पहले स्थान पर सासाराम, दूसरे स्थान पर कैमूर व तीसरे स्थान पर पटना
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धान अधिप्राप्ति मामले में जिला चौथे स्थान पर लक्ष्य प्राप्त करना कठिन
पहले स्थान पर सासाराम, दूसरे स्थान पर कैमूर व तीसरे स्थान पर पटना अब तक मात्र 7632 किसानों से ही धान की खरीद औरंगाबाद नगर : धान का कटोरा कहे जाने वाला औरंगाबाद जिला धान खरीद के मामले में कभी पहले व दूसरे स्थान पर रहा करता था और लक्ष्य से अधिक धान की खरीद […]
अब तक मात्र 7632 किसानों से ही धान की खरीद
औरंगाबाद नगर : धान का कटोरा कहे जाने वाला औरंगाबाद जिला धान खरीद के मामले में कभी पहले व दूसरे स्थान पर रहा करता था और लक्ष्य से अधिक धान की खरीद सरकारी समर्थन मूल्य पर की जाती थी. लेकिन, इस बार लक्ष्य की प्राप्ति कर पाना विभाग के लिए काफी कठिन है. यह जिला प्रदेश में धान अधिप्राप्ति के मामले में चौथे स्थान पर है,
जबकि पहले स्थान पर सासाराम, दूसरे स्थान पर कैमूर व तीसरे स्थान पर पटना है. विभाग के आंकड़ा के अनुसार जिले में दो लाख 14 हजार 60 मीटरिक टन धान की खरीद का समर्थन मूल्य 1550 रुपये प्रति क्विंटल करने का लक्ष्य रखा गया था. इसके लिए 41 हजार 736 किसानों ने धान देने के लिए आवेदन जमा किया था, जिनमें 25 हजार 805 किसानों का आवेदन स्वीकृत किया गया था.
कागजी अड़चन बनी परेशानी का सबब
धान खरीद करने के लिए 198 पैक्स व व्यापार मंडल को लक्ष्य निर्धारित किया गया था. वहीं समय पर पैक्स मिलरों को धान दे दे. इसके लिए 79 मीलो को टैग भी किया गया था,लेकिन धान का समर्थन मूल्य कम रहने व कागजी प्रक्रिया में अड़चन होने के कारण किसान पैक्स व व्यापार मंडल के हाथों धान न बेच कर व्यापारियों के हाथों धान बेच दिया. यही कारण है कि जिले में अब तक 64 हजार 631 मीटरिक टन धान की अधिप्राप्ति की जा सकी है, जो लक्ष्य से काफी दूर है. अब किसान के पास भी धान न के बराबर है. इस स्थिति में लक्ष्य प्राप्त कर पाना दूर-दूर तक संभव नहीं दिखाई दे रहा है.
किसानों द्वारा जो 64 हजार 631 मीटरिक टन धान की खरीद की गयी है, उसके अनुसार 43 हजार 303 मीटरिक टन सीएमआर दे दिया गया है. वहीं 39.350 करोड़ राशि का भुगतान किया जा चुका है. विभाग के आंकड़े बताते है कि अब तक मात्र 7632 किसानों से ही धान की खरीद की गयी है, जबकि अन्य किसानों ने व्यापारियों को धान दे दिये. सूत्रों की माने तो किसानों ने इसलिए पैक्स व व्यापार मंडल को धान नहीं दिये,क्योंकि बाजार मूल्य और समर्थन मूल्य में कोई खास अंतर नहीं था. एक ओर सरकार द्वारा 1550 रुपये प्रति क्विंटल धान खरीदने के लिए मूल्य निर्धारित किया गया था, तो व्यापारियों द्वारा 1400 रुपये प्रति क्विंटल खलिहान से धान खरीदी गयी.
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