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जिले में चुनाव को लेकर सरगर्मी तेज

जैसे-जैसे बिहार में विधानसभा चुनाव की तारीख़ नज़दीक आती जा रही है, जिले में भी राजनीतिक सरगर्मी धीरे-धीरे तेज़ होती दिख रही है.

बिहारशरीफ. जैसे-जैसे बिहार में विधानसभा चुनाव की तारीख़ नज़दीक आती जा रही है, जिले में भी राजनीतिक सरगर्मी धीरे-धीरे तेज़ होती दिख रही है. हालांकि अब तक आम जनमानस में चुनावी माहौल पूरी तरह नहीं बन पाया है, लेकिन सियासी दलों की हलचल और गतिविधियां ज़मीन पर बढ़ चुकी हैं. एक समय बिहार की प्रमुख रही कांग्रेस पार्टी अब गांव-गांव जाकर अपने पुराने, निष्क्रिय कार्यकर्ताओं की तलाश में जुट गई है. पार्टी के स्थानीय नेता पुराने साथियों को फिर से जोड़ने और नए समीकरणों को गढ़ने की कोशिश में लगे हैं. जेडीयू और बीजेपी ने पहले से ही मंडल और बूथ स्तर पर अपने कार्यकर्ताओं को सक्रिय कर दिया है. राजद और जनसुवराज भी युवाओं और किसानों के बीच पकड़ मजबूत करने में जुटे हैं. इन दलों के नेता लगातार छोटे-बड़े मुद्दों पर जनता के बीच उपस्थिति दर्ज करा रहे हैं. हर पार्टी अपनी रणनीति के मुताबिक अलग-अलग मुद्दे उठा रही है. बेरोजगारी और युवाओं का पलायन, शिक्षा और स्वास्थ्य सेवाओं की बदहाल स्थिति. किसानों की फसल और बाजार की समस्या, कानून-व्यवस्था, खासकर बढ़ते अपराध, नदी, पईन, पोखर और सरकारी जमीन पर अतिक्रमण आदि मुद्दों को उठाकर नेता क्षेत्रीय जनता से जुड़ाव का संदेश दे रहे हैं, लेकिन अभी तक आम जनता खुलकर प्रतिक्रिया नहीं दे रही है. जिला प्रशासन ने भी बूथवार तैयारी शुरू कर दी है. मतदाता सूची का पुनरीक्षण. नए बूथों का निर्धारण, चुनावकर्मियों की सूची तैयार करना, सुरक्षा और लॉजिस्टिक प्लानिंग सभी पर कार्यवाही चल रही है. इस बार सबसे दिलचस्प बात यह है कि पंचायत स्तर के चुने हुए जनप्रतिनिधि, जैसे मुखिया और सरपंच, अचानक राजनीतिक केंद्र में आ गए हैं. संभावित उम्मीदवार पंचायत जनप्रतिनिधियों से संपर्क में हैं. कहीं जातीय समीकरण, तो कहीं सामाजिक प्रभाव को देखते हुए इनसे समर्थन मांगा जा रहा है. कुछ जनप्रतिनिधि निर्णायक भूमिका में आने लगे हैं. इस पूरे सियासी माहौल के बीच, जिले की जनता अब तक चुपचाप सब कुछ देख-सुन रही है. न कोई शोर, न कोई प्रतिक्रिया है. ग्रामीण इलाकों में उम्मीदवारों की सक्रियता के बावजूद लोग सुनते हैं, पर बोलते नहीं है. इस बार के वर्तमान विधायक भी किसी को मौका देने के मूड में नहीं हैं. गांव-गांव में अपने समर्थकों को भेजकर लोगों का मूड भांपने में लगे है. पुराने वोटर्स को जोड़ने की कोशिश के साथ नए चेहरे भी तैयार कर रहे हैं. जिले में चुनावी बिसात बिछ चुकी है, लेकिन अभी भी असली खेल शुरू होना बाकी है. जनसंपर्क बढ़ रहा है, मुद्दों की झड़ी लग रही है, पंचायत स्तर की राजनीति जोर पकड़ रही है, और जनता मौन रहकर सबका जायजा ले रही है. अब देखना है कि मौन जनता कब मुखर होती है, और किसके पक्ष में हवा बहती है.

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