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हम माफियागीरी को नष्ट करना चाहते हैं : बिंदेश्वरी दुबे

बिहार के 21वें मुख्यमंत्री बिंदेश्वरी दुबे सर्वप्रथम 1952 में बेरमो विधानसभा क्षेत्र से निर्वाचित हुए. स्वर्गीय केदार पांडेय, अब्दुल गफूर व डॉ जगन्नाथ मिश्र के मंत्रिमंडल में ये विभिन्न विभागों के मंत्री रहे. वस्तुत: श्री दुबे का राजनीति में प्रवेश मजदूर आंदोलनों के माध्यम से ही हुआ. समस्याग्रस्त प्रदेश बिहार को इससे उबारने का आश्वासन […]

बिहार के 21वें मुख्यमंत्री बिंदेश्वरी दुबे सर्वप्रथम 1952 में बेरमो विधानसभा क्षेत्र से निर्वाचित हुए. स्वर्गीय केदार पांडेय, अब्दुल गफूर व डॉ जगन्नाथ मिश्र के मंत्रिमंडल में ये विभिन्न विभागों के मंत्री रहे. वस्तुत: श्री दुबे का राजनीति में प्रवेश मजदूर आंदोलनों के माध्यम से ही हुआ. समस्याग्रस्त प्रदेश बिहार को इससे उबारने का आश्वासन पूर्ववर्ती मुख्यमंत्रियों की भांति श्री दुबे ने भी दिया है. उन्हें कहां तक सफलता मिलती है, यह तो समय ही बतायेगा, लेकिन उन्होंने बिहार की समस्याओं पर हरिवंश से बेबाक बातचीत की.

सवाल : कुछ लोगों ने आपके नेता चुने जाने पर कहा कि बिहार के असली मुखयमंत्री ‘जगन्नाथ मिश्र’ हैं, इस पर आपकी प्रतिक्रिया?
जवाब : हमारे आपसी संबंध अलग हैं. इस प्रणाली में सरकार के अकेले किये कुछ नहीं हो सकता, सबका आवश्यक है. जन सहयोग अतिआवश्यक है. खास कर इस प्रणाली में सरकारी तंत्र पर नियंत्रण रहे व सरकार तथा जनता के बीच आपसी संबंध बढ़िया हो, इसका प्रयास आवश्यक होता है. सार्वजनिक आदमी सरकारी तंत्रों का नियंत्रण करे, जन-भावनाओं को समझे, जनता की आशाओं को ठीक से समझे व उसके अनुकूल आचरण करे. निर्णय करे. प्राथमिकताओं का निर्धारण करे व सारी प्रशासनिक गतिविधियों को जनता की भावनाओं के अनुकूल बनाये. जहां जनसमर्थन की बात है, सबके सहयोग की बात है, वहां उसे सबका सहयोग लेना है. इसका कदापि मतलब नहीं है कि मैं मुख्यमंत्री हूं और किसी से मेरा अच्छा रिश्ता हो गया, तो वह मुख्यमंत्री हो गया.

मेरे सभी सहयोगी हैं. मैं सबसे राय लेता हूं. अगर एक आदमी मान ले कि बुद्धि पर उसका ही एकाधिकार है, तो वह गलत है. जितना अधिक परामर्श करेंगे, उतना ही निर्णय ठीक होगा. निर्णय मुझे लेना है, अत: अधिक-से-अधिक लोगों से परामर्श कर, उनका मंतव्य जानता हूं. इससे मुझे निर्णय पर पहुंचने में आसानी होती है. इसीलिए जो निर्णय लेना होता है, वह मैं अपने मन से लेता हूं. निर्णय लेने से पहले मैं अवश्य सबसे परामर्श लेता हूं. यदि मैं पांच व्यक्तियों से परामर्श लेता हूं, तो इसका अर्थ नहीं कि मैं उनके ‘गाइडेंस’ में चल रहा हूं. यह सही है कि आरंभ में ऐसी हवा दी गयी, लेकिन बाद में मेरे निर्णयों से स्थिति स्पष्ट हो गयी है.

