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डॉ रामदयाल मुंडा व डॉ केसरी को पढ़ेंगे स्कूली बच्चे

स्कूली पाठ्यक्रम में पहली बार शामिल की गयी झारखंड की संस्कृित पंडित रघुनाथ मूरमू, डॉ निर्मल मिंज व डॉ कामिल बुल्के के बारे में भी होगी पढ़ाई कक्षा सात के सामाजिक विज्ञान की किताब हमारी विरासत में किया गया शामिल सुनील कुमार झा रांची : झारखंड के स्कूली शिक्षा के पाठ्यक्रम में पहली बार झारखंड […]

स्कूली पाठ्यक्रम में पहली बार शामिल की गयी झारखंड की संस्कृित
पंडित रघुनाथ मूरमू, डॉ निर्मल मिंज व डॉ कामिल बुल्के के बारे में भी होगी पढ़ाई
कक्षा सात के सामाजिक विज्ञान की किताब हमारी विरासत में किया गया शामिल
सुनील कुमार झा
रांची : झारखंड के स्कूली शिक्षा के पाठ्यक्रम में पहली बार झारखंड की संस्कृति को शामिल किया गया है. स्कूली शिक्षा व साक्षरता विभाग द्वारा कक्षा छह से आठ के पाठ्य पुस्तक में बदलाव किया गया है. कक्षा सात के सामाजिक विज्ञान की किताब हमारी विरासत के अध्याय नौ में झारखंड की संस्कृति से जुड़ा सात पेज का अध्याय है.
इसमें झारखंड में बोली जानेवाली भाषाएं, झारखंड का साहित्य, झारखंड के साहित्यकार व उनकी रचनाएं, झारखंड की चित्रकारी, झारखंड के लोकगीत व नृत्य, झारखंड के वाद्य यंत्र, पर्व एवं त्योहार के बारे में बताया गया है. किताब में डॉ रामदयाल मुंडा, डॉ बीपी केसरी, पंडित रघुनाथ मुरमू, डॉ निर्मल मिंज व डॉ कामिल बुल्के के बारे में जानकारी दी गयी है. पाठ्य पुस्तक में डॉ रामदयाल मुंडा की रचनाओं के बारे में बताया गया है. डॉ मुंडा के बारे में कहा गया है कि उन्होंने मुंडारी के अतिरिक्त पंचपरगनिया व नागपुरी में भी रचनाएं लिखी हैं. मुंडारी भाषा में आदि धरम, फिर भेंट, दूसर नगीत और मुंडारी व्याकरण इनकी प्रमुख रचनाएं हैं.
डॉ बीपी केसरी का नागपुरी भाषा के प्रसिद्ध साहित्यकार के रूप में उल्लेख किया गया है. उन्होंने नागपुरी में कई किताबें लिखी हैं. नागपुरी भाषा और साहित्य, छोटानागपुर का इतिहास-कुछ संदर्भ कुछ सूत्र, नेरुआ लोटा उर्फ सांस्कृतिक अवधारणा और झारखंड के सदान उनकी प्रमुख कृतियों में शामिल हैं.
पंडित रघुनाथ मुरमू को एक बड़ा सांस्कृतिक नेता और संताल के सामाजिक, सांस्कृतिक एकता का प्रतीक बताया गया है. पंडित रघुनाथ मुरमू ने 1941 में संताली भाषा के लिए ओलचिकी लिपि का आविष्कार किया. उन्होंने इसी लिपि में अपने नाटकों की रचना की. डॉ निर्मल मिंज का कुड़ुख भाषा के विकास में सराहनीय योगदान रहा है. लमता उरबेनी उनकी प्रमुख रचना है. डॉ कामिल बुल्के ने बाइबल का सबसे पहले हिंदी में अनुवाद किया. उनके द्वारा तैयार शब्दकोष इंग्लिश-हिंदी को लोकप्रिय कृति बताया गया है. उनकी रचनाओं में रामकृपा को सर्वाधिक प्रसिद्ध बताया गया है.
पाठ्य पुस्तक में इनके हैं नाम
गद्य साहित्य : पुस्तक में गद्य साहित्य में बैद्यनाथ पोद्दार, राधाकृष्ण, द्वारिका प्रसाद, गोपालदास मुंजाल, भुवनेश्वरी प्रसाद भुवन, शिवनंदन प्रसाद, श्रवण कुमार गोस्वामी, दिनेश्वर प्रसाद, ऋता शुक्ल, रतन वर्मा, प्रहलालचंद्र दास, जयनंदन, पंकज मित्र के नाम शामिल किये गये हैं.
पद्य साहित्य : बैद्यनाथ पोद्दार, चिरंजी लाल शर्मा, बालेंदु शेखर तिवारी, वचनदेव कुमार, अनुज लुगुन, निर्मला पुतुल, मंजु शर्मा का नाम भी पुस्तक में दिया गया है.
उपन्यास : रामचीज सिंह वल्लभ लिखित राजपूती शान को झारखंड का पहला उपन्यास बताया गया है. हवलदारी राम गुप्त, डॉ द्वारिका प्रसाद, महुआ माजी, रणेंद्र कुमार का नाम झारखंड के उपन्यासकार के रूप में किताब में शामिल किया गया है.
झारखंड के साहित्यकार
नागपुरी : पीटर शांति नावरंगी, डॉ श्रवण कुमार गोस्वामी, गिरधारी राम गौंझू, नईमुद्दीन मिरदाहा, सहनी उपेंद्र नहन.
खोरठा : श्रीनिवास पानुरी, श्याम सुंदर महतो श्याम, डॉ भोगनाथ ओहदार, एके झा.
पंचपरगनिया : प्रो परमानंद महतो, बिपिन बिहारी, करमचंद अहीर, विनोद कवि.
कुरमाली : सृष्टिधर कटियार, राजेंद्र प्रसाद महतो, डॉ मंजय प्रमाणिक.
खड़िया : गगन चंद्र बनर्जी, रोज केरकेट्टा.
Prabhat Khabar Digital Desk
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