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बिहार चुनाव में विवाद की वजह बने SIR पर अब SC के पाले में कुछ खास नहीं, आर्टिकल 329 EC को देता है यह विशेषाधिकार

Bihar polls : संविधान का अनुच्छेद 329 चुनाव आयोग को यह विशेषाधिकार देता है कि वह देश में बिना बाधा के संविधान के तहत चुनाव कराए. चुनाव आयोग एक स्वतंत्र संवैधानिक निकाय है और अब उसने बिहार में विधानसभा चुनाव की तारीखों की घोषणा कर दी है. ऐसे में अगर कोई भी संवैधानिक संस्था उसके कार्यों में बाधा पहुंचाती है, तो बिहार का चुनाव प्रभावित होगा और अगर ऐसा हुआ, तो लोकतांत्रिक व्यवस्था सवालों के घेरे में आ जाएगी.

Bihar polls : बिहार विधानसभा चुनाव से पहले मतदाता सूची के विशेष गहन पुनरीक्षण ( Special Intensive Revision) पर सुप्रीम कोर्ट मंगलवार 7 अक्टूबर को अपना फाइनल जजमेंट देना वाला है. इसी बीच चुनाव आयोग ने 6 अक्टूबर सोमवार को बिहार में चुनाव की तारीखों की घोषणा कर दी है. इस परिस्थिति में संविधान के अनुच्छेद 329 की वजह से सुप्रीम कोर्ट मतदाता सूची के विशेष गहन पुनरीक्षण (Special Intensive Revision) पर कोई ऐतिहासिक फैसला सुनाएगा इसकी संभावना बहुत कम नजर आ रही है.

क्या है संविधान का अनुच्छेद 329?

संविधान का अनुच्छेद 329 चुनाव आयोग को यह अधिकार देता है कि वह चुनाव प्रक्रिया को बिना बाधा के पूरा कराए. संविधान का यह अनुच्छेद एक तरह से न्यायपालिका को चुनावी प्रक्रिया में बाधा डालने से रोकता है और उससे यह उम्मीद करता है कि वह चुनाव आयोग को चुनावी प्रक्रिया पूरी करने में बाधित नहीं करेगा. अनुच्छेद के खंड (क) में कहा गया है कि सीटों के परिसीमन या आवंटन से संबंधित किसी भी कानून की वैधता पर अदालत में सवाल नहीं उठाया जा सकता है, जबकि खंड (ख) में प्रावधान है कि किसी चुनाव को केवल विधानमंडल द्वारा पारित कानून द्वारा निर्धारित तरीके से दायर चुनाव याचिका के माध्यम से ही चुनौती दी जा सकती है.

विधायी मामलों के जानकार अयोध्यानाथ मिश्र बताते हैं कि भारत में हर संवैधानिक संस्था का अपना महत्व है. किसी भी संवैधानिक संस्था को संविधान ने सुप्रीम नहीं बताया है, बल्कि सबको अलग-अलग काम दिए हैं और सभी अपने कार्यों को करने के लिए स्वतंत्र हैं. हर संवैधानिक संस्था से यह उम्मीद की जाती है कि वो दूसरे के कार्यों में दखल नहीं देगा. संविधान के अनुच्छेद 329 में इसी बात की व्यवस्था की गई है कि चुनाव आयोग निष्पक्ष और बिना बाधा के चुनावी प्रक्रिया को पूरा कराए. जहां तक बात एसआईआर मामले में सुनवाई की है, तो अब चूंकि चुनाव की तिथि घोषित हो गई है, इसलिए इस बात की संभावना बहुत कम है कि सुप्रीम कोर्ट इस विषय पर कोई चौंकाने वाला फैसला सुनाएगा, क्योंकि परंपरा ऐसी नहीं रही है.

अगर सुप्रीम कोर्ट ने कोई बाधा डाली तो क्या होगा?

