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Kisan Andolan News : गूगल टूलकिट की मदद से फैलायी जा रही अफवाह के खिलाफ भी एफआईआर दर्ज, खालिस्तानी कनेक्शन भी आ रहे है सामने

किसान आंदोलन को लेकर गूगल टूलकिट की मदद से फैलायी जा रही भ्रामक जानकारियों के खिलाफ भी एफआईआर दर्ज किया गया है. दिल्ली पुलिस ने इस संबंध में जानकारी दी है कि हमने किसी के नाम पर एफआईआर दर्ज नहीं किया है. यह टूलकिट के क्रिएटर्स के खिलाफ है. इस मामले की जांच की जा रही है.

किसान आंदोलन को लेकर गूगल टूलकिट की मदद से फैलायी जा रही भ्रामक जानकारियों के खिलाफ भी एफआईआर दर्ज किया गया है. दिल्ली पुलिस ने इस संबंध में जानकारी दी है कि हमने किसी के नाम पर एफआईआर दर्ज नहीं किया है. यह टूलकिट के क्रिएटर्स के खिलाफ है. इस मामले की जांच की जा रही है.

एफआईआर कई धाराओं में दर्ज किया गया है जिसमें 124 A IPC भी शामिल है जिसमें भारत सरकार के विरूद्ध असहमति फैलाना. देशद्रोह, 153 / सामाजिक / सांस्कृतिक / धार्मिक आधार पर विभिन्न समुदायों के बीच घृणा को बढ़ावा देने आपराधिक साजिश के लिए 153 & 120 B है लगायी गयी है.

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गूगल टूलकिट की चर्चा इसलिए ज्यादा रही क्योंकि ग्रेटा थनबर्ग ने गूगल टूलकिट को शेयर कर दिया. इससे यह पता चला कि भारत को बदनाम करने की साजिश रची जा रही है और इसी आधार पर यह मामला दर्ज किया गया पोएटिक जस्टिस फाउंडेशन नाम के संस्थान का नाम भी सामने आ रहा है.

किसानों द्वारा जारी विरोध प्रदर्शन के बीच, कई अंतरराष्ट्रीय हस्तियों ने अपना समर्थन किया. इनलोगं ने इसे बड़ा मुद्दा बनाया रिहाना, मिया खलीफा, थनबर्ग आदि ने ट्विटर पर इसे लेकर ट्वीट किए. स्वीडिश एक्टिविस्ट ग्रेटा थनबर्ग ने भारत में किसान आंदोलन के समर्थन में ट्वीट किया. कुछ ही देर बाद यह ट्वीट ग्रेटा ने डिलीट भी कर दिया. इससे पहले ही कई लोगों ने इसका स्क्रीन शॉट ले लिया.

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डॉक्यूमेंट शेयर करते हुए ग्रेटा ने लिखा था कि जो लोग मदद करना चाहते हैं यह ‘टूलकिट’ उनके लिए है. इस लिंक में भारत सरकार पर अंतरराष्ट्रीय दबाव डालने क कार्ययोजना का पूरा विवरण था. इस तरह इस अंतरराष्ट्रीय साजिश की रणनीति सबसे सामने आ गयी.

सूत्रों की मानें तो यह पूरी साजिश कनाडा में रची गयी क्योंकि पोएटिक जस्टिस फाउंडेशन वही से चलता है. इसकी आधिकारिक वेबसाइट में भी किसानों के समर्थन में कई तरह की अपवाह चलायी जा रही है. इस संस्था ने सिलेब्रिटी को आगे करके आंदोलन को और हवा देने की कोशिश की.

इनके द्वारा शेयर की गयी अफवाह में कहा गया था सरकार कि 26 जनवरी के आंदोलन को रोकने के लिए केंद्र सरकार 1984 जैसा कुछ कर सकती है. साल 1984 में दंगे हुए थे जिससे किसानों को नुकसान पहुंचा था. ऐसा माना जा रहा है कि ऐसे कई संगठन है जो किसान आंदोलन को लेकर अफवाह फैला रहे हैं इनमें खालिस्तान की मांग करने वाले संगठन भी शामिल हैं.

Prabhat Khabar Digital Desk
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