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साल 2017 में सोशल मीडिया बना महिलाओं का मुख्य हथियार

-रचना प्रियदर्शिनी-साल 2017 को अगर ‘महिलाओं का साल’ कहा जाये, तो शायद अतिश्योक्ति नहीं होगी. हालांकि ऐसा नहीं है कि बीते वर्ष में महिलाओं के खिलाफ अपराध नहीं हुए, लेकिन इस जाते हुए साल में जो सबसे बड़ी उपलब्धि महिलाओं ने हासिल की, वह यह कि उन्होंने बोलना सीखा. वे मुखर रूप से अपनी समस्याओं […]

-रचना प्रियदर्शिनी-

साल 2017 को अगर ‘महिलाओं का साल’ कहा जाये, तो शायद अतिश्योक्ति नहीं होगी. हालांकि ऐसा नहीं है कि बीते वर्ष में महिलाओं के खिलाफ अपराध नहीं हुए, लेकिन इस जाते हुए साल में जो सबसे बड़ी उपलब्धि महिलाओं ने हासिल की, वह यह कि उन्होंने बोलना सीखा. वे मुखर रूप से अपनी समस्याओं को लेकर दुनिया के सामने आयीं. उन्होंने दुनिया के साथ न केवल अपनी सामाजिक समस्याएं साझा कीं, बल्कि अपनी बेहद निजी या व्यक्तिगत समस्याओं को भी साझा करने की हिम्मत दिखायी. इस दिशा में सोशल मीडिया महिलाओं के लिए हथियार बन कर उभरा. साल 2017 में सोशल मीडया पर महिला समर्थित कई ऐसे कैंपेन चले, जिन्होंने उनकी आवाज को दुनिया के समक्ष रखने में उनकी मदद की. इनमें से कुछ कैंपेन पहले के भी थे, जिन्हें 2017 में समर्थन मिला. सबसे महत्वपूर्ण बात यह कि इनमें से ज्यादातर कैंपेन किसी महिला द्वारा ही चलाये गये और मजेदार बात यह कि एक समय के बाद पुरुषों ने भी उनके माध्यम से अपनी मिलती-जुलती समस्याओं को साझा किया. चलिए ऐसे ही कुछ कैंपेन पर एक नजर डालते हैं:

