जिले में चैनपुर विस सीट की चर्चा सबसे अधिक, प्रचार ने पकड़ी रफ्तार एक ही सरकार के हिस्सा रहे प्रत्याशी अब एक-दूसरे के बने प्रतिद्वंद्वी चैनपुर. कैमूर जिले में इस दिनों चारों विधानसभा क्षेत्रों में चुनावी सरगर्मी तेज हो गयी है. लेकिन सबसे अधिक चर्चा चैनपुर विधानसभा क्षेत्र की हो रही है. इसका कारण स्पष्ट है क्योंकि यहां दो ऐसे दिग्गज आमने-सामने हैं जो कभी एक ही मंच, एक ही सरकार का हिस्सा रहे हैं. अब हालात ऐसे हैं कि दोनों अलग-अलग राजनीतिक गठबंधन से मैदान में उतर चुके हैं और एक-दूसरे को कड़ा मुकाबला देते नजर आ रहे है, जहां दोनों की साख इस चुनाव में पूरी तरह दांव पर लगी है. एक ओर एनडीए गठबंधन के प्रत्याशी व मंत्री मो जमा खान हैं, जिन्होंने अपने कार्यकाल में विकास और सामाजिक सौहार्द पर विशेष ध्यान देने का दावा किया था, तो दूसरी ओर महागठबंधन के प्रत्याशी और पूर्व मंत्री बृजकिशोर बिंद हैं, जिनका क्षेत्र में मजबूत जातीय व सामाजिक आधार माना जाता है. दिलचस्प बात यह है कि दोनों ही पूर्व में एनडीए सरकार में सहयोगी रह चुके हैं, लेकिन राजनीतिक उतार-चढ़ाव ने आज उन्हें एक-दूसरे का प्रतिद्वंद्वी बना दिया है. # पूर्व मंत्री ने बीजेपी छोड़ थाम लिया राजद का दामन राजनीतिक समीकरणों में सबसे बड़ा बदलाव तब आया, जब एनडीए के घटक दल में टिकट बंटवारे को लेकर असंतोष बढ़ा. इसी असंतोष के कारण पूर्व मंत्री बृजकिशोर बिंद ने भाजपा का साथ छोड़ राजद का दामन थाम लिया. पार्टी बदलते ही उन्होंने महागठबंधन के प्रत्याशी के रूप में चैनपुर से नामांकन दाखिल कर राजनीतिक हलचल बढ़ा दी. भाजपा से जुड़े स्थानीय नेताओं ने उनके इस कदम को अवसरवाद बताया, वहीं समर्थकों का कहना है कि बृजकिशोर बिंद ने सिद्धांतों के लिए यह निर्णय लिया है. अब स्थिति यह है कि एक समय सरकार में एक दूसरे के सहयोगी रहे आज एनडीए से मोहम्मद जमा खान, तो महागठबंधन से बृजकिशोर बिंद एक-दूसरे के खिलाफ चुनावी रणक्षेत्र में उतर चुके हैं. यह मुकाबला न सिर्फ व्यक्तिगत प्रतिष्ठा का प्रश्न बन गया है, बल्कि दोनों दलों के लिए भी सम्मान का मुद्दा बन चुका है. # बसपा चैनपुर में बना रही राजनीतिक त्रिकोण चैनपुर का चुनाव इस बार द्विपक्षीय नहीं, बल्कि त्रिकोणीय होता दिख रहा है. बहुजन समाज पार्टी से धीरज सिंह भी पूरे दमखम के साथ मैदान में उतर चुके हैं. धीरज सिंह चैनपुर विधानसभा क्षेत्र में बसपा की टिकट से पहली बार चुनावी मैदान में उतरे हैं. हालांकि, वे काराकाट से बसपा के ही टिकट से ही लोकसभा चुनाव लड़ चुके हैं. लेकिन चैनपुर में वे राजनीति में पिछले कुछ सालों से काफी सक्रिय रहे हैं, जिसका परिणाम है कि बसपा के आला कमान ने उन पर विश्वास जताया है. इस चुनाव में धीरज सिंह दलित-बहुजन और पिछड़े वर्ग के वोटों पर पकड़ मजबूत करने की रणनीति में जुटे हैं. गांव-गांव घूमकर वे जनता के बीच सीधा संवाद कर रहे हैं. उनका कहना है कि इस बार जनता सुविधा, सम्मान और स्थायी रोजगार चाहती है, जिसे पारंपरिक दलों ने सिर्फ वादों तक सीमित रखा है. # महागठबंधन में बढ़ा अंतर्विरोध महागठबंधन के भीतर भी स्थिति पूरी