बिहारशरीफ. तीन दशक से चली आ रही राजनीतिक कैसेट अब बदलने लगी है. जिले की जनता अब उस पुराने रेकॉर्ड को सुनने को तैयार नहीं है, जिसमें सिर्फ जंगलराज का राग अलापा जाता रहा. अब चुनावी मैदान में रोजगार, भ्रष्टाचार और अतिक्रमण जैसे जमीनी मुद्दे हावी हैं और यह बदलाव यहां के नतीजों की दिशा बदल रहा है. एनडीए दशकों से जंगलराज को ही अपना प्रमुख चुनावी हथियार बनाए हुए था, जबकि महागठबंधन हर बार एक नया एजेंडा लेकर आता रहा. लेकिन अब मतदाताओं ने खुद ही एजेंडा तय करना शुरू कर दिया है. विश्लेषकों का कहना है कि अब मतदाता विकास और रोजगार के साथ भ्रष्टाचार, अफसरशाही और सरकारी जमीनों पर बढ़ते अतिक्रमण जैसे मुद्दों पर सीधे तौर पर सरकारों से सवाल कर रहे हैं. दिलचस्प बात यह है कि सत्ताधारी दल के नेता और प्रत्याशी इन नए और संवेदनशील मुद्दों पर खुलकर बोलने से बच रहे हैं. वहीं, जनता अब पहले जैसी नहीं रही. वह न सिर्फ पुराने वादों को याद रखती है, बल्कि नए विकल्प तलाशने में भी पीछे नहीं हट रही. साफ है कि नालंदा की सियासत अब एक नए दौर में प्रवेश कर चुकी है. यहां की जनता अब केवल भय या भावनाओं के आधार पर वोट नहीं देती. उसकी नजर अब सीधे उन मुद्दों पर है जो उसके रोजमर्रा के जीवन को प्रभावित करते हैं. ऐसे में, वही दल सफल होगा जो जंगलराज के पुराने नैरेटिव से आगे निकलकर जनता की रोजी-रोटी की चिंता को समझेगा और उसका समाधान पेश करेगा. हिलसा और इस्लामपुर में बदलाव था संकेत
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