1. #MeToo
अमेरिकन ऐक्ट्रेस ऐलिसा मिलानो द्वारा सोशल मीडिया पर चलाया गया एक कैंपेन है, जो देखते-ही-देखते दुनिया भर में पॉपुलर हो गया. दरअसल हॉलीवुड की मशहूर अभिनेत्री रोज मैकगॉवन ने गत 13 अक्टृबर, 2017 को ट्विटर पर मशहूर निर्माता-निर्देशक हार्वी वाइंसटाइन के खिलाफ कई बड़े खुलासे किये. रोज़ ने आरोप लगाया कि हार्वी ने साल 1997 में उनके साथ रेप किया था. रोज़ ने हार्वी के खिलाफ एक के बाद एक कई ट्वीट्स किये. साथ ही यौन शोषण की शिकार दुनिया भर की तमाम महिलाओं से यह अपील की कि वे भी #MeToo को अपने फेसबुक स्टेटस में लिखें. रोज का उद्देश्य लोगों को यह बताना था कि दुनिया भर में कितनी बड़ी संख्या में महिलाएं यौन हिंसा का शिकार हैं. फिर तो तमाम सोशल साइट्स पर हैश टैग के साथ #MeToo पोस्ट की मानो बाढ़-सी आ गयी. बॉलीवुड, हॉलीवुड और टेलिवर्ल्ड की और भी कई नामचीन हस्तियों ने इस कैंपेन के हैशटैग को अपने फेसबुक पेज पर शेयर किया. आश्चर्य की बात यह रही कि इसमें कई पुरुष भी शामिल थे. इसकी वजह से हॉलीवुड के सबसे ताकतवर लोगों में से एक माने जानेवाले हार्वी वाइंस्टीन को यौन शोषण के मामले दोषी को ऑस्कर एकेडमी से बाहर कर दिया गया. महिला हिंसा के खिलाफ शुरू हुए ‘मी-टू कैम्पेन’ के प्रभाव को देखते हुए इसे 2017 का टाइम पर्सन ऑफ द ईयर चुना गया है. 15वीं बार कोई ग्रुप या कैम्पेन बना टाइम पर्सन, डोनाल्ड ट्रम्प दूसरे और चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग तीसरे नंबर पर रहे.
2. #MeriRaatMeriSadak
हरियाणा के आईएएस अफसर की बेटी वर्णिका कुंडू के साथ हुई छेड़छाड़ के मामले के विरोध में मेरी रात मेरी सड़क हैशटैग के नाम से सोशल मीडिया पर शुरू हुआ आंदोलन 12 अगस्त,2017 को सड़कों पर आ गया. दिल्ली एनसीआर समेत कई प्रमुख शहरों में महिलाएं बड़ी संख्या में देर रात सड़क पर निकलीं. इस आंदोलन का उद्देश्य रात के समय में सड़कों को महिलाओं के लिए सुरक्षित बनाना था. दुनिया को यह संदेश देना था कि रात को चलकर सुरक्षित घर पहुंचने का अधिकार सिर्फ पुरुषों का नहीं महिलाओं का भी है, क्योंकि पुरुषों की तरह इस देश के नागरिक हैं और उन्हें भी कानूनी तौर से पुरुषों के समान ही आजाद और बेखौफ जिंदगी जीने का अधिकार प्राप्त है.
3. #LahuKaLagaan
इस कैंपेन की शुरुआत ट्विटर पर ‘शी सेज़’ (she says) नामक ग्रुप द्वारा की गयी. यह कैंपेन सेनेटरी नैपकिन पर लगे टैक्स के विरोध में किया गया था. लाखों महिलाओं के साथ-साथ कई पुरुषों ने भी इस कैंपेन को सपोर्ट किया है. इसके अलावा इस कैंपेन को स्वरा भास्कर, तापसी पन्नू, मल्लिका दुआ, अदिति राव हैदरी, आदि बॉलीवुड अभिनेत्रियों,बैडमिंटन प्लेयर ज्वाला गुट्टा, प्रिया मलिक सहित साइरस बरूचा, विशाल डडलानी जैसे कई नामी-गिरामी चेहरों का भी पूरा समर्थन मिला. इन सभी लोगों ने वित्त मंत्री अरुण जेटली को #लहूकालगान हैशटैग करके उनसे सेनेटरी नैपकिन्स पर लगे टैक्स को हटाने की अपील की है.
4. #HappyToBleed
21 नवम्बर,2017 से निकिता आजाद द्वारा ‘हैप्पी टू ब्लीड’ कैंपेन की शुरुआत शुरू की गयी. निकिता का यह कैंपेन केरल के सबरीमाला मंदिर में महिलाओं के प्रवेश पर लगी पाबंदी के विरोध में शुरू किया गया था. दरअसल मंदिर के मुख्य पुरोहित परयार गोपालकृष्णन ने अपने एक बयान में कहा था कि, ‘यदि प्यूरिटी चेकिंग मशीन का आविष्कार हो जाये, जो यह देखे कि महिलाएं माहवारी के दिनों में हैं या नहीं, तभी वह महिलाओं के मंदिर में जाने देने पर विचार करेगा.’