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पीएम मोदी: भारत की ज्यूडिशरी संविधान का संरक्षक तो विधायिका नागरिकों की आकांक्षा, न्याय सबके लिए सुलभ हो

दिल्ली के विज्ञान भवन में आयोजित राज्यों के मुख्यमंत्रियों और हाईकोर्ट के न्यायाधीशों के संयुक्त सम्मेलन प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने आगे कहा, 'मुझे विश्वास है कि संविधान की इन दो धाराओं का ये संगम, ये संतुलन देश में प्रभावी और समयबद्ध न्याय व्यवस्था का रोडमैप तैयार करेगा.'

नई दिल्ली : प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने शनिवार को दिल्ली के विज्ञान भवन में आयोजित राज्यों के मुख्यमंत्रियों और हाईकोर्ट के न्यायाधीशों के संयुक्त सम्मेलन में कहा कि देश में न्याय सबके लिए सुलभ हो. इसके साथ ही उन्होंने यह भी कहा कि राज्यों के मुख्यमंत्रियों और उच्च न्यायालयों के मुख्य न्यायाधीशों का ये संयुक्त सम्मेलन हमारी संवैधानिक खूबसूरती का सजीव चित्रण है. हमारे देश में जहां एक ओर ज्यूडिशरी की भूमिका का संविधान संरक्षक की है. वहीं विधान मंडल नागरिकों की आकांक्षाओं का प्रतिनिधित्व करती है.

दिल्ली के विज्ञान भवन में आयोजित राज्यों के मुख्यमंत्रियों और हाईकोर्ट के न्यायाधीशों के संयुक्त सम्मेलन प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने आगे कहा, ‘मुझे विश्वास है कि संविधान की इन दो धाराओं का ये संगम, ये संतुलन देश में प्रभावी और समयबद्ध न्याय व्यवस्था का रोडमैप तैयार करेगा.’

उन्होंने कहा कि 2047 में जब देश अपनी आजादी के 100 साल पूरे करेगा, तब हम देश में कैसी न्याय व्यवस्था देखना चाहेंगे? हम किस तरह अपने न्याय व्यवस्था को इतना समर्थ बनाएं कि वह 2047 के भारत की आकांक्षाओं को पूरा कर सके, उन पर खरा उतर सके, ये प्रश्न आज हमारी प्राथमिकता होना चाहिए.

प्रधानमंत्री मोदी ने यह भी कहा कि आज का सम्मेलन ऐसे समय में हो रहा है, जब देश आज़ादी का अमृत महोत्सव मना रहा है. आजादी के इन 75 सालों ने ज्यूडिशरी और एग्जीक्यूटिव दोनों के ही भूमिका और जिम्मेदारियों को निरंतर स्पष्ट किया है. जहां जब भी जरूरी हुआ, देश को दिशा देने के लिए ये संबंध लगातार विकसित हुआ है.

उन्होंने कहा कि भारत सरकार न्याय व्यवस्था में तकनीकी की संभावनाओं को डिजिटल इंडिया मिशन का एक जरूरी हिस्सा मानती है. उदाहरण के तौर पर, ई-कोर्ट परियोजना को आज मिशन मोड में लागू किया जा रहा है। आज छोटे कस्बों और यहां तक कि गांवों में भी डिजिटल ट्रांसजेक्शन आम बात होने लगी है.

उन्होंने कहा कि 2015 में हमने करीब 1800 ऐसे क़ानूनों को चिन्हित किया था जो अप्रासंगिक हो चुके थे. इनमें से जो केंद्र के कानून थे, ऐसे 1450 क़ानूनों को हमने खत्म किया, लेकिन राज्यों की तरफ से केवल 75 कानून ही खत्म किए गए हैं.

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उन्होंने कहा कि हमें कोर्ट में स्थानीय भाषाओं को प्रोत्साहन देने की जरूरत है. इससे देश के सामान्य नागरिकों का न्याय प्रणाली में भरोसा बढ़ेगा, वो उससे जुड़ा हुआ महसूस करेंगे.

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