Rajya Sabha: दिल्ली हाईकोर्ट के न्यायाधीश अभय वर्मा के सरकारी आवास पर बड़ी मात्रा में नोट मिलने का मामला राज्यसभा में भी उठा. मामला सामने आने के बाद सुप्रीम कोर्ट के कॉलेजियम ने न्यायाधीश वर्मा का तबादला इलाहाबाद हाईकोर्ट में कर दिया और आंतरिक जांच का आदेश दिया है. शुक्रवार को कांग्रेस सांसद जयराम रमेश ने न्यायाधीश के सरकार आवास पर बड़ी मात्रा में नकदी मिलने का मामला उठाते हुए सभापति से न्यायिक जवाबदेही सुनिश्चित करने किए जाने की मांग की. रमेश ने कहा कि इलाहाबाद हाईकोर्ट के एक न्यायाधीश के खिलाफ महाभियोग चलाने के लिए कई सांसदों ने राज्यसभा में नोटिस दिया था. सभापति खुद कई बार न्यायिक जवाबदेही की बात कह चुके हैं.
जयराम ने सभापति से कहा कि वे इस मामले में सरकार को न्यायिक जवाबदेही तय करने के लिए कदम उठाने का निर्देश दें. इसपर उपराष्ट्रपति धनखड़ ने कहा कि चिंता की बात यह है कि मामला सामने आने में काफी समय लगा. अगर ऐसा ही मामला किसी, राजनेता, नौकरशाह और उद्योगपति के खिलाफ आता तो उसे तुरंत निशाना बनाने का काम शुरू हो जाता. इस मामले पर बहस के लिए सदन के नेता और विपक्ष के नेता से बात कर इसी सत्र में चर्चा कराने की कोशिश करेंगे.
न्यायपालिका में भ्रष्टाचार गंभीर मुद्दा
वरिष्ठ वकील एवं राज्यसभा सांसद कपिल सिब्बल ने कहा कि न्यायपालिका में भ्रष्टाचार को लेकर पूर्व में कई वकील सवाल उठा चुके है. न्यायपालिका में भ्रष्टाचार एक गंभीर मामला है. भ्रष्टाचार कई सालों से चल रहा है. ऐसे में अब समय आ गया है कि सुप्रीम कोर्ट को तय करना होगा कि न्यायाधीशों की नियुक्ति की प्रक्रिया कैसी होनी चाहिए. हाईकोर्ट और सुप्रीम कोर्ट में न्यायाधीशों के नियुक्ति की प्रक्रिया पारदर्शी होनी चाहिए. वहीं इलाहाबाद हाईकोर्ट के एक न्यायाधीश के बयान के खिलाफ विपक्षी सांसदों के महाभियोग प्रस्ताव पर सभापति धनखड़ ने कहा कि वे सांसदों के हस्ताक्षर की जांच कर रहे हैं और अगर यह संख्या 50 से अधिक होती है, तो इस प्रस्ताव को आगे बढ़ाने का काम करेंगे.
इस सदन के 55 सदस्यों का मेल मिला है और मैंने उनका सत्यापन करने के लिए सभी जरूरी कदम उठाए हैं. हस्ताक्षर के सत्यापन के लिए सांसदों को मेल भेजा गया था और अच्छी बात यह है कि अधिकांश सदस्यों ने इसका जवाब दिया है. कुछ सांसदों ने जवाब नहीं दिया है और उन्हें फिर से मेल किया गया गया है. गौरतलब है कि केंद्र सरकार ने न्यायाधीशों की नियुक्ति के लिए राष्ट्रीय न्यायिक नियुक्ति आयोग बनाया था. इसमें मुख्य न्यायाधीश, कानून मंत्री समेत 6 लोगों को शामिल करने का प्रावधान था. लेकिन वर्ष 2015 में सुप्रीम कोर्ट ने इस आयोग को असंवैधानिक करार दिया.