पुजारी के इस सेक्सिस्ट रिमार्क के बाद निकिता आजाद ने अपने कुछ साथियों के साथ 20 नवंबर को सबरीमाला मंदिर के मुख्य पुरोहित को एक पत्र लिखा. यह पत्र ‘यूथ की आवाज’ ब्लॉग पर भी ऑनलाइन प्रकाशित हुआ. अगले ही दिन निकिता और उसके साथियों ने सोशल मीडिया में ‘ हैप्पी टू ब्लीड’ कैंपेन शुरू कर दिया. इसके तहत लड़कियों से यह अपील की गयी कि वे अपने हाथों में ‘हैप्पी टू ब्लीड’लिखे हुए प्लेकार्ड्स, चार्ट्स, सेनेटरी नैपकिन लेकर फोटो क्लिक करवाएं और उसे सोशल मीडिया पर अपने प्रोफाइल या पोस्ट के साथ अपलोड करें. देखते-ही-देखते यह कैंपेन वायरल हो गया. इसके चलते ‘तथाकथित हिंदू समर्थकों’ ने निकिता को वेश्या, अनपढ़, एंटी हिन्दू , राष्ट्रद्रोही आदि जैसे घटिया विशेषणों से भी नवाजा, लेकिन इसके बावजूद वह पीछे नहीं हटीं और खुल कर विरोध करती रहीं. आगे चल कर उन्हें लाखों-करोड़ों लोगों का समर्थन प्राप्त हुआ.
5. #touchthepickle
इस कैंपेन को सेनेटरी नैपकीन बेचनेवाली कंपनी प्रॉक्टर एंड गैंबल द्वारा
शुरू किया गया. इसका उद्देश्य मुख्य रूप से भारतीय समाज में व्याप्त माहवारी या पीरियड्स से संबंधित अंधविश्वास या रूढ़िवादी सोच को बदलना और इसकी वजह से महिलाओं के साथ होनेवाले हर तरह के भेदभाव को खत्म करना है. जैसे, आम तौर पर हमारे समाज में लोग ऐसा मानते हैं कि माहवारी के यदि महिलाएं अचार या किसी खट्टी चीज को छू दें, तो वो खराब हो जायेगा या फिर इस दौरान महिलाओं का शरीर अपवित्र हो जाता है, इसलिए उन्हें धार्मिक क्रियाकलापों से दूर रहना चाहिए. इस अभियान के लिए खास तौर से तैयार किये गये यूट्यूब वीडियो को लगभग दो करोड़ लोगों ने लाइक और शेयर किया. कैंपेन में शामिल लोगों से यह अपील की गयी कि वे इस हैशटैग का उपयोग करते हुए अपने साथ होनेवाले ऐसे अनुभवों को भी सोशल मीडिया पर शेयर करें.
6. #MyBodyMyBFF
आमतौर पर हमारे समाज में सुडौल शरीर और सुंदर रंगरूप को ही सुंदरता का पैमाना माना जाता है. खास तौर से महिलाओं के संदर्भ में ऐसा अधिक देखने को मिलता है. कोई पुरुष खुद भले की देखने में कैसा भी हो, उसे हमेशा एक सुंदर महिला मित्र या पत्नी ही चाहिए होती है. इस वजह से कई महिलाएं, विशेष तौर से जिनका शारीरिक डील-डौल या रंग रूप इस तरह के मानकों से इतर हों, वे हीन भावना से ग्रस्त रहती हैं. इसी बात को ध्यान में रखते हुए यूके की अंत:वस्त्र बेचनेवाली एक कंपनी कर्वी केट ने #MyBodyMyBFF कैंपेन की शुरुआत की. इस कैंपेन का उद्देश्य महिलाओं को अपने शरीर से प्यार करने के लिए प्रेरित करना और उनके अंदर मौजूद हीनभावना को खत्म करना था. इस कैंपेन के तहत वैसी सभी महिलाओं से, जो खुद को मोटी या बदसूरत समझती हैं, अपनी पसंदीदा ड्रेसेज (खास तौर से ब्रा और बिकिनी) पहन कर खूबसूरत पोज में अपनी फोटोज को #MyBodyMyBFF हैशटैग के साथ इंस्टाग्राम और ट्विटर पर पोस्ट करने की अपील की गयी.
हालांकि कई लोगों ने इस हैशटैग कैंपेन की आलोचना करते हुए इसे कंपनी द्वारा अपने उत्पाद की बिक्री को बढ़ावा देनेवाला बताया, फिर भी इससे समाज में एक सकारात्मक संदेश जरूर प्रसारित हुआ कि हर इंसान अपने आप में खूबसूरत है.
7. Leading with Values
इस सोशल मीडिया कैंपेन को 22 से 26 मई, 2107 के बीच आयोजित किया गया. इस कैंपेन का उद्देश्य विभिन्न संस्थानों और संगठनों में काम करनेवाले कर्मचारियों को महिलाओं के प्रति संवेदनशील बनाना और उनके साथ होनेवाली हिंसा को रोकना था. इस कैंपेन में शामिल लोगों से अपील की गयी कि वे @GBVnet टैग के साथ सोशल मीडिया पर इस संबंध में अपने विचारों को शेयर करें कि महिलाओं के साथ होनेवाली हिंसा को किस तरीके रोका जा सकता है.
8. . P&G’s #WeSeeEqual
इस अभियान की शुरुआत भी उपभोक्ता उत्पाद बनानेवाली प्रमुख कंपनी प्रोक्टर एंड गैंबल द्वारा किया गया था. इसका उद्देश्य लैंगिक असमानता और पक्षपात को खत्म करना था.

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