सवाल : पूर्ववर्ती मुख्यमंत्रियों से अलग आपकी कार्यशैली क्या होगी?
जवाब : जनता हमारे संबंध में क्या सोचती है, हमारे निर्णयों पर क्या प्रतिक्रिया व्यक्त करती है, हमारा मापदंड यही है. हमारी अच्छाई-बुराई का मापदंड जनता है. जनता की राय कई मंचों से परिलछित होती है. एक तो स्वयं मैं लोगों से मिलता हूं, वे अपनी बातें कहते हैं. हमारे सरकारी तंत्र के बारे में उनकी राय मालूम होती है, हम कहां गलत-सही हैं, यह पता चलता है. दूसरा माध्यम समाचारपत्र है. पत्रों के प्रतिनिधि, जनता व जनप्रतिनिधियों से मिलते हैं, उनकी राय जानते हैं. उनका दायरा बड़ा होता है, अत: मैं पत्र-प्रतिनिधियों से भी जानकारी लेता हूं कि मेरे कार्यकलापों के संबंध में जनता क्या सोचती है. इसके बाद विधानसभा-विधान परिषद हैं. जनता की राय जानने के यही तीन मुख्य फोरम हैं. जानकारी मैं इन स्रोतों से हासिल करता हूं. जनतंत्र में इस रास्ते से अलग हट कर कोई शासन नहीं कर सकता. जो ऊपर है, उसे बराबर अपनी गलतियों का एहसास होना चाहिए. अपनी आलोचना से हम नहीं घबड़ाते. हमारे यहां एक ‘सिस्टम’ है, समाचारपत्र में जो छपता है, उस पर तत्काल कार्रवाई हो, यह मेरा आदेश है. कार्रवाई के बाद मैं उसे देखता हूं. समाचारपत्र में छपी चीजों के बारे में मैं तफसील से पता करता हूं. मैं खंडन में नहीं, वस्तुस्थिति से अवगत कराने में विश्वास करता हूं. अपने सभी सहयोगियों से मैं राय लेता रहता हूं. फिर हम निर्णय करते हैं.
सवाल : चंपारण में डाकुओं को समाप्त करने के लिए आपने अभियान चलाया है. पूर्व में भी ऐसे अभियान चलाया है, सफलता नहीं मिली. दूसरी ओर बिहार में कुछ जगहों पर अतिवादी अत्यंत सक्रिय हैं. इन पर आप कैसे काबू पायेंगे?
जवाब : अब डाकू भाग रहे हैं, कुछ पकड़े गये हैं. नीमा अहीर का संपर्क सूत्र पकड़ लिया गया है. लोग राहत महसूस कर रहे हैं. नेपाल की सीमा पर मैंने 40 आउटपोस्ट बनाने का आदेश दे दिया है. हम चाहते नहीं कि इधर से अपराधी-तस्कर उधर भागें, अगर भाग जायें, तो घुसने नहीं देंगे. पश्चिमी चंपारण के स्वतंत्र संगठनों ने मुझे इस कार्रवाई की सफलता की सूचना दी है. जहां नक्सलवादी हैं, वहां की समस्या अलग ढंग से हल करना चाहता हूं. वहां विकास नहीं हुआ है. जहां अंधेरा है, वहीं ये पलते हैं. जिस इलाके का विकास नहीं हुआ, वहां सबसे अधिक दुख-दर्द-कठिनाई है, अन्याय-शोषण-उत्पीड़न है, वहां लोग विवश हो कर हथियार उठाते हैं, वहां नक्सलवादी तत्व भी सक्रिय हो जाते हैं. वस्तुत: नक्सलवादी हमारी जनता नहीं है. कोई एक बाहरी आता है व लोगों से कहता है, तुम्हारे पास दूसरा क्या विकल्प है? तुम रोज पिटते हो, औरतों की अस्मत लुट रही है. थाने में थानेदार भी परेशान करता है. अत: अन्याय से जूझो. ‘हथियार उठाओ, उसका प्रतिकार-प्रतिशोध करो. अत: प्रतिशोध की भावना उठती है. निरंतर अन्याय से पीड़ित लोगों में हिंसा भड़कती है. अत: मेरा इरादा है कि ऐसे क्षेत्रों का विकास कर उन्हें हम मुख्यधारा से जोड़ेंगे. राजनीतिक रूप से जागरूक बनायेंगे. हम ऐसा वातावरण बनायेंगे कि अहिंसात्मक व वैधानिक तरीके से कार्य हों. उस क्षेत्र का समुचित विकास करेंगे. शिक्षा-स्वास्थ्य के संबंध में व्यवस्था करेंगे, फिर उन्हें हथियारों की राजनीति के संबंध में बतायेंगे. जो बाहरी तत्व आ कर उन्हें उकसाते हैं, उन पर सख्ती से कार्रवाई करेंगे.
सवाल : आपकी एक और महत्वपूर्ण समस्या है, आदिवासियों को मुख्यधारा से जोड़ने की. कोल्हान आंदोलन के बारे में काफी चर्चा हुई है. अभी भी स्थिति वहां सामान्य नहीं है, इनसे आप कैसे निबटेंगे?
जवाब : कोल्हान में अलग समस्या है. राजनीतिक मंशा से वहां विरोधी कार्रवाई कर रहे हैं. बीच में ऐसी धारणा हो गयी थी कि गैर आदिवासी ही जंगलों का सफल मंत्री हो सकता है. हमारी मान्यता अलग है. हम वनवासियों को बताना चाहते हैं कि जहां आप रहते हैं, जंगल काटने से पहले वहीं खतरा होगा. देश व समाज तो बाद में हैं, तत्काल असर तो स्थानीय लोगों पर ही पड़ेगा. उनका नुकसान तत्काल होगा. यह वातावरण बनाने का कार्य कौन करेगा? आदिवासी गैरआदिवासी के संबंध में सशंकित हैं, हम अच्छी बात भी कहें, तो उन्हें विश्वास नहीं होता, लेकिन जब उनके बीच का आदमी यही बात कहता है, तो वे सोचते हैं. उनके लोग ही उनके बीच काम करें. यह मेरा इरादा है. जंगल काटने, हिंसा फैलाने के विरुद्ध जनमत बनाने का काम आदिवासी ही करेंगे. हर मर्ज की दवा एक नहीं है. मैं हर समस्या को उसके संदर्भ में सुलझाना चाहता हूं. मैं इससे सहमत हूं कि उनका समुचित विकास नहीं हुआ, यातायात, सिंचाई, बिजली का वहां अभाव है. बिहार के अन्य भागों का जो विकास नहीं हुआ है. मिशनवाले उनके बीच लोकप्रिय कैसे हुए? उन्होंने कपड़ा पहनना सिखाया, शिक्षा दी, जीवन के अंधकार में रोशनी दी, एक इनसान की जिंदगी जीने के सपने दिखाये. इस दिशा में उन्होंने कार्य किया. उनके कार्यों ने आदिवासियों का मन जीत लिया. इस कारण उन्होंने अपना धर्म भी बदला. जो मजहब उन्हें बढ़िया जीवन न दे सका, उसे उन्होंने छोड़ दिया. कोई धर्म अगर इनसान को जिंदगी देता है, तो लोग उसे स्वीकार करते हैं. इसमें क्या बुराई है.

