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समाजवादी-समतामूलक समाज बनाने वाली शक्षिा की वकालत

समाजवादी-समतामूलक समाज बनाने वाली शिक्षा की वकालत-कला केंद्र पर आयोेजित नई राष्ट्रीय शिक्षा नीति -2015 पर बोले वक्तासंवाददाता, भागलपुरएसोसिएशन फॉर स्टडी एंड एक्शन पटना के तत्वावधान में कला केंद्र में आयोजित नयी राष्ट्रीय शिक्षा नीति-2015 पर चर्चा करते हुए विद्वानों ने अपने-अपने विचार प्रस्तुत किये. इस परिचर्चा का लब्बोलुआब यह रहा कि देश की शिक्षा […]

समाजवादी-समतामूलक समाज बनाने वाली शिक्षा की वकालत-कला केंद्र पर आयोेजित नई राष्ट्रीय शिक्षा नीति -2015 पर बोले वक्तासंवाददाता, भागलपुरएसोसिएशन फॉर स्टडी एंड एक्शन पटना के तत्वावधान में कला केंद्र में आयोजित नयी राष्ट्रीय शिक्षा नीति-2015 पर चर्चा करते हुए विद्वानों ने अपने-अपने विचार प्रस्तुत किये. इस परिचर्चा का लब्बोलुआब यह रहा कि देश की शिक्षा लोकतांत्रिक, धर्मनिरपेक्ष, समाजवादी और समतामूलक समाज बनाने वाली शिक्षा ही देश को एक नयी दशा-दिशा प्रदान करेगी. पैनल ने जोर दिया कि विद्यालय-विश्वविद्यालय ऐसी नीति और व्यवस्था करे जिससे शिक्षण संस्थाओं से वैज्ञानिक सोच और तार्किकता से परिपूर्ण छात्र निकलें. वैश्वीकरण के दौर में बदलती जरूरतों के हिसाब से शिक्षा नीति बदल रही है लेकिन इतना याद रहे कि इस बदलाव में शिक्षा के मूल्य न खो जाये. विज्ञान तकनीक, सूचना, संचार बाजार आदि शिक्षा नीति पर दबाव बना रहे हैं. परिचर्चा में मेधा-अवसर पर भी चर्चा की गयी और हर प्रकार के संदर्भ में समावेशी शिक्षा नीति अपनाने की बात कही गयी. परिचर्चा की अध्यक्षता उप समाहर्ता भागलपुर हरिशंकर प्रसाद ने की जबकि कार्यक्रम का संचालन परिधि के निदेशक उदय ने की. कार्यक्रम को बतौर मुख्य अतिथि टीएमबीयू के कुलपति प्रो रमाशंकर दुबे ने कहा कि देश की असल पूंजी युवा है. हमारी शिक्षा नीति ऐसी होनी चाहिए जिससे देश के कौशल को विकसित कर इसका उपयोग देशहित में किया जा सके. शिक्षाविद् डॉ नवल किशाेर चौधरी ने कहा कि जिन संस्थानों में टीचर न हो उन संस्थान को दफना देना चाहिए. शिक्षा में जन सहभागिता होनी चाहिए. लेकिन इस हद तक नहीं होनी चाहिए कि शिक्षा खरीदने-बेचने की चीज हो जाये. शिक्षा तक हर आम बच्चे की पहुंच जरूरी है. नीति बनाते वक्त यह याद रखना होगा कि शिक्षा की गुणवत्ता किसी भी तरह से प्रभावित न हो. भूदान यज्ञ समिति के अध्यक्ष शुभमूर्ति ने कहा कि मैकाले ने देश में ऐसी शिक्षा नीति बनायी जिससे यह देश कई सालों से बौद्धिक रूप से गुलाम रह सके. विनोबा भावे ने एक बार कहा था कि जिस तरह से हमने अंगरेजों का झंडा बदलकर देश का झंडा लगाया. अपना संविधान लागू किया. उसी तरह मैकाले की शिक्षा नीति को समाप्त कर भारतीय शिक्षा बनाकर उसे लागू किया जाये. लेकिन ऐसा नहीं हो सका. आज भी देश की शिक्षा मैकाले द्वारा प्रतिपादित शिक्षा नीति पर ही चल रही है. उन्होंने कहा कि विश्वविद्यालय में छात्रों के आदर्श शिक्षक बन सकें इसके लिए उन्हें वेतन सुविधाएं, माहौल प्रदान करना होगा और विश्वविद्यालयों को स्वायत्तता देनी होगी. धन्यवाद ज्ञापन परिचर्चा की संयोजक यासमीन बानो ने की. इस अवसर पर डॉ प्रेम सागर, रामशरण, रामपूजन, शांति हेेंब्रम, मनोहर मिस्त्री, रूप कुमार, अशअर उरैनवी, उज्मा ने अपने विचार प्रस्तुत किये. व्यासजी, अनिल राय और टीएमबीयू के कुलानुशासक डॉ विलक्षण रविदास ने इस दौरान लोगों द्वारा पूछे गये प्रश्नों का जबाब भी दिया. इस अवसर पर संस्कृतिकर्मी डाॅ चंद्रेश, परिधि की सुषमा आदि की मौजूदगी रही.

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