तरह साफ नहीं दिख रही है. राष्ट्रीय जनता दल ने जहां बृजकिशोर बिंद को अपना प्रत्याशी घोषित किया है, वहीं गठबंधन की सहयोगी वीआइपी पार्टी ने उसी सीट से बालगोविंद बिंद को प्रत्याशी बना दिया. इस दोहरे दावेदारी से महागठबंधन समर्थित कार्यकर्ता भी असमंजस में हैं. दोनों नेता जनता के बीच जाकर खुद को महागठबंधन का अधिकृत प्रत्याशी बताने में जुटे हैं. इससे मतदाताओं में भी भ्रम की स्थिति बनी है कि आखिर महागठबंधन का असली प्रत्याशी कौन है. इस स्थिति का लाभ एनडीए व बसपा उठाने के जुगत में पड़े हैं. # चैनपुर में रोज बदल रहे समीकरण एनडीए का फोकस इस बार विकास और प्रधानमंत्री की नीतियों पर आधारित प्रचार पर है. मोहम्मद जमा खान विकास योजनाओं, सड़क और शिक्षा परियोजनाओं का उल्लेख करते हुए मतदाताओं से सीधा संवाद कर रहे हैं. चैनपुर में बनने वाले मेडिकल कॉलेज की बातें भी एनडीए प्रत्याशी द्वारा कही जा रही है. वे जनसंपर्क के दौरान लोगों को बता रहे हैं कि चैनपुर में ही मेडिकल कॉलेज बनेगा, जिससे क्षेत्र के लोगों को इलाज के लिए कहीं अन्य स्थानों पर जाने की जरूरत नहीं होगी. दूसरी ओर बृजकिशोर बिंद पिछड़ों और गरीब तबके में अपनी पकड़ को मजबूत कर रहे हैं. उनका कहना है कि एनडीए सरकार ने किसानों और मजदूरों को निराश किया है, जबकि राजद जनता के हितों की सच्ची लड़ाई लड़ रही है. बसपा से धीरज सिंह ने भी गांवों में पैदल दौरा और नुक्कड़ सभाओं के माध्यम से अपनी मौजूदगी को दर्ज कराया है. उनके समर्थक मानते हैं कि इस बार जनता पुराने समीकरणों से ऊपर उठकर नया निर्णय कर सकती है. # मतदाताओं में चुनाव को लेकर दिख रही उत्सुकता – ग्राम पंचायतों, बाजारों और दुकानों में सबसे अधिक चर्चा इन्हीं तीन प्रत्याशियों की चल रही है. लोग कह रहे हैं कि पहली बार चैनपुर में मुकाबला इतना दिलचस्प और अनिश्चित हो गया है. जातीय समीकरण इस क्षेत्र में निर्णायक भूमिका निभाती रही है, लेकिन अब इन समीकरणों में बदलाव हुआ है, जिसमें युवा और महिला मतदाताओं का रुझान भी बड़ा कारक बन गया है. महिलाओं के बीच सरकारी योजनाओं, रसोई गैस और स्वास्थ्य सुविधाओं के मुद्दे प्रमुख हैं, जबकि युवाओं में रोजगार और शिक्षा को लेकर नाराजगी दिख रही है. सोशल मीडिया पर भी स्थानीय राजनीतिक बहसें तेज हैं, जहां समर्थक एक-दूसरे पर जमकर आरोप-प्रत्यारोप लगा रहे हैं. # अंतिम जंग में कौन होगा भारी – राजनीतिक विश्लेषक मानते हैं कि इस बार जीत का अंतर बहुत कम रहेगा. यदि बसपा प्रत्याशी ने दलित और अति पिछड़े वर्गों के वोटों को मोटे तौर पर अपने पाले में कर लिया, तो महागठबंधन के अंदरूनी बिखराव से फायदा उन्हें मिल सकता है. दूसरी तरफ, एनडीए प्रत्याशी के पक्ष में सत्ता का अनुभव और क्षेत्रीय विकास का रिकॉर्ड काम कर सकता है. हालांकि, अंततः जीत-हार जनता के मनोभाव और मतदान प्रतिशत पर निर्भर करेगी. इस क्षेत्र में आमतौर पर करीब 60 से 65 प्रतिशत मतदान होता है. यदि इस बार मतदान प्रतिशत बढ़ता है, तो नये मतदाता वर्ग परिणाम तय करने में निर्णायक भूमिका निभा सकते हैं.
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