जमुई . महर्षि वाल्मीकि जयंती के अवसर पर नगर परिषद स्थित आनंद विहार कॉलोनी सिरचंद नवादा में सोमवार को एक विचार गोष्ठी का आयोजन किया गया. विषय था आदि कवि वाल्मीकि के विचारों और रामायण की प्रासंगिकता एवं उपादेयता. कार्यक्रम की अध्यक्षता केकेएम कॉलेज के अर्थशास्त्र विभागाध्यक्ष डॉ गौरी शंकर पासवान ने की. गोष्ठी में विभिन्न शिक्षाविदों, बुद्धिजीवियों और स्थानीय प्रबुद्धजनों ने भाग लिया.
रामायण मानवता की पाठशाला प्रो पासवान
अपने अध्यक्षीय वक्तव्य में डॉ गौरी शंकर पासवान ने कहा कि महर्षि वाल्मीकि भारतीय संस्कृति के वह ऋषि हैं, जिन्होंने शब्दों को जीवन दर्शन में ढाला. रामायण केवल धार्मिक ग्रंथ नहीं, बल्कि समाज, संस्कृति और नैतिकता का संविधान है. उन्होंने कहा कि वाल्मीकि रामायण युग-युग के विषम ज्वर को मापने का थर्मामीटर है, समाज की हलचलों का सीस्मोग्राफ है और मानव मन के कुत्सित विकारों को परखने का सूक्ष्म माइक्रोस्कोप है. प्रो पासवान ने रामायण को मानवता की संपूर्ण पाठशाला बताते हुए कहा कि वाल्मीकि का जीवन स्वयं इस बात का प्रमाण है कि सत्य, तप, त्याग और आत्मबोध से कोई भी व्यक्ति महर्षि बन सकता है.
रसायन विज्ञान विभागाध्यक्ष डॉ शैलेश झा ने कहा कि वाल्मीकि एक ऋषि ही नहीं, बल्कि अनंत काल तक गूंजने वाली वाणी के कवि हैं. उन्होंने कहा कि राम और सीता का यथार्थ चित्रण कर उन्होंने मर्यादा और आदर्श की नींव रखी. वाल्मीकि जी की रामायण केवल साहित्य नहीं, बल्कि समाज को दिशा देने वाली शक्ति है. यह हमारी सांस्कृतिक धरोहर है.”‘बाल्मीकि एक चेतना हैं’ – प्रो सरदार राय
अर्थशास्त्री प्रो सरदार राय ने वाल्मीकि के जीवन की पृष्ठभूमि बताते हुए कहा एक समय के रत्नाकर ने आत्मबोध के माध्यम से तप किया और वाल्मीकि कहलाए. उनके तन पर जब दीमकों ने घर बना लिया, तब उन्हें वाल्मीकि कहा गया. उन्होंने बताया कि आज वाल्मीकि समाज अनुसूचित जाति के रूप में जाना जाता है, लेकिन उनका योगदान पूरी मानवता का मार्गदर्शन करता है.रामायण भारतीय आत्मा की गूंज है – डॉ भारती
डॉ अजीत कुमार भारती ने कहा कि रामायण न केवल हिंदू धर्म का आधार स्तंभ है, बल्कि यह एक अमर कृति है, जो मानव जीवन को आदर्श की राह दिखाती है. गोष्ठी में मौजूद वक्ताओं ने एक स्वर में कहा कि वाल्मीकि भारत की महान आत्मा हैं और उनका योगदान देश का गौरव है.शिक्षा, प्रेरणा और सामाजिक चेतना का स्रोत है रामायण
कार्यक्रम में यह विचार उभर कर सामने आया कि रामायण न केवल एक ग्रंथ है, बल्कि भारत की सामाजिक संरचना, सांस्कृतिक चेतना और नैतिक मूल्यों की आधारशिला भी है. गोष्ठी में स्थानीय नागरिकों, छात्रों और विद्वानों ने भाग लिया.डिस्क्लेमर: यह प्रभात खबर समाचार पत्र की ऑटोमेटेड न्यूज फीड है. इसे प्रभात खबर डॉट कॉम की टीम ने संपादित नहीं किया है

