच्चों के पहचान और इलाज की जिम्मेदारी जिले में आयुष चिकित्सकों के भरोसे है.

कहते हैं सिविल सर्जन

सिविल सर्जन डा. विनोद कुमार सिन्हा ने बताया कि डीईआईसी सेंटर में उपकरण की व्यवस्था की जिम्मेदारी क्षेत्रीय कार्यालय की है. जबकि आरबीएसके टीम में चिकित्सक नहीं होने के कारण आयुष चिकित्सकों को लगाया गया है. साथ ही विभाग को इसकी जानकारी दे दी गयी है.

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