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बिहार की जैव विविधता पर गहराया संकट, खैर और महुआ जैसे कई पेड़ हो रहे विलुप्त

चंपा के कारण चंपारण और पाटली के कारण कभी शहरों के नाम पाटलिपुत्र रखे जाते थे, लेकिन आज बिहार में इन पेड़ों की संख्या बेहद कम है. बिहार की जैव विविधता पर गंभीर संकट दिख रहा है. पटना में पाटली की बात छोड़ दीजिए, अब तो बिहार में खैर और महुआ जैसे पेड़ भी विलुप्त होते जा रहे हैं.

पटना. चंपा के कारण चंपारण और पाटली के कारण कभी शहरों के नाम पाटलिपुत्र रखे जाते थे, लेकिन आज बिहार में इन पेड़ों की संख्या बेहद कम है. बिहार की जैव विविधता पर गंभीर संकट दिख रहा है. पटना में पाटली की बात छोड़ दीजिए, अब तो बिहार में खैर और महुआ जैसे पेड़ भी विलुप्त होते जा रहे हैं. झारखंड के अलग होने के बाद वैसे ही बिहार का वन क्षेत्र 6 प्रतिशत के करीब रह गया था, जो अब कहने को तो 16 प्रतिशत तक पहुंच गया है, लेकिन जैव विविधता के मामले में बिहार का संकट काफी गंभीर माना जा रहा है. बिहार के गैर-वन क्षेत्रों में महुआ और खैर के पेड़ों की संख्या में गिरावट राज्य सरकार के पर्यावरण, वन एवं जलवायु परिवर्तन विभाग के लिए गंभीर चिंता का विषय बनती जा रही है.

जैव विविधता को खतरा

पर्यावरणविदों की मानें तो महुआ और खैर के पेड़ों की आर्थिक अहमियत भी है और सांस्कृतिक महत्व भी. पिछले दस वर्षों में बिहार में गैर-वन क्षेत्रों में इनकी संख्या में 25 से 30 प्रतिशत तक की कमी आयी है. बिहार राज्य जैव विविधता बोर्ड (बीएसबीबी) के सचिव के गणेश कुमार ने स्थानीय मीडिया को बताया कि राज्य के वन क्षेत्रों में महुआ और खैर के पेड़ बहुतायत में हैं, लेकिन पिछले दस वर्षों में हमने गैर-वन क्षेत्रों में इन दोनों पेड़ों की संख्या में उल्लेखनीय गिरावट दर्ज की है. यह हमारे लिए बेहद चिंता का विषय है. हम इस ओर ध्यान दे रहे हैं और नयी योजना पर विचार कर रहे हैं. बीएसबीबी के सचिव ने कहा कि हम इन पेड़ों की उपलब्ध संख्या का पता लगाने और राज्य में गैर-वन क्षेत्रों में उनकी संख्या में कमी आने के कारणों की पहचान करने के लिए एक अध्ययन करने पर भी विचार कर रहे हैं.

खैर के पेड़ों की संख्या में कमी

गणेश कुमार कहते हैं कि पेड़ वन पारिस्थितिकी तंत्र के मुख्य घटकों में से एक हैं. हम गैर-वन क्षेत्रों में उनका संरक्षण और वृक्षारोपण सुनिश्चित करने के उपाय कर रहे हैं. उन्होंने कहा कि हम जैव विविधता की समृद्धि को बनाये रखने के लिए लोगों को गैर-वन क्षेत्रों में इन दोनों पेड़ों को लगाने के लिए प्रोत्साहित कर रहे हैं. राज्य की सभी सरकारी नर्सरियों में महुआ और खैर के पौधे प्रचुर मात्रा में उपलब्ध हैं. उन्होंने आगे कहा कि ये दोनों पेड़ जमुई, बांका, नवादा, गया, रोहतास, कैमूर, पश्चिमी चंपारण और पूर्वी चंपारण के वन क्षेत्रों में बहुतायत में उपलब्ध हैं. दरभंगा, मधुबनी, सहरसा, मधेपुरा, सुपौल, बेगूसराय, कटिहार, अररिया, समस्तीपुर, मुजफ्फरपुर और पूर्णिया जिलों में गैर-वन क्षेत्रों में इनकी संख्या में उल्लेखनीय गिरावट देखी गयी है.

महुआ में औषधीय गुण तो खैर का धार्मिक महत्व

कुमार ने कहा कि महुआ के पेड़ को औषधीय गुणों का खजाना माना जाता है. इसका इस्तेमाल कई बीमारियों के इलाज के लिए किया जा सकता है. इसी तरह, खैर के पेड़ का भी धार्मिक महत्व है. इससे प्राप्त कत्था न केवल शरीर के लिए एक दर्द निवारक उपाय के रूप में काम करता है, बल्कि अन्य रोगों के उपचार में इस्तेमाल होने वाली दवाओं में भी प्रयुक्त होता है. उन्होंने बताया कि कत्था प्लाइवुड के लिए ‘गोंद’ का एक महत्वपूर्ण घटक भी बनाता है. मछली पकड़ने के जाल और रस्सियों को बनाने में भी इसका इस्तेमाल किया जाता है.

Prabhat Khabar Digital Desk
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