Chaiti Chhath Puja 2023 Arghya Timing, Sunrise Time Live: चैती छठ के तीसरे दिन 27 मार्च को डूबते सूर्य को अर्घ्य दिया गया अब 28 मार्च को उगते सूर्य को अर्घ्य दिया जाएगा. मान्यता है कि शाम को और सुबह को सूर्य उपासना से संपन्नता आती है और व्रती की सारी मनोकामनाएं पूरी होती है. सूर्य को अर्घ्य देने से कुंडली में सूर्य की स्थिति पहले से ज्यादा मजबूत होती है. देखें पटना, रांची, गया, जमशेदपुर, बोकारो, अररिया, धनबाद, देव, सिवान, बेगुसराय, मुंगेर, लखिसराय, देवघर, अरवल, शिवहर जैसे बिहार झारखंड के जिलों में 28 मार्च को कब होगा सूर्योदय.
28 मार्च को उगते हुए सूर्य को अर्घ्य दिया जाएगा. इस दिन सूर्योदय सुबह 6 बजकर 16 मिनट पर होगा.
छठ पूजा में वैसे तो कई तरह के प्रसाद चढ़ाए जाते हैं. लेकिन उसमें सबसे अहम ठेकुए का प्रसाद होता है, जिसे गुड़ और आटे से बनाया जाता है. छठ की पूजा इसके बिना अधूरी मानी जाती है. छठ के सूप में इसे शामिल करने के पीछे वैज्ञानिक तर्क यह है कि छठ के साथ सर्दी की शुरुआत हो जाती है और ऐसे में ठंड से बचने और सेहत को ठीक रखने के लिए गुड़ बेहद फायदेमंद होता है.
चैती छठ संध्या अर्घ्य आज शाम 6 बजकर 36 मिनट पर दिया जाएगा. इसके बाद कल यानी 28 मार्च को उगते हुए सूर्य को अर्घ्य दिया जाएगा. इस दिन सूर्योदय सुबह 6 बजकर 16 मिनट पर होगा.
छठ पूजा में वैसे तो कई तरह के प्रसाद चढ़ाए जाते हैं. लेकिन उसमें सबसे अहम ठेकुए का प्रसाद होता है, जिसे गुड़ और आटे से बनाया जाता है. छठ की पूजा इसके बिना अधूरी मानी जाती है. छठ के सूप में इसे शामिल करने के पीछे वैज्ञानिक तर्क यह है कि छठ के साथ सर्दी की शुरुआत हो जाती है और ऐसे में ठंड से बचने और सेहत को ठीक रखने के लिए गुड़ बेहद फायदेमंद होता है.
सनातन धर्म में महिलाएं अपनी संतान के निरोगिता एवं समृद्धि के लिए छठी माता का पूजन करती है. छठ व्रत करने से घर सुख समृद्धि, संतानों की उन्नति आरोग्यता धन-धान्य की वृद्धि होती है. इस बार कृतिका नक्षत्र एवं प्रीति योग में नहाय खाय के साथ चैती छठ का चार दिनों का महापर्व शुरू हुआ और 28 मार्च को सुबह अर्घ्य के बाद पारण के साथ पूजा संपन्न होगा.
आस्था का महापर्व साल में दो बार कार्तिक माह एवं चैत्र माह में मनाया जाता है. छठ पूजा मुख्य रूप से भगवान सूर्य की उपासना है. इस माह में सूर्य मीन राशि में होते हैं तथा यह उच्च राशि की ओर अग्रसर होते हैं. यह व्रत करने वाले श्रद्धालु गंगा में, पवित्र नदी में, जलाशय में या घर में गंगा जल मिला कर स्नान करके व्रत का शुभारंभ करते हैं. यह पर्व नहाय खाय से आरंभ होकर चार दिनों तक चलता है. प्रात: कालीन सूर्य को अर्घ देकर इस व्रत का पारण होता है.
