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शराब माफिया को 10 साल की सजा

गोपालगंज : बिहार में शराबबंदी के बाद हरियाणा से तस्करी कर शराब की खेप बिहार में ला रहे शराब माफिया को गोपालगंज की एक अदालत ने 10 वर्ष का कारावास एवं एक लाख रुपये के अर्थदंड की सजा सुनायी है. अर्थदंड की राशि जमा नहीं करने पर छह माह की अतिरिक्त सजा दी गयी है. […]

गोपालगंज : बिहार में शराबबंदी के बाद हरियाणा से तस्करी कर शराब की खेप बिहार में ला रहे शराब माफिया को गोपालगंज की एक अदालत ने 10 वर्ष का कारावास एवं एक लाख रुपये के अर्थदंड की सजा सुनायी है. अर्थदंड की राशि जमा नहीं करने पर छह माह की अतिरिक्त सजा दी गयी है.
बिहार मद्य निषेध एवं उत्पाद अधिनियम 2016 के तहत यह पहला फैसला है जिसमें शराब के माफिया को 10 वर्षों की सजा मिली है. स्पीडी ट्रायल के तहत स्पेशल कोर्ट अपर जिला एवं सत्र न्यायाधीश दो भरत तिवारी की अदालत ने सुनवाई करते हुए एक शराब माफिया को दोषी पाया था. ध्यान रहे कि हरियाणा के सोनीपत जिले के करवाड़ी के रहने वाले पवन सिंह को उत्पाद विभाग के अधिकारियों ने शराबबंदी लागू होने के बाद 27 नवंबर, 2016 को बिहार-यूपी बॉर्डर पर स्थित जलालपुर चेकपोस्ट के समीप 2980 लीटर शराब के साथ गिरफ्तार किया था. तब से वह चनावे स्थित जेल में बंद हैं. इधर स्पेशल लोक अभियोजक रवि भूषण श्रीवास्तव इस कांड में ट्रायल शुरू कराकर कोर्ट को साक्ष्य उपलब्ध कराने में जुट गये. सुनवाई के दौरान पर्याप्त साक्ष्य अभियोजन पक्ष की तरफ से कोर्ट को दिये गये. उत्पाद अधीक्षक प्रियरंजन की मानें तो उत्पाद अधिनियम के तहत गोपालगंज स्पेशल कोर्ट में कई बड़े शराब कारोबारियों के खिलाफ सुनवाई तेजी से चल रही है.
सभी मामलों में साक्ष्य को उपलब्ध कराकर स्पीडी ट्रायल चालाकर सजा दिलाने की तैयारी में विभाग जुटा हुआ है.
घंटों इंतजार के बाद मिल रहे सिर्फ पांच हजार
बरौली : दिन के 12:30 बजे हैं. बरौली सेंट्रल बैंक में उपभोक्ताओं की भीड़ है. काउंटर पर नवादा गांव के प्रह्लाद साह शादी का कार्ड दिखाते हुए कह रहे हैं कि साहब पैसे नहीं मिले, तो इज्जत चली जायेगी, मेरे घर कल तिलक आनेवाला है. वहीं फतेहपुर के प्रमोद सिंह बैंक कर्मियों से कह रहे हैं कि मेरी बहन का तिलक है, अभी तक सामान की खरीदारी नहीं हुई है. बैंककर्मियों की ओर से एक ही जवाब है, पैसा आया तो पांच हजार मिलेंगे. अभी वह भी नहीं है. यह हाल है सेंट्रल बैंक बरौली का जहां पैसा निकासी करने के लिए लोग सुबह नौ बजे से ही पहुंचे हैं. किसी के घर शादी है तो किसी का बच्चा बीमार है. लोग चार दिनों से पैसे के लिए दौड़ लगा रहे हैं. न कर्ज लेना है और न भीख, लोगों को अपनी ही जमा पूंजी निकालने में बैंक कर्मियों की चिरौरी करनी पड़ रही है, इसके बावजुद भी खाली हाथ लौटना पड़ रहा है. यहां हालात नोबटंदी से बदतर है. यह बदतर हालत किसी एक दिन की नहीं, बल्कि विगत एक पखवारे से जारी है. दो दिनों की दौड़ लगाने के बाद सेवानिवृत्त हो चुके शिक्षकों को महज पांच हजार रुपये मिले हैं. कैश के लिए हाहाकार है. अधिकांश एटीएम बेकार पड़ी हैं. आखिर खाताधारी करें तो क्या?

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