प्रो मुश्ताक अहमद, प्रधानाचार्य, सीएम कॉलेज, दरभंगा
ईद का शब्दिक अर्थ खुशी है और यह खुशी पाक महीना रमजान का रोजा और अन्य इबादतों के पूरा होने के बदले में ईद मनाई जाती है. इस्लाम धर्म में केवल दो त्योहार हैं, एक ईद और दूसरा ईद-उल-अज़हा अर्थात बकरीद. ईद मानाने से पहले इस्लाम ने मुसलमानों पर जितने मजहबी शर्तें रखी हैं यदि उसपर संजीदगी से गौर कीजिए तो यह साबित होता है कि यह महीना मुसलमानों के लिए सामाजिक सरोकार से जुड़ने का पैगाम भी देता है. रमजान में रोजे के इफ्तार का दृष्य ही सामाजिक समरसता का प्रमाण होता है कि एक ही दस्तरखान पर राजा और रंक सभी एक साथ मिल कर इफ्तार करते हैं. बगैर किसी भेद भाव के एक ही सफ में नमाज अदा करते हैं जैसा कि अल्लामा इकबाल ने कहा हैः-
‘एक ही सफ में खड़े हो गये महमूद व अयाज
न कोई बंदा रहा और न कोई बंदा नवाज’
ईद की नमाज से पहले हर एक साहिबे निसाब (आर्थिक दृष्टि से संपन्न) मुसलमानों पर फ़र्ज़ है कि वह फ़ितरा की राशि अवश्य ही उन लोगों के बीच बांट दें जो मुहताज व आर्थिक दृष्टि से कमजोर हैं. फ़ितरा के संबंध में जो हिदायत दी गई है उसके पीछे यह पैग़ाम छुपा हुआ है कि जो धनवान व्यक्ति हैं वह न चाहते हुए भी मज़हबी फ़रमान की वजह से फितरा की राशि गरीबों में तकसीम करेंगे. जिस राशि से गरीब और मोहताज तबका भी ईद की खुशियां हासिल कर सकें. मिसाल के तौर पर एक व्यक्ति पर इस वर्ष 90 रुपये फितरे की राशि तय की गई है यदि किसी परिवार में 10 व्यक्ति हैं तो उस परिवार को 900 रुपये फितरे के तौर पर बांटना होगा. यदि समाज में एक सौ परिवार सुखी सम्पन्न है और दस बीस परिवार आर्थिक दृष्टि से कमजोर हैं तो उनके पास भी इतनी राशि अवश्य ही पहुंच जाएगी कि वह भी समाज के अन्य लोगों की तरह अपनी ईद खुशी खुशी मना सकें.
यानी फ़ितरा और जकात की राशि गरीबों में बांटना समाज में आर्थिक संतुलन क़ायम करने का एक अनोखा नुस्खा है. इस तरह ईद सामाजिक समरसता का पैग़ाम देता है और मुसलमानों को सामाजिक सरोकार से जोड़ने का सबक़ सिखाता है. इस्लाम धर्म पूरे तौर पर एक सांईनटिफिक मजहब है और इंसानियत की हिफ़ाज़त का पाठ पढ़ाता है जिसका नमूना पूरे रमजान के महीने और फिर ईद के दिन देखा जा सकता है कि ईद की खुशी में न सिर्फ मुसलमान बल्कि विभिन्न धर्मों के लोग शामिल होकर मुसलमानों की खुशी को दोबाला करते हैं और तमाम भेद भाव मिटता हुआ नजर आता है. चारों तरफ़ सामाजिक सौहार्द की फिजा कायम हो जाती है. इस तरह ईद, एक मजहबी त्योहार के रूप में हमारी ज़िन्दगी में खुशियों की धारा तय करने के साथ-साथ समाज में आर्थिक संतुलन क़ायम करने और सामाजिक सरोकार को मजबूत बनाने का सबक भी सिखाता है.
इस्लाम धर्म के अनुसार रमज़ान महीने में हर एक बालिग (व्यस्क) और स्वस्थ्य आदमी पर रोज़ा फर्ज़ है और साथ ही साथ विषेश नमाज़ तरावीह भी पढ़ी जाती है. चूंकि इस्लाम धर्म की एक मात्र धार्मिक किताब क़ुरआन शरीफ़ इसी पाक महीने रमज़ान में मुकम्मल हुई इसलिए रमज़ान महीना की तमाम इबादतों को बड़ी अहमियत हासिल है. इसलिए जब रमज़ान का महीना पूरा होता है तो उसी की खुशी मनाने के लिए ईद का त्योहार मनाया जाता है. ईद में विशेष प्रकार के पकवान बनाये जाते हैं जिसमें सेवई, मिठाईयां, दूध लच्छे आदि शामिल हैं. ईद एक ऐसा त्योहार है जिसमें समाज के संपन्न एवं आर्थिक दृष्टि से कमज़ोर सभी नये वस्त्र धारण करते हैं.
यदि किसी व्यक्ति के पास इतना धन नहीं है कि वह सभी प्रकार के नए वस्त्र बना सकें तो कम से कम एक नया वस्त्र अवश्य धारण करते हैं और इत्र खुशबू का प्रयोग करते हैं. ईद में मीठे पकवान को तरजीह दी जाती है और एक दूसरे के घर जाकर मीठी सेवइयां और इत्र व अन्य खुशबू का आदान प्रदान किया जाता है. यह परंपरा सदियों से चली आ रही है और इसमें सभी धर्म और जाति के लोग मिलकर खुशियां बांटते हैं. अपने महान देश भारत की ईद पूरे विश्व में प्रसिद्ध है कि यहां का बहुसंख्यक समाज अपने अल्पसंख्यक मुस्लिम समाज के साथ इस त्योहार को राष्ट्रीय स्तर पर मनाते हैं और यहां की गंगा-जमुनी संस्कृति को मजबूत बनाते हैं.
इस्लाम धर्म में चांद देखकर महीने तय होते हैं इसलिए इस्लामिक केलेंडर क़मरी केलेंडर यानी चांद का केलेंडर कहलाता है इसलिए रमजान का महीना पूरा हो जाने के बाद ही ईद मनाई जाती है. ज्ञातव्य हो कि क़मरी महीना 29 दिन या 30 दिन के ही होते हैं इसलिए यदि इस वर्ष 29 दिन का रमजान हुआ तो 31 मार्च 2025 को ईद मनाई जाएगी और यदि 30 दिन का महीना हुआ तो प्रथम अप्रैल 2025 को ईद मनाई जाएगी और यह चांद के निकलने पर निर्भर करेगा. इसलिए रमज़ान महीने के आखिरी सप्ताह में ईद की तैयारी का माहौल रहता है और अंतिम शुक्रवार जिसे जुमअतुल विदा कहा जाता है उसके बाद से ही ईद की चमक दमक दिखाई देने लगती है.
पैगंबर-ए-इस्लाम हजरत मोहम्मद (स0) की हदीस अर्थात फरमान है कि ‘‘ईद का दिन आता है तो फरिश्ते रास्तों के किनारे पर खड़े होकर पुकारते हैं कि ऐ लोगों रब की बारगाह की ओर चलो वहीं तुम्हें नेकी तौफीक होगी’’. इसी हदीस में यह भी कहा गया है कि ‘‘तुमने क़्याम किया यानी नमाज़ पढ़ी, रोज़े भी रखे और अपने परर्वदिगार की इबादत की अब उसका इनाम हासिल कर लो’’. इस हदीस से यह पता चलता है कि ईद इस्लाम धर्म वालों के लिए अल्लाह का सबसे बड़ा तोहफ़ा है.