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अब एनआइए हुई और सशक्त

अवधेश कुमार वरिष्ठ पत्रकार [email protected] भारत को आतंकवाद का सामना करने के लिए देश के पास सांस्थानिक, कानूनी, न्यायिक, हर तरह का सशक्त ढांचा चाहिए. राष्ट्रीय जांच एजेंसी (एनआइए) को नये संशोधन द्वारा बढ़ाया गया अधिकार, कार्यक्षेत्र और भौगोलिक सीमा विस्तार वास्तव में आतंकवाद की छानबीन एवं कानूनी कार्रवाई करनेवाली शीर्ष एजेंसी को सशक्त करने […]

अवधेश कुमार

वरिष्ठ पत्रकार

[email protected]

भारत को आतंकवाद का सामना करने के लिए देश के पास सांस्थानिक, कानूनी, न्यायिक, हर तरह का सशक्त ढांचा चाहिए. राष्ट्रीय जांच एजेंसी (एनआइए) को नये संशोधन द्वारा बढ़ाया गया अधिकार, कार्यक्षेत्र और भौगोलिक सीमा विस्तार वास्तव में आतंकवाद की छानबीन एवं कानूनी कार्रवाई करनेवाली शीर्ष एजेंसी को सशक्त करने का ही कदम है. साल 2008 में 31 दिसंबर को अस्तित्व में आयी एनआइए एक संघीय जांच एजेंसी है, जो संसद द्वारा दिये गये अधिकारों तथा गैरकानूनी गतिविधियां निवारक कानून के तहत काम करती है.

इसकी कुछ सीमाएं भी थीं. यह भारतीय सीमा के अंदर ही छानबीन एवं कार्रवाई कर सकती थी. हाल के वर्षों में मानव तस्करी और साइबर अपराध तेजी से बढ़े हैं. उनसे निपटने के लिए दूसरी एजेंसी नहीं है. आतंकवाद का संबंध इनसे भी है. इनके लिए इसमें संशोधन की जरूरत थी. अब संसद ने इसे पारित कर दिया है.

हमारे देश की समस्या है कि आतंकवादी यदि हमला कर दें, तो उसमें सुरक्षा विफलता पर पूरा हंगामा होगा. पकड़े गये आतंकवादियों को सजा मिलने में देर हुई, तो एजेंसी एवं न्यायिक प्रक्रिया की आलोचना होगी. लेकिन, जब एजेंसी को शक्तिसंपन्न बनाने की कोशिश होगी, तो उसकी भी तीखी आलोचना होगी. यही एनआइए के संदर्भ मेें भी हुआ. संसद से लेकर बाहर तक हंगामा और विरोध जारी है.

नये प्रावधान में एनआइए को भारत से बाहर किसी अपराध के संबंध में मामले का पंजीकरण करने और जांच का अधिकार मिल गया है. वह विदेशों में भारतीय एवं भारतीय परिसंपत्तियों से जुड़े मामलों की जांच कर सकेगी, जिसे आतंकवाद का निशाना बनाया गया हो. अधिनियम की धारा 3 की उपधारा 2 का संशोधन करके एनआइए के अधिकारियों को वैसी शक्तियां, कर्तव्य, विशेषाधिकार और दायित्व प्रदान की गयी है, जो अपराधों की जांच के संबंध में पुलिस अधिकारियों द्वारा न केवल भारत में, बल्कि देश के बाहर भी प्रयोग की जाती रही है.

आतंकवाद देश की सीमा का मामला नहीं है. कोई कहीं से बैठकर आतंकवादी हमले की योजना बनाकर उसे अंजाम दे सकता है. भारत में होनेवाले ज्यादातर हमलों के सूत्र विदेशों से जुड़े रहे हैं. आईएस और अल-कायदा में शामिल होनेवाले भारतीयों की जानकारी आदि के लिए भी भारत से बाहर जाना होगा. विदेशों में होनेवाले हमलों में भी भारतीय मारे जाते हैं. अभी श्रीलंका मंे हुए हमले में भारतीय मारे गये. अब एनआइए किसी भी देश में जाकर जांच कर सकेगी.

