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Women empowerment: संविधान सभा की महिला सदस्यों के योगदान से रुबरु कराने के लिए जारी हुई किताब

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केंद्रीय कानून और न्याय मंत्रालय के विधायी विभाग ने 'संविधान सभा की महिला सदस्यों का जीवन और योगदान' पर एक पुस्तक का विमोचन किया. इस पुस्तक में संविधान सभा में शामिल 15 प्रमुख महिलाओं के देश का संविधान का प्रारूप तैयार करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाने की जानकारी दी गयी है. मौजूदा समय में अधिकांश लोगों को इन महिलाओं के योगदान की जानकारी नहीं है.

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Women empowerment: अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस के मौके पर केंद्रीय कानून और न्याय मंत्रालय के विधायी विभाग ने ‘संविधान सभा की महिला सदस्यों का जीवन और योगदान’ पर एक पुस्तक का विमोचन किया. इस पुस्तक में संविधान सभा में शामिल 15 प्रमुख महिलाओं के देश का संविधान का प्रारूप तैयार करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाने की जानकारी दी गयी है. मौजूदा समय में अधिकांश लोगों को इन महिलाओं के योगदान की जानकारी नहीं है. सरकार की कोशिश ऐसी महिला नायकों के योगदान से देश के लोगों को रुबरु कराना है.

मंत्रालय द्वारा प्रकाशित पुस्तक में वकीलों, समाज सुधारकों और स्वतंत्रता सेनानियों सहित इन अग्रणी महिलाओं के योगदान का दस्तावेजीकरण किया गया है. इसका मकसद यह बताना है कि पुरुष-प्रधान राजनीतिक व्यवस्था के बावजूद इस महिलाओं ने कैसे सामाजिक बाधाओं को पार कर देश का निर्माण करने में अहम योगदान दिया है. तमाम प्रतिकूल स्थितियों का सामना करते हुए ये महिला संविधान सभा में प्रमुख आवाज के तौर पर सामने आयी और मौलिक अधिकारों, सामाजिक न्याय, लैंगिक समानता और लोकतांत्रिक शासन पर विचार-विमर्श को प्रभावित करने का काम किया. 

संविधान निर्माण में महिलाओं की भूमिका सामने लाने की कोशिश


इस पुस्तक के प्रकाशन का मकसद संविधान सभा में शामिल महिलाओं के भाषण, बहस और विधायी हस्तक्षेप का विस्तृत विश्लेषण प्रस्तुत करना है. ताकि लोगों को यह पता चल सके कि संवैधानिक प्रावधानों के निर्माण में महिलाओं का क्या योगदान था. इस किताब में वर्ष 1917 में महिला भारतीय संघ की स्थापना से लेकर स्वतंत्र भारत में राजनीतिक प्रतिनिधित्व की अंतिम प्राप्ति तक महिलाओं की संवैधानिक आकांक्षाओं के विकास के बारे में जानकारी दी गयी है. साथ ही स्वतंत्रता-पूर्व भारत में सार्वजनिक जीवन में महिलाओं की राजनीतिक भागीदारी और स्वतंत्र राष्ट्र के लिए संविधान के निर्माण तथा उसके बाद की यात्रा को बताया गया है. किताब में अम्मू स्वामीनाथन के  लैंगिक समानता को लेकर उठायी गयी आवाज का जिक्र करते हुए बताया गया है कि कैसे उन्होंने महिलाओं के अधिकारों को विधिवत मान्यता दिलाने का काम किया.

एनी मस्कारेन के संघवाद और राज्यों के एकीकरण पर चर्चा,  बेगम कुदसिया एजाज रसूल की धर्मनिरपेक्षता, दलित महिला दक्षायनी वेलायुधन के अस्पृश्यता का विरोध और वंचित समुदायों के अधिकारों मुहैया कराने, दुर्गाबाई देशमुख के सामाजिक कल्याणकारी नीतियों के निर्माण और महिला शिक्षा को बढ़ावा देने में महत्वपूर्ण भूमिका को बताया गया है. हंसा जीवराज मेहता के मौलिक अधिकारों का प्रारूप तैयार करने, राजकुमारी अमृत कौर का सार्वजनिक स्वास्थ्य नीतियों का निर्माण करने, सरोजिनी नायडू, सुचेता कृपलानी, विजयलक्ष्मी पंडित के योगदान को याद किया गया है. 

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