छठ के तीसरे दिन यानी षष्ठी की शाम को ढलते सूर्य को व्रती अर्घ्य देते हैं. इसे संध्या अर्घ्य कहा जाता है. पौराणिक मान्यताओं के अनुसार इस समय सूर्य देव अपनी पत्नी प्रत्यूषा के साथ होते हैं. इसीलिए व्रती को प्रत्यूषा को अर्घ्य देने से लाभ मिलता है. मान्यता है कि शाम को सूर्य उपासना से संपन्नता आती है और व्रती की सारी मनोकामनाएं पूरी होती है. सूर्य को अर्घ्य देने से कुंडली में सूर्य की स्थिति पहले से ज्यादा मजबूत होती है.
इस व्रत से जुड़ी अनेक मान्यताएं हैं. नहाय-खाय से शुरू होने वाले छठ पर्व के बारे में कहा जाता है कि इसकी शुरूआत महाभारत काल से ही हो गई थी. एक कथा के अनुसार महाभारत काल में जब पांडव अपना सारा राजपाट जुए में हार गए थे तब द्रौपदी ने चार दिनों के इस व्रत को किया था.
छठ के तीसरे दिन यानी षष्ठी की शाम को ढलते सूर्य को व्रती अर्घ्य देते हैं. इसे संध्या अर्घ्य कहा जाता है. पौराणिक मान्यताओं के अनुसार इस समय सूर्य देव अपनी पत्नी प्रत्यूषा के साथ होते हैं. इसीलिए व्रती को प्रत्यूषा को अर्घ्य देने से लाभ मिलता है. मान्यता है कि शाम को सूर्य उपासना से संपन्नता आती है और व्रती की सारी मनोकामनाएं पूरी होती है. सूर्य को अर्घ्य देने से कुंडली में सूर्य की स्थिति पहले से ज्यादा मजबूत होती है.
इस व्रत से जुड़ी अनेक मान्यताएं हैं. नहाय-खाय से शुरू होने वाले छठ पर्व के बारे में कहा जाता है कि इसकी शुरूआत महाभारत काल से ही हो गई थी. एक कथा के अनुसार महाभारत काल में जब पांडव अपना सारा राजपाट जुए में हार गए थे तब द्रौपदी ने चार दिनों के इस व्रत को किया था.
सोमवार, 27 मार्च 2023
सूर्यास्त: 18:02
छठ पूजा में वैसे तो कई तरह के प्रसाद चढ़ाए जाते हैं. लेकिन उसमें सबसे अहम ठेकुए का प्रसाद होता है, जिसे गुड़ और आटे से बनाया जाता है. छठ की पूजा इसके बिना अधूरी मानी जाती है. छठ के सूप में इसे शामिल करने के पीछे वैज्ञानिक तर्क यह है कि छठ के साथ सर्दी की शुरुआत हो जाती है और ऐसे में ठंड से बचने और सेहत को ठीक रखने के लिए गुड़ बेहद फायदेमंद होता है.
छठ पूजा का अंतिम और आखिरी दिन ऊषा अर्घ्य होता है. इस दिन उगते सूर्य को अर्घ्य दिया जाता है. जिसके बाद छठ के व्रत का पारण किया जाता है. इस दिन व्रती महिलाएं सूर्योदय से पहले नदी के घाट पर पहुंचकर उदितनारायण सूर्य को अर्घ्य देती हैं और सूर्य भगवान और छठी मैया से संतान की रक्षा और परिवार की सुख-शांति की कामना करती हैं. इस पूजा के बाद व्रती कच्चे दूध, जल और प्रसाद से व्रत का पारण करती हैं.
1. सूर्य देव को अर्घ्य देते समय अपना चेहरा पूर्व दिशा की ओर ही रखें
2. सूर्य देव को अर्घ्य देने के लिए हमेशा तांबे के लोटे का प्रयोग करें.
3. सूर्य देव को अर्घ्य देते समय जल के पात्र को हमेशा दोनों हाथों से पकड़े.
4. सूर्य को अर्घ्य देते समय पानी की धार पर पड़ रही किरणों को देखना शुभ माना जाता है.
5. अर्घ्य देते समय पात्र में अक्षत और लाल रंग का फूल जरूर डालें.
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