संविधान का अनुच्छेद 329 चुनाव आयोग को यह विशेषाधिकार देता है कि वह निष्पक्ष ढंग से बिना बाधा के चुनाव कराए. उसकी यह जिम्मेदारी है कि चुनाव कराते वक्त वह संविधान की मूल भावना का पूरा सम्मान करे और किसी भी नागरिक को लिंग, जाति और धर्म के आधार पर मतदान से ना रोके. इसके लिए चुनाव आयोग अपने दायित्वों का निर्वहन कर रहा है. मतदाता सूची के पुनरीक्षण का कार्य भी उसी में शामिल है, अगर चुनाव की घोषणा के बाद सुप्रीम कोर्ट कोई ऐसा निर्णय देता है, जिससे चुनाव पर असर हो, तो क्या हो सकता है? इसपर जानकारी देते हुए अयोध्यानाथ मिश्र कहते हैं कि पहली बात तो यह कि सुप्रीम कोर्ट ऐसा कोई निर्णय नहीं करेगा, जिससे एक संवैधानिक संस्था के क्षेत्राधिकार का उल्लंघन हो, फिर भी अगर यह मान लिया जाए कि इस तरह का कोई फैसला सुप्रीम कोर्ट सुनाता है, तो अब जबकि चुनाव की घोषणा हो चुकी है, क्या हो सकता है? क्या चुनाव को रोका जाएगा? वहां किसी भी हाल में 22 नवंबर से पहले चुनाव संपन्न होने हैं, क्योंकि वर्तमान सरकार का कार्यकाल 22 नवंबर को समाप्त हो रहा है. अगर चुनाव संपन्न नहीं हुए तो लोकतांत्रिक व्यवस्था का क्या होगा? इस लिहाज से इस बात की संभावना काफी कम है कि सुप्रीम कोर्ट कोई भी ऐसा निर्णय सुनाएगा, जिससे चुनाव प्रभावित हो. हां, यह जरूर संभव है कि वह वह कोई सकारात्मक सुझाव दे.

क्या हैं चुनाव आयोग के अधिकार?

Election Commission Of India
चुनाव आयोग

चुनाव आयोग एक संवैधानिक संस्था है, जिसे यह अधिकार प्राप्त है कि वह देश में लोकसभा, राज्यसभा, राज्य विधानसभाओं, राष्ट्रपति और उपराष्ट्रपति के चुनाव को संपन्न कराए. इस कार्य को पूरा करने के लिए संविधान ने चुनाव आयोग को कई विशेषाधिकार भी प्रदान किए हैं. चुनाव आयोग द्वारा आदर्श आचार संहिता लागू करना इसी तरह का एक अधिकार है. भारत एक लोकतांत्रिक देश है, जहां चुनाव को निष्पक्ष और बिना भय के कराना चुनाव आयोग का दायित्व है. अगर चुनाव आयोग अपना कार्य सही ढंग से नहीं करा पाता है, तो देश की लोकतांत्रिक व्यवस्था ध्वस्त हो जाएगी, इसी वजह से चुनाव आयोग के काम में कोई भी संवैधानिक संस्था अनावश्यक हस्तक्षेप नहीं करती
है.

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मतदाता सूची के विशेष गहन पुनरीक्षण ( Special Intensive Revision) पर क्यों उठे सवाल?

चुनाव आयोग ने जब बिहार विधानसभा चुनाव के पहले मतदाता सूची के सत्यापन या पुनरीक्षण का काम शुरू किया, तो इसपर विभिन्न राजनीतिक पार्टियों ने सवाल उठाए और कहा कि इस सत्यापन के जरिए गरीबों और पिछड़ों को वोट देने से रोका जाएगा. इसी बात को लेकर विपक्षी पार्टियां कोर्ट पहुंचीं. जब सत्यापन का कार्य शुरू किया गया था, उस वक्त आधार को मान्यता नहीं दी गई थी और यह कहा गया था कि आधार नागरिकता का प्रमाणपत्र नहीं है. हालांकि बाद में आयोग ने आधार को सत्यापन के लिए मान्य कर दिया था और यह भरोसा दिलाया था कि किसी भी योग्य नागरिक का नाम मतदाता सूची से नहीं हटेगा.

इस बारे में बात करते हुए अयोध्या नाथ मिश्र कहते हैं कि कोई भी मतदाता सूची 100 प्रतिशत सटीक नहीं हो सकता है, इसकी वजह यह है कि मान लीजिए आयोग ने सूची जारी की और जिस व्यक्ति का नाम सूची में है उसका देहांत हो गया. यह भी संभव है कि कोई परिवार सूची जारी होने के बाद अपने मतदान क्षेत्र से कहीं बाहर चला गया और मतदान में हिस्सा ना लें. इस लिहाज से मतदाता सूची को कभी भी 100 प्रतिशत सच नहीं कहा जा सकता है. यह भी एक कारण है कि आदर्श स्थिति में भी किसी मतदान केंद्र पर कभी भी 100 प्रतिशत मतदान नहीं होता है. बिहार में चुनाव दो चरणों में होंगे. 6 और 11 नवंबर को मतदान होना है और 14 नवंबर को नतीजे जारी होंगे.

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Rajneesh Anand
Rajneesh Anand
इलाहाबाद विश्वविद्यालय से स्नातक. प्रिंट एवं डिजिटल मीडिया में 20 वर्षों से अधिक का अनुभव. राजनीति,सामाजिक मुद्दे, इतिहास, खेल और महिला संबंधी विषयों पर गहन लेखन किया है. तथ्यपरक रिपोर्टिंग और विश्लेषणात्मक लेखन में रुचि. IM4Change, झारखंड सरकार तथा सेव द चिल्ड्रन के फेलो के रूप में कार्य किया है. पत्रकारिता के प्रति जुनून है.

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