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अनोखी थी सदय जी की साहित्य साधना

गया : कविवर गाेवर्द्धन प्रसाद सदय का जन्म 11 अक्तूबर 1925 काे गयाधाम में हुआ था. गया की धरती पर पंडित जानकी वल्लभ शास्त्री, हंस कुमार तिवारी, पं माेहनलाल महताे ‘वियाेगी’ आैर कविवर गाेवर्द्धन प्रसाद ‘सदय’ का जन्म हुआ. बिहार में जिन साहित्यकाराें ने साहित्य के साथ साहित्यकाराें की एक नयी पीढ़ी का निर्माण किया, […]

गया : कविवर गाेवर्द्धन प्रसाद सदय का जन्म 11 अक्तूबर 1925 काे गयाधाम में हुआ था. गया की धरती पर पंडित जानकी वल्लभ शास्त्री, हंस कुमार तिवारी, पं माेहनलाल महताे ‘वियाेगी’ आैर कविवर गाेवर्द्धन प्रसाद ‘सदय’ का जन्म हुआ. बिहार में जिन साहित्यकाराें ने साहित्य के साथ साहित्यकाराें की एक नयी पीढ़ी का निर्माण किया, अनगिनत कमलकाराें काे कलम पकड़ने की प्रेरणा दी व उन्हें प्राेत्साहित किया, उनमें स्मृतिशेष गाेवर्द्धन प्रसाद सदय अन्यतम हैं. हिंदी के उत्कर्ष पुरुष गाेवर्द्धन प्रसाद सदय की संघर्ष क्षमता, सरलता, सहजता, अनूठी कर्ममयता, स्वभावगत सरलता या जिंदादिली जैसे सद्गुणाें के कारण उनकी अमरता अक्षुण्ण बनी रहेगी.
कविवर गाेवर्द्धन प्रसाद सदय आधुनिक युग के महान साहित्यकार, कवि व संपादक थे. जीवन के दाेनाें पक्षाें, पाैरूष आैर काेमल के गायक, कलम के धनी सदय जी मात्र कवि ही नहीं तेजस्वी विचारक, श्रेष्ठ वक्ता भी थे. इनकी वाणी में अदम्य तेज, सशक्त पाैरूष का आेज था आैर थी सुस्पष्टता आैर स्वस्थ चिंतन का रस. इनकी प्रारंभिक शिक्षा-दीक्षा गया में ही हुई. 1950 में उन्हाेंने पटना यूनिवर्सिटी से हिंदी साहित्य में एमए किया. उन्हाेंने एक संपादक के रूप में अपना जीवन प्रारंभ किया. 1950 से 1953 तक उन्हाेंने ‘जनता’ दैनिक में रामवृक्ष बेनीपुरी जी के साथ वरीय उप संपादक के रूप में कार्य किया.
इसके बाद डॉ लक्ष्मी नारायण सुधांशु के साथ ‘अवंतिका’ मासिक में उप संपादक रहे. साथ ही वर्षाें तक बच्चाें की मनाेरंजक पुस्तक ‘चुन्नू-मुन्नु’ मासिक पत्रिका का संपादन किया. 1957 से 62 तक बिहार सरकार की पत्रिका ‘बिहार समाचार’ तथा 1962 से 65 तक पंचायती राज पत्रिका के संपादक रहे. 1965 से 1977 तक बिहार सरकार के जन संपर्क विभाग में सहायक निदेशक तथा 1977 से 1985 तक उप निदेशक के पद पर कार्य किया. अक्तूबर 1985 से सेवानिवृत्त हाेकर साहित्यिक कार्य में दत्तचित रहे.
सदय जी पुरानी पीढ़ी के सुविख्यात साहित्यकार थे, जिनकी कविताआें में छंद-अलंकार के प्रवाह मिलते हैं. इनके द्वारा संपादित दर्जनाें पत्र-पत्रिकाएं तथा पुस्तकें हैं. इन्हें बिहार सरकार के राष्ट्रभाषा परिषद की आेर से 1993 में ‘साहित्य सेवा सम्मान’ से सम्मानित किया गया था. इसके अलावा उन्हें प्रभात सम्मान व भाषा साहित्य परिषद द्वारा भी सम्मानित किया गया था. इनकी प्रकाशित पुस्तकाें में संसाधन(कविता संग्रह), महुहार(गीत संग्रह), काेठरी की आत्मा(कहानी संग्रह), फुलवारी(बाल कविता), फूलाें की क्यारी(बाल कहानियां), प्रणति(भक्ति काव्य संग्रह), लाेकऋषि(खंडकाव्य), वायु नंदन(भक्ति गीत), राम आख्यान(महाकाव्य) आदि प्रमुख हैं.
राम आख्यान इनका महाकाव्य है. राम काव्य की परंपरा में ‘राम आख्यान’ का विशिष्ट महत्व है. इस महाकाव्य की भूमिका में डॉ राम निरंजन परिमलेंदु की लेखनी से स्वत: फूट पडआ है- ‘राम आख्यान’ जैसी कृति की रचना कभी-कभी हाेती है. निष्काम शाश्वत रामभक्ति जब अपनी ऊंचाई आैर गहराई का निर्माण स्वयं कर लेता है, तब कृतिकार ‘राम आख्यान’ काे पुर्नप्रतिष्ठापित करता है. आज सदय जी हमारे बीच नहीं हैं किंतु उनकी रचनाएं, उनकी स्मृति, उनका आदर्श हमारे साथ हैं.
मुझे ताे उनमें आैर उनकी रचनाआें में द्वापर युग का वादन, कभी जीव-जंतुआें का आर्तनाद सुनायी देता है, ताे कभी तरू लताआें का मूक क्रंदन आैर त्रेता युग का स्वर भी. वह आधुनिक युग के युग बाेध के प्रहरी थे. 30 नवंबर 2017 काे यह नक्षत्र सदा के लिए अस्त हाे गया. ऐसे कालजयी महाकवि काे काेटिश: नमन.
मानपुर के लोगों ने किया स्मरण
मानपुर : गया के प्रख्यात समाजशास्त्री व साहित्यकार स्व. गोवर्द्धन प्रसाद सदय की पुण्यतिथि सुरधारा कला केंद्र में मनायी गयी. इस समारोह में सुरधारा के निदेशक व संगीत शिक्षक विपिन बिहारी ने बताया कि उनकी प्रेरणा के बल पर आज सुरधारा केंद्र जिले के साथ-साथ राज्य का नाम रोशन कर रहा है. उनकी कमी आज भी खलती है.
कार्यक्रम का शुभारंभ सदय जी के फोटो पर पुष्प अर्पण के साथ हुआ. केंद्र के बच्चों ने उनकी पुण्यतिथि को यादगार बताते हुए संकल्प लिया कि उनके बताये मार्ग पर चल कर व समाज व देश की सेवा देंगे. इस मौके पर आयशा कुमारी, पल्लवी कुमारी, प्रणव कुमार, राजू कुमार, सौम्या कुमारी ने भी अपनी अपनी बातें रखीं.

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