सवाल : आपके पूर्व मुख्यमंत्रियों ने भी माफिया गिरोहों को समाप्त करने की बार-बार घोषणा की, पर हर बार वे मजबूत ही हुए. आपने भी सत्ता संभालते ही इन्हें समाप्त करने की घोषणा की है. लेकिन लोग पूर्व घोषणाओं की भांति ही इसे भी ले रहे हैं!
जवाब : विधि व्यवस्था हमारी पहली प्राथमिकता है. हर तरह के आतंक-भय-शोषण को समाप्त करना है. धनबाद के माफिया गिरोहों की मैं क्यों चर्चा करता हूं. कुछ लोग दूसरों की मेहनत की कमाई को हड़प लेते हैं. माफिया आखिर हैं कौन, उसकी परिभाषा क्या है? बेईमानी से, छल से, दूसरों की अर्जित संपत्ति को छीन लेना, हड़प लेना, फिर उस धन से अपराधकर्मियों को इकट्ठा करना. फिर ज्यादा-से-ज्यादा छीनने की प्रवृत्ति बढ़ती है. इसे हम दो तरह से रोकेंगे. गैरकानूनी पैसा अर्जित करने के जो रास्ते हैं, उसे बंद करना है. जब तक आप शोषण के स्रोतों को बंद नहीं करते, तब तक इतना पैसा उनके पास है कि वे हमारी तमाम कार्रवाइयों को नाकाम कर देंगे. उनके पैसे का स्रोत बंद करना है.