साइबर अपराध भयावह रूप ले चुका है. इसके लिए भी पेशेवर एजेंसी की आवश्यकता है. आतंकवाद के साथ भी साइबर अपराध सन्नद्ध है. भारत और दुनिया में अनेक आतंकवादी पकड़े गये हैं, जिनका पता उनके मेल, सोशल साइट या अन्य साइबर क्षेत्रों से चला.

इसी तरह मानव तस्करी आज भयावह अतंरराष्ट्रीय समस्या बन चुकी है. इसका संबंध बच्चों और महिलाओं को देश से विदेश तक यौन गुलाम बनाने, उनको विकलांग बनाकर भीख मंगवाने से लेकर उन्हें आतंकवाद मेें झोंकने तक है. सीबीआई और पुलिस जो कर सकती हैं, वे तो करेंगी ही, लेकिन जिस अपराध का विस्तार अंतरराष्ट्रीय स्तर पर या आतंकवाद तक होगा, वह एनआइए के हाथों आ जायेगा.

जहां तक विशेष न्यायालयों का प्रश्न है, तो नये कानून में कहा गया है कि केंद्र और राज्य सरकारें अपराधों के निपटारे के मकसद से एक या अधिक सत्र न्यायालय या विशेष न्यायालय स्थापित करें. इससे न्यायाधीशों की अनुपस्थिति की समस्या नहीं रहेगी. एनआइए न्यायालयों में न्यायाधीशों की नियुक्ति उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश ही करते रहेंगे.

इस तरह एनआइए को अब एक समग्र चरित्र मिल गया है. अब आतंकवाद विरोधी गैरकानूनी गतिविधियां निवारक कानून में हो रहे बदलाव के बाद एनआइए की प्रक्रियागत समस्याएं भी दूर हो जायेंगी. अभी एनआइए के जांच अधिकारी को आतंकवाद से जुड़े मामले में संपत्ति जब्त करने के लिए पुलिस महानिदेशक से अनुमति लेनी होती थी.

संशोधन के पारित होने के बाद एनआइए के महानिदेशक से अनुमति लेनी होगी. एनआइए के महानिदेशक को ऐसी संपत्तियों को कब्जे में लेने का अधिकार मिल जायेगा, जिनका आतंकी गतिविधियों में इस्तेमाल किया गया. दूसरे, अभी तक मामले की जांच उपाधिक्षक (डीएसपी) या सहायक आयुक्त (एसीपी) स्तर के अधिकारी ही कर सकते थे.

अब इंस्पेक्टर या उससे ऊपर के अधिकारी भी जांच कर सकते हैं. गठन के बाद से एनआइए का प्रदर्शन संतोषजनक रहा है. इसके हाथों 272 मामले आये. इनमें 52 मामलों में फैसले आये और 46 में दोष सिद्ध किया जा सका. वहीं 99 मामलों में आरोपपत्र दाखिल हो चुका है. इसे आप एनआइए का कमजोर प्रदर्शन नहीं कह सकते.

उम्मीद है कि शक्ति और कार्यक्षेत्र के विस्तार तथा न्यायिक प्रक्रिया तीव्र गति से चलने के ढांचे के बाद एनआइए आतंकवादी साजिशों, आतंकवाद की गोपनीय गतिविधियों संबंधी मामलों की सफल छानबीन, गिरफ्तारी और संसाधन जब्ती के साथ संदिग्ध लोगों को काफी हद तक रोकने तथा आतंकवादियों को उसी तरह सजा दिलाने में सफल होगी, जिस तरह अमेरिकी संघीय जांच एजेंसी करती है. अधिकार बढ़ने के साथ दुरुपयोग की संभावना भी बढ़ती है. लेकिन, केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह ने आश्वस्त किया है कि एजेंसी बिना भेदभाव के काम करेगी.

Prabhat Khabar Digital Desk
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