31.1 C
Ranchi

BREAKING NEWS

Trending Tags:

Advertisement

यूरोप में प्रधानमंत्री

यूक्रेन मसले पर हालिया कूटनीतिक विमर्शों में यह स्पष्ट हो चुका है कि दबाव डालकर भारत को रूस के विरुद्ध खड़ा नहीं किया जा सकता है.

रूस-यूक्रेन युद्ध समेत विभिन्न वैश्विक भू-राजनीतिक हलचलों की पृष्ठभूमि में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की यूरोप यात्रा अत्यंत महत्वपूर्ण है. तीन देशों के इस दौरे में वे जर्मनी, डेनमार्क और फ्रांस के नेतृत्व से अनेक विषयों पर विचार-विमर्श करेंगे, जिनमें द्विपक्षीय सहयोग के साथ कोरोना महामारी के बाद की अंतरराष्ट्रीय अर्थव्यवस्था और जलवायु परिवर्तन के मुद्दे भी हैं. जर्मन चासंलर ओलाफ शुल्ज ने हाल ही में पदभार ग्रहण किया है, पर प्रधानमंत्री मोदी से उनकी बातचीत पिछले साल जी-20 बैठक के अवसर पर हुई थी, तब वे वित्तमंत्री थे. जर्मनी यूरोप की महत्वपूर्ण अर्थव्यवस्था है और वहां दस लाख से अधिक भारतीय मूल के लोग हैं.

पिछले साल ही दोनों देशों के बीच कूटनीतिक संबंधों के सात दशक पूरे हुए थे. इस यात्रा में व्यावसायिक गोष्ठी को भी दोनों देशों के नेता संबोधित करेंगे. उल्लेखनीय है कि यूरोपीय संघ और भारत मुक्त व्यापार समझौता करने की दिशा में अग्रसर हैं और कुछ दिन पहले ही 27 देशों के इस संगठन की प्रमुख भारत आयी थीं. फ्रांस के राष्ट्रपति मैक्रां दुबारा निर्वाचित हुए हैं. दोनों नेताओं ने बीते वर्षों में द्विपक्षीय और अंतरराष्ट्रीय मामलों पर साझा पहलों के अलावा जलवायु परिवर्तन की चुनौतियों के समाधान के लिए उल्लेखनीय प्रयास किया है. इनके द्वारा स्थापित अंतरराष्ट्रीय सौर गठबंधन में आज सौ से अधिक देश जुड़ चुके हैं.

इस दौरे के अंतिम चरण में प्रधानमंत्री मोदी फ्रांस में होंगे. डेनमार्क में पांच नॉर्डिक देशों- डेनमार्क, स्वीडन, नॉर्वे, फिनलैंड और आइसलैंड- के शिखर सम्मेलन में प्रधानमंत्री मोदी की भागीदारी इन देशों के साथ-साथ यूरोप के साथ भारत के संबंधों की मजबूती का बड़ा आधार बन सकती है. इन देशों के साथ 2018 से भारत गंभीरता से संबंध स्थापित करने के लिए प्रयासरत है. इन देशों के साथ भारत स्वच्छ ऊर्जा तथा अत्याधुनिक डिजिटल तकनीक में सहयोग बढ़ाने के लिए इच्छुक है. ये देश भी भारत को एक महत्वपूर्ण गंतव्य के रूप में देखते हैं क्योंकि भारत का जोर भी स्वच्छ ऊर्जा पर है तथा सूचना तकनीक के क्षेत्र में भी इसका स्थान अग्रणी देशों में है.

समूचे यूरोप की इच्छा भारतीय बाजार तक पहुंचने की है. कुछ दिन पहले ब्रिटिश प्रधानमंत्री बोरिस जॉनसन भी भारत आये थे. आत्मनिर्भरता के संकल्प के साथ भारत स्वयं को वैश्विक आपूर्ति शृंखला में स्थापित करने की दिशा में अग्रसर है. इस प्रक्रिया में हमें भी यूरोप का सहयोग चाहिए. इस तरह हम कह सकते हैं कि प्रधानमंत्री मोदी की वर्तमान यात्रा का केंद्रीय विषय आर्थिक सहयोग बढ़ाना है. वैश्विक महामारी, अंतरराष्ट्रीय आपूर्ति शृंखला में अवरोध तथा आर्थिक विकास में गतिरोध जैसे कारकों ने ऐसे सहयोग की आवश्यकता को बहुत अधिक बढ़ा दिया है. लेकिन यूक्रेन मुद्दे पर भी चर्चा स्वाभाविक है. हाल के कूटनीतिक विमर्शों में यह स्पष्ट हो चुका है कि भारत पर दबाव डालकर उसे रूस के विरुद्ध खड़ा नहीं किया जा सकता है, इसलिए ये देश भी सहयोग को ही प्राथमिकता देंगे.

Prabhat Khabar App :

देश, एजुकेशन, मनोरंजन, बिजनेस अपडेट, धर्म, क्रिकेट, राशिफल की ताजा खबरें पढ़ें यहां. रोजाना की ब्रेकिंग न्यूज और लाइव न्यूज कवरेज के लिए डाउनलोड करिए

Advertisement

अन्य खबरें