कोल इंडिया में एक परंपरा थी. इलाका बंटा था. इस इलाके में फलां बाबू काम करेंगे. उस इलाके में दूसरा कोई नहीं जा सकता था. टेंडर भरने कोई नहीं जाता था. ‘सपोर्टिंग टेंडर’ वे ही लोग देते थे. कोई दूसरा देने की हिम्मत नहीं करता था. इस एरिया का महाप्रबंधक इतना आतंकित रहता था कि माफिया सरगना के आदेश पर वह काम करता था. मैं बताऊं, बी.सी.सी.एल. में चेक के जरिये भुगतान शुरू हुआ, लेकिन एरिया नंबर 8 व 9 में जो सूरजदेव सिंह का एरिया था, उसमें आज से छह माह पहले तक ऐसे भुगतान नहीं होते थे. एक से दो साल पूर्व चेक द्वारा भुगतान आरंभ हो गया था. वहीं नकद भुगतान होता था. मैंने पता किया, वहां ऐसा क्यों होता है, बताया गया- सूरजदेव सिंह ऐसा चाहते थे. नकद भुगतान हुआ, सारे मजदूर पैसा ले कर आये. एक जगह इकट्ठा हुआ, दे दिया गया सूरजदेव बाबू को, फिर जिसे मन हुआ, बांट लिया.

बिहार में माफिया पर इतना कुछ कहा जा चुका है, वायदे किये गये हैं कि लोगों को अब इन पर विश्वास नहीं होता. हमारी विश्वनीयता समाप्त हो गयी है. हमारे कामों पर अब हमें तौलिए. हम माफियागीरी को समूल नष्ट करना चाहते हैं, यह मेरी प्रबल इच्छा है. आरंभ में मेरा पहला प्रयास धनबाद के सार्वजनिक जीवन के माफिया गिरोहों का सफाया था. सभी राजनीतिक दलों के माफिया हैं. लेकिन इस बार किसी भी माफिया के लोगों को हमने टिकट नहीं दिया. फलस्वरूप सभी माफिया इकट्ठे हो गये. सभी ने अपने-अपने प्रत्याशी खड़े किये. अगर धनबाद में हम जीते, बाघमारा में हम जीते, तो कुछ तो वे टूटे. उनकी दीवारें तो ध्वस्त हुईं. उन्होंने जो एक किला बना रखा था, वह कमजोर हुआ. हमारे व्यवहार ने यह साबित कर दिया है कि माफिया को अब हमारे दल व सरकार का संरक्षण नहीं प्राप्त हो सकता. यह बात स्पष्ट हो गयी है. लोग पहले हम पर उंगली उठाते थे, कहां तक सही या गलत – यह अलग बात है. लेकिन टिकट वितरण के समय ही यह स्पष्ट हो गया कि ऐसे तत्वों को हमारे यहां प्रश्रय नहीं मिलेगा. जितनी भी धनबाद में हमारी सभाएं हुईं, उन सबमें मैंने माफिया गिरोहों को चुनौदी दी. मैंने राजीव जी से भी कहा कि इस मामले में हमें आशीर्वाद दीजिए. हम यहां से माफियागीरी समाप्त करना चाहते हैं.

