बिहारशरीफ . जिउतिया व्रत को लेकर रविवार को पुत्रवती माताओं के द्वारा 24 घंटे का निर्जला उपवास रखा गया. पुत्रवती माताओं ने व्रत का उपवास रखकर अपने- अपने संतानों की उत्तम स्वास्थ्य तथा दीर्घायु जीवन की कामना की. यह व्रत पुत्रवती माताओं के लिए सर्व प्रमुख व्रत है. सनातन धर्म में ऐसी मान्यता है कि इस व्रत को करने से संतानों की रक्षा होती है. यह पर्व हर वर्ष आश्विन कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि को मनाया जाता है. रविवार को रोहिणी नक्षत्र और जयद योग के सुयोग में महिलाएं ने उपवास रखकर अपनी संतान की कुशलता और वंश वृद्धि की कामना से जिउतिया व्रत की उपासना की. यह एक काफी कठिन व्रत है, लेकिन माताओं के हौसले उन्हें व्रत करने के लिए प्रेरित करता है. रविवार को व्रत के उपवास के दिन महिलाओं के द्वारा पारण से संबंधित विभिन्न आवश्यक वस्तुओं की जमकर खरीदारी की गई. इससे बाजारों में दिनोंभर रौनक बनी रही. दुकानों तथा सब्जी के ठेलों पर भारी मात्रा में ओल, कंदा, नोनी साग, पोय की साग आदि की विक्री हुई. सुबह में तो कंदा 80 रू तो पोय की साग 160 रू किलो तक बिकी. केले, सेव, नारियल आदि के भाव में भी काफी तेजी रही. हालांकि श्रद्धालुओं के द्वारा इसके बावजूद आवश्यकता अनुसार खरीदारी की गई. शाम में महिलाओं के द्वारा समूह में जिउतिया व्रत का पूजन किया गया. इस अवसर पर मिट्टी और कुश से राजा जीमूतवाहन के साथ-साथ माता लक्ष्मी और देवी दुर्गा की मूर्ति बनाकर पूजा -अर्चना की गई. पूजा के बाद माताएं ब्राह्मणों से राजा जीमूतवाहन की कथा सुनकर ब्राह्मणों को दक्षिणा प्रदान की. ऐसी मान्यता है कि राजा जीमूतवाहन की कथा सबसे पहले भगवान शिव ने माता पार्वती को सुनाई थी. सोमवार को होगा व्रत का पारण:- सोमवार को अष्टमी तिथि की समाप्ति के बाद व्रती महिलाएं व्रत का पारण करेंगी.इस अवसर पर महिलाओं के द्वारा चावल, कुशी केराव की झोर, कुशी केराव और पोय की पत्ती की फुलौडी- बचका, नोनी की साग आदि पकाया जाएगा. सबसे पहले व्रती माताएं इसे खाकर व्रत का पारण करेंगी. इसके बाद घर के अन्य सभी सदस्य भी इसे प्रसाद के रूप में ग्रहण करेंगे. व्रती महिलाओं की संताने अपनी माता का चरण छूकर आशीर्वाद लेंगे.
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