Rohini Vrat March 2025: जैन धर्म की परंपराओं के अनुसार, प्रत्येक माह के शुक्ल पक्ष की तृतीया तिथि को रोहिणी व्रत का आयोजन किया जाता है. यह जैन धर्म के महत्वपूर्ण व्रतों और त्योहारों में से एक माना जाता है. यह विश्वास किया जाता है कि इस व्रत के माध्यम से साधक की समस्त कठिनाइयाँ समाप्त हो जाती हैं. इस व्रत को विशेष रूप से महिलाएं करती हैं, जो अपने पति की दीर्घायु और सुख-शांति की कामना करती हैं.
जैन समुदाय का एक महत्वपूर्ण व्रत
रोहिणी व्रत जैन समुदाय के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण माना जाता है. इस व्रत के दौरान जैन धर्म के अनुयायी व्रत रखकर वासुपूज्य स्वामी की पूजा करते हैं. यह व्रत पुरुषों और महिलाओं दोनों द्वारा किया जा सकता है, किंतु इसे महिलाओं के लिए अनिवार्य माना गया है. धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, यह व्रत आत्मा के विकारों को समाप्त करने और कर्म के बंधनों से मुक्ति दिलाने में सहायक होता है. इस व्रत में विधिपूर्वक भगवान वासुपूज्य की पूजा-अर्चना की जाती है. ऐसा माना जाता है कि जो भक्त रोहिणी व्रत का श्रद्धा पूर्वक पालन करते हैं, वे सभी प्रकार के दुखों और दरिद्रता से मुक्त हो जाते हैं और उनकी सभी इच्छाएं पूर्ण होती हैं.
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सुख-समृद्धि का आगमन
इस दिन व्रत करने से भगवान वासुपूज्य और माता रोहिणी का आशीर्वाद प्राप्त होता है, जिससे घर की आर्थिक समस्याएं समाप्त होती हैं. इसके साथ ही, उस घर में सदैव धन की देवी मां लक्ष्मी का निवास होता है और ऋण से मुक्ति मिलती है. धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, इस व्रत के आयोजन से पति की आयु में वृद्धि होती है और स्वास्थ्य भी उत्तम बना रहता है. नवविवाहित महिलाएं पुत्र की प्राप्ति के लिए रोहिणी व्रत का पालन करती हैं. इसके अतिरिक्त, इस व्रत के पुण्य प्रभाव से ईर्ष्या और द्वेष जैसे नकारात्मक भावनाएं दूर होती हैं, जिससे घर में सुख-समृद्धि का संचार होता है. ध्यान रहे कि इस व्रत का पारण रोहिणी नक्षत्र के समाप्त होने पर मार्गशीर्ष नक्षत्र में किया जाता है, और इसका समापन उद्यापन द्वारा किया जाना चाहिए.
रोहिणी व्रत पूजा विधि
- ब्रह्म मुहूर्त में जागकर जल में गंगाजल मिलाकर स्नान करें.
- आचमन करके व्रत का संकल्प लें और सूर्य देव को जल अर्पित करें.
- पूजा स्थल की सफाई के बाद वेदी पर भगवान वासुपूज्य की प्रतिमा स्थापित करें.
- पूजा में भगवान वासुपूज्य को फल, फूल, गंध, दूर्वा, नैवेद्य आदि अर्पित करें.
- सूर्यास्त से पूर्व पूजा करें और फलाहार करें.
- अगले दिन पूजा-पाठ के बाद अपने व्रत का पारण करें.
- व्रत के दिन गरीबों को दान देना न भूलें.