माफियागीरी का यह आलम था कि परिचय कराया जाता था. इनसे मिलिए, ये फलां बाबू हैं, फलां क्षेत्र के ‘रंगदार’ हैं. एरिया-एरिया के रंगदार. मुझसे भी लोगों ने परिचय कराया. मिलिए ये फलां एरिया के रंगदार हैं. वे रंगदारी टैक्स वसूल करते थे. यह क्या है? जितनी ट्रकें चलेंगी, कोयला ढोने, बालू ले जानेवाले सभी ट्रांसपोर्ट पर रंगदारी टैक्स देना होता था. अमुक एरिया में किसी भी राह से गुजरे, तो वहां के रंगदार को 50 रुपये प्रति ट्रक देना होता था, जो नहीं दिया, उसकी ट्रक नहीं गुजर सकती थी, उस इलाके से. बाहर के लोगों की बात छोड़िए, वहां के प्रतिष्ठित लोगों को भी देना पड़ता था. वहां के एक बड़े प्रतिष्ठित व्यक्ति ने मुझसे कहा कि ‘बाबा मुझे भी 50 रुपये देने पड़ते हैं.’ यह प्रशासन था. यानी एक ट्रक पर 50 रुपये देने का अर्थ उपभोक्ताओं को महंगा सामान प्राप्त होगा. इसका प्रतिकूल असर उद्योग पर पड़ता था. बीच में कुछ लोग बंदूक ले कर बैठते थे, बिना काम किये वसूली करना उनका धर्म था. यह सब अब नहीं होगा.
सवाल : आपके विरुद्ध अदालत में अवमानना की कार्रवाई हुई थी? किसी अदालत ने आपके विरुद्ध टिप्पणी की थी? आपने अपने दो पुराने लोगों ओ.पी. लाला (राज्यमंत्री) व राजेंद्र सिंह (विधायक) को प्रमुखता दी है. इसके संबंध में तरह-तरह की बातें कही जा रही हैं?
जवाब : राजेंद्र सिंह व ओ.पी.लाला के संबंध में अच्छा हो आप उस इलाके में जा कर स्वयं पता करें. ये लोग अपने क्षेत्र के कर्मठ व लोकप्रिय लोग हैं. दोनों नौजवान है. अगर ये लोकप्रिय नहीं होते, तो माफिया इनको जीतने नहीं देती. इनके खिलाफ माफिया ने जिहाद छेड़ा. इनकी कोई बदनामी नहीं है. ओ.पी. लाला पर तो माफिया लोगों ने गोली चलायी, भगवान का शुक्र है कि वे बच गये. उनको मैंने टिकट दिया, इस पर माफिया बौखला गये. उनके खिलाफ जनता की कोई शिकायत नहीं है. मेरे ऊपर अदालत की अवमानना की कभी कार्रवाई नहीं हुई, मैं कानून को माननेवाला हूं.
सवाल : माफिया गिरोह सिर्फ धनबाद में नहीं, हजारीबाग, बेरमो सभी क्षेत्रों में छाये हैं, लेकिन आपका अभियान धनबाद माफिया के खिलाफ ही है. ऐसा क्यों?
जवाब : हमारा अभियान सबके खिलाफ है. चूंकि धनबाद में माफिया के सरगना हैं, उनकी शाखाएं हर जगह फैली हैं. उनका परिवार बड़ा है. इस परिवार के सदस्य गिरिडीह, हजारीबाग, हर जगह हैं. जहां-जहां कोयला खदानें हैं, ये हैं. लेकिन इनके बड़े सरगने धनबाद में हैं. सरदारों को अगर हम कमजोर करें, तो ये स्वत: कमजोर हो